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सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
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सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सबरीमाला मंदिर के संरक्षक त्रावणकोर देवासम बोर्ड (टीडीबी) ने पहली बार अपना रुख बदलते हुए कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करेगा, जिसमें सभी उम्र के महिलाओं के प्रवेश की इजाजत दी गई थी. देवासम बोर्ड की तरफ से पेश हुए वकील राकेश द्विवेदी ने कोर्ट में कहा कि संविधान का अनुच्छेद-25(1) के तहत हर व्यक्ति को धार्मिक आजादी देता है. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इन याचिकाओं पर सुनवाई के बाद फैसले को सुरक्षित रख लिया. कोर्ट ने सभी पक्षों को लिखित जवाब दाखिल करने की इजाजत दी.
केरल सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में दायर किए गए पुनर्विचार याचिका का विरोध किया और कहा कि पुनर्विचार को जरूरी बताने के लिए कोर्ट के सामने कुछ भी नहीं रखा गया है. राज्य सरकार ने विरोध करते हुए कहा कि कोर्ट के फैसले में कोई खामी नहीं है, महज विरोध प्रदर्शनों के चलते अदालत के फैसले को बदला नहीं जा सकता है.
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ कुल 64 पुनर्विचार याचिका दायर की गई थी. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते वक्त भगवान अयप्पा के ब्रह्मचारी होने की मान्यता पर ध्यान नहीं दिया. धर्म के मामले में संवैधानिक सिद्धांत जबरन नहीं थोपा जा सकता है. अयप्पा में आस्थावान महिलाओं को इस नियम से दिक्कत नहीं है, कोर्ट के इस फैसले को लोगों ने स्वीकार नहीं किया है.
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील के पराशरन ने कोर्ट में कहा कि सबरीमाला की परंपरा को छूआछूत के बराबर नहीं रखा जा सकता है, यह सिर्फ एक धार्मिक रिवाज है. याचिकाओं में मांग की गई थी कि सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले पर पुनर्विचार करे.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने बताया कि इस मामले में 54 पुनर्विचार याचिका दाखिल गयी है. 5 रिट याचिका है, इसके अलावा ट्रांसफर पिटीशन भी है. हम पहले पुनर्विचार याचिकाओं को सुनेंगे. चीफ जस्टिस ने सभी वकीलों से रिव्यु पिटीशन के दायरे में ही अपनी बात सीमित रखने को कहा है.
संविधान पीठ में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा, जस्टिस आरएफ नरीमन, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदू मल्होत्रा शामिल हैं.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 28 सितंबर को तत्कालीन चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत के फैसले से भगवान अयप्पा मंदिर में 10-50 वर्ष आयु की महिलाओं को प्रवेश नहीं देने की पुरानी परंपरा को समाप्त कर दिया था.
Source : News Nation Bureau