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सुप्रीम कोर्ट( Photo Credit : न्यूज स्टेट)
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सुप्रीम कोर्ट( Photo Credit : न्यूज स्टेट)
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सबरीमामा से जुड़ी सभी रिव्यू पिटीशन (Sabarimala review petitions) पर सुनवाई के लिए जजों की बेंच निर्धारित कर दी है. सुप्रीम कोर्ट की 7 न्यायाधीशों की एक बड़ी बेंच जनवरी 2020 में सुनवाई करेगी. बता दें कि इससे पहले सबरीमला मंदिर में निहत्थी महिलाओं को प्रवेश से रोके जाने को शोचनीय स्थिति करार देते हुए उच्चतम न्यायालय ने अपने अल्पमत के फैसले में कहा कि 2018 की व्यवस्था पर अमल को लेकर कोई बातचीत नहीं हो सकती है और कोई भी व्यक्ति अथवा अधिकारी इसकी अवज्ञा नहीं कर सकता है.
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गौरतलब है कि सबरीमाला मामले में न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड की ओर से अल्पमत फैसला सुनाने वाले न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन ने कहा कि अदालत के फैसले को लागू करने वाले अधिकारियों को संविधान ने बिना किसी ना नुकुर के व्यवस्था दी है, क्योंकि यह कानून के शासन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है. और सितंबर 2018 के फैसले का कड़ाई से अनुपालन करने का आदेश दिया गया है जिसमें सभी आयु वर्ग की लड़कियों और महिलाओं को केरल के इस मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी गई थी.
Sabarimala review petitions will now be heard by a larger, 7-judge Constitution Bench of the Supreme Court in January 2020. pic.twitter.com/ICiIKcBHVL
— ANI (@ANI) December 21, 2019
हालांकि, प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा के बहुमत के फैसले ने इस मामले को सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ को भेजने का निर्णय किया, जिसमें सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति से संबंधित शीर्ष अदालत के 2018 के फैसले की समीक्षा की मांग की गई थी. चूंकि, बहुमत के फैसले ने समीक्षा याचिका को सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ के पास लंबित रखा था और 28 सितंबर 2018 के फैसले पर रोक नहीं लगाई है, इसलिए सभी आयु वर्ग की लड़कियां और महिलाएं मंदिर में जाने की पात्र हैं.
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न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा था कि दस वर्ष से 50 वर्ष की आयु के बीच की निहत्थी महिलाओं को मंदिर में पूजा करने के उनके मौलिक अधिकार से वंचित रखने की दुखद स्थिति के आलोक में यह संवैधानिक कर्त्तव्य को फिर से परिभाषित कर रहा है. इसने आगे कहा कि जो भी शीर्ष अदालत के निर्णयों के अनुपालन में कार्य नहीं करता है, वह अपने जोखिम पर ऐसा करता है. इसमें कहा गया है, जहां तक केंद्र और राज्य सरकारों के मंत्रियों, सांसदों, विधायकों का सवाल है तो वह संविधान को बनाए रखने, उसकी संरक्षा करने और उसे बचाने के लिए अपनी संवैधानिक शपथ का उल्लंघन करेंगे.
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