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केरल में सीएम आवास की तरफ बीजेपी कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन (फोटो : ANI)
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केरल में सीएम आवास की तरफ बीजेपी कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन (फोटो : ANI)
केरल में सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर विरोध कर रहे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) कार्यकर्ताओं ने रविवार को मुख्यमंत्री आवास की तरफ मार्च किया जिसके बाद अफरातफरी मच गई. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए वाटर कैनन और आंसू गैस का प्रयोग किया. बता दें कि राज्य के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश को लेकर कई बार साफ कर चुके हैं कि वे सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करेंगे और किसी भी महिलाओं के प्रवेश पर रोक नहीं लगा सकते हैं. जिसके कारण हिंदूवादी संगठन सरकार के खिलाफ लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर को ऐतिहासिक फैसला देते हुए केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 आयुवर्ग की सभी महिलाओं को प्रवेश की मंजूरी दी थी। इससे पहले इस उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने का अधिकार नहीं था. लेकिन लगातार विरोध प्रदर्शन के कारण अब तक सबरीमाला में धारा 144 लगी हुई है.
शुक्रवार को ही केरल हाई कोर्ट ने बीजेपी नेता के सुरेंद्रन को जमानत दी थी. उन्हें तीन सप्ताह पहले सबरीमाला बेस कैम्प में सुरक्षा घेरा तोड़ने के आरोप में हिरासत में लिया गया था. अदालत ने उन्हें 52 वर्षीया महिला पर हमले के मामले में दो लाख रुपये मुचलका देने के लिए भी कहा, जो अपने एक रिश्तेदार के साथ एक धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने के लिए सबरीमाला मंदिर गई थी.
बीते 16 नवंबर को सबरीमाला मंदिर का कपाट दो महीने के लिए खुलने के बाद महिलाओं के प्रवेश को लेकर अब भी वहां विरोध प्रदर्शन जारी है. उल्लेखनीय है कि कपाट खुलने के बाद अब तक 10-50 वर्ष की एक भी महिला भारी विरोध प्रदर्शन के कारण मंदिर के अंदर प्रवेश नहीं कर पाई हैं. पुरानी प्रथा को कायम रखने को लेकर हिंदूवादी संगठन लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं.
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सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर को दिए अपने फैसले में कहा था कि सभी उम्र की महिलाओं (पहले 10-50 वर्ष की उम्र की महिलाओं पर बैन था) को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश मिलेगी. वहीं सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर 48 पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए 22 जनवरी की तारीख मुकर्रर की गई है.
कोर्ट ने क्या कहा था
अदालत ने कहा था कि महिलाओं का मंदिर में प्रवेश न मिलना उनके मौलिक और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है. अदालत की पांच सदस्यीय पीठ में से चार ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया जबकि पीठ में शामिल एकमात्र महिला जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अलग राय रखी थी.
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पूर्व मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने जस्टिस एम.एम. खानविलकर की ओर से फैसला पढ़ते हुए कहा, 'शारीरिक या जैविक आधार पर महिलाओं के अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता. सभी भक्त बराबर हैं और लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं हो सकता.'
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Source : News Nation Bureau