अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर RSS ने बनाई 2010 वाली रणनीति, जानें क्या है ये

अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ साल 2010 की पुरानी रणनीति पर काम करेगा.

अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ साल 2010 की पुरानी रणनीति पर काम करेगा.

author-image
Deepak Pandey
एडिट
New Update
अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर RSS ने बनाई 2010 वाली रणनीति, जानें क्या है ये

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत( Photo Credit : न्यूज स्टेट)

अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद देश में कानून एवं शांति-व्यवस्था के लिए किसी भी तरह की चुनौती न खड़ी हो, इसके लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ साल 2010 की पुरानी रणनीति पर काम करेगा. फैसला जो भी आएगा, संघ उसे स्वीकार कर शासन और प्रशासन के साथ पूरा सहयोग करेगा. हालांकि, संघ की बैठक में हिंदू भावनाओं के अनुरूप सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने की उम्मीद जताई गई.

Advertisment

यह भी पढ़ेंः Jammu-Kashmir: मजदूरों के बाद अब आतंकवादियों ने शोपियां के स्कूल को बनाया निशाना

सुप्रीम कोर्ट की ओर से 17 नवंबर से पहले इस मामले में निर्णय देने की संभावना है. यहां दिल्ली के छतरपुर में दो दिनों तक चली बैठक में संघ के शीर्ष नेताओं ने विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय किया है. बैठक में यह भी कहा गया कि फैसला राम मंदिर के पक्ष में आने के बाद भी हिंदू संगठन किसी तरह का जुलूस आदि निकालकर शक्ति प्रदर्शन न करें.

संघ व इससे जुड़े 36 प्रमुख सहयोगी संगठनों के पदाधिकारी व कार्यकर्ता अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में पूरी गतिविधियों पर नजर रखेंगे. कहा गया है कि जिस तरह से संघ के स्वयंसेवकों ने समाज के हर वर्ग के लोगों के साथ संपर्क और संवाद के जरिए 2010 में आए फैसले के बाद शांति-व्यवस्था बरकरार रखने में भूमिका निभाई थी, तब कहीं कोई अप्रिय घटना नहीं हुई थी, उसी रणनीति पर इस बार भी काम किया जाए.

यह भी पढ़ेंः भारत-जर्मनी के बीच 20 समझौतों पर हुए हस्ताक्षर, मिलकर लड़ेंगे आतंकवाद से

बैठक में शामिल एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने आईएएनएस से कहा, "कुछ गलत ताकतें हमेशा इस ताक में रहती हैं कि कब देश और समाज को क्षति पहुंचाई जाए. राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अवसर पर भी विद्वेषपूर्ण घटनाएं हो सकती हैं. खुराफाती ताकतें देश के सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने की कोशिश कर सकती हैं. शांति-व्यवस्था बनाए रखने के उपायों पर संघ परिवार ने विचार-विमर्श किया है. प्रशासन अपने स्तर से काम करेगा और संघ परिवार अपने स्तर से करेगा. 2010 में आए कोर्ट के निर्णय के दौरान जिस तरह से संघ परिवार ने शांति व्यवस्था बरकरार रखने में भूमिका निभाई थी, उसी तरह इस बार भी किया जाएगा."

संघ से जुड़े सूत्र बताते हैं कि 2010 में संघ ने हाईकोर्ट का फैसला आने से पहले सभी सहयोगी संगठनों को अलर्ट कर दिया था कि शांत होकर निर्णय स्वीकार करना है और किसी भी तरह की प्रतिक्रिया नहीं करनी है. तब संघ के स्वयंसेवकों ने स्वतंत्र रूप से काम करने वाले तमाम हिंदू संगठनों को भी इसके लिए राजी किया था. सामाजिक संगठनों और प्रबुद्ध वर्ग के साथ संघ नेताओं ने बैठक कर कोर्ट के निर्णय पर संतुलित बयानबाजी और प्रतिक्रिया के लिए अनुरोध किया था. लोगों को किसी भी तरह की भड़काऊ बयानबाजी या फिर शक्ति प्रदर्शनों से बचने की सलाह दी थी.

यह भी पढ़ेंः महाराष्ट्र: सोनिया गांधी के घर से निकले कांग्रेसी नेताओं ने शिवसेना को समर्थन देने पर कही ये बात

नतीजा यह निकला कि 2010 में फैसला आने के बाद सबकुछ शांति से गुजर गया था. राजनीति दलों से लेकर सिविल सोसाइटी और धार्मिक संगठनों के साझा प्रयास से सामाजिक सौहार्द पर किसी तरह की आंच नहीं आई थी. बीते रविवार को मन की बात कार्यक्रम में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी तारीफ करते हुए कहा था कि 2010 में राम मंदिर पर आने वाले फैसले पर सामाजिक संगठनों, राजनीतिक दलों, सभी संप्रदायों के लोगों और साधु-संतों ने संतुलित बयान देकर न्यायपालिका के गौरव का सम्मान किया.

संघ फिर चाहता है कि 2010 की तरह ही लोग इस बार भी खुलेमन से कोर्ट के फैसले को स्वीकार करें. 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने विवादित भूमि को राम मंदिर, सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े के बीच बांटने का आदेश दिया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी.

Ayodhya Case Supreme Court ram-mandir Mohan Bhagwat RSS
      
Advertisment