रोहिंग्या मामला: SC ने कहा- कानून के दायरे में हो बहस, भावनात्मक दलीलें न दी जाएं, 5 दिसंबर तक टली सुनवाई
रोहिंग्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने हिदायत देते हुए कहा है कि सिर्फ कानून के दायरे में बहस हो, भावनात्मक दलीलें न दी जाएं। मामले की सुनवाई 5 दिसंबर तक के लिए टाली।
नई दिल्ली:
रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सलाह दी है कि इस मामले की सुनवाई भावनात्मक दलीलों पर नहीं बल्कि कानून के दायरे में होनी चाहिये। इसके साथ ही कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई 5 दिसंबर तक के लिए टाल दी है।
रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने की सरकार के ऐलान के बाद दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'मामले में विस्तृत सुनवाई ज़रूरी है।'
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को हिदायत देते हुए कहा, 'हालांकि बहस कानून के दायरे में हो और इसमें भावनात्मक दलीलें न दी जाएं'
हालांकि मंगलवार हुई सुनवाई के दौरान अदालत में एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के मौजूद न होने के कारण की चलते सुनवाई 5 दिसंबर तक के लिये टाली गई है।
इससे पहले रोहिंग्या मसले पर पिछली सुनवाई 13 अक्टूबर को हुई थी। बीती सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को किसी भी आपात स्थिति में उसके पास आने के लिए छूट दी थी।
भारत में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों ने केंद्र सरकार के उस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है, जिसमें उन्हें भारत से वापस भेजने के लिए कहा गया है।
सुप्रीम कोर्ट की इस अहम सुनवाई से पहले देश के नामचीन 51 बुद्धिजीवियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुला पत्र लिखकर म्यांमार में जारी हिंसा के बीच रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस नहीं भेजे जाने की अपील की थी।
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देश के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े 51 लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे खुले खत पर हस्ताक्षर किये थे। इनमें कांग्रेस के सांसद शशि थरूर, योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, पूर्व गृहमंत्री जीके पिल्लई, पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम, ऐक्टिविस्ट तीस्ता शीतलवाड़, पत्रकार करन थापर, सागरिका घोष, के अलावा अभिनेत्री स्वरा भास्कर के नाम भी शामिल हैं।
उन्होंने पीएम को लिखे खत में कहा था, 'रोहिंग्या शरणार्थियों को भेजने के पीछे ये तर्क देना कि आने वाले समय में वो देश की सुरक्षा के लिये खतरा हो सकते हैं उसका तर्क ही गलत है। ऐसा कुछ भी नहीं है और इसके पीछे जो तथ्य दिये जा रहे हैं वो आधारहीन हैं।'
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