राइट टू प्राइवेसी: सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को पढ़ाया अमर्त्य सेन का पाठ

सुप्रीम कोर्ट ने अमर्त्य सेन की किताबों से उदाहरण लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निजता का पाठ पढ़ाया।

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pradeep tripathi
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राइट टू प्राइवेसी: सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को पढ़ाया अमर्त्य सेन का पाठ

अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन

सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में भारतीय नागरिकों को निजता का अधिकार दिया है। इसे अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार मानते हुए सभी नागरिकों की निजता को सुरक्षित किया है।

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जस्टिस खेहर की अध्यक्षता वाली 9 जजों की बेंच ने अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन की किताब 'डेवेलपमेंट एण्ड फ्रीडम' और दूसरी किताबो और लेखों की लाइनों को उदाहरण के तौर पर पेश किया।

अमर्त्य सेन की किताबों से उदाहरण लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निजता का पाठ पढ़ाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'आलोचना और समीक्षा लोकतंत्र का हिस्सा हैं। असहमति को जगह देना भी महत्वपूर्ण है। एक ऐसे महत्वपूर्ण मसले पर फैसला लेने के समय कोर्ट को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं को भी देखना होगा।'

केंद्र सरकार की दलील कि गरीब आर्थिक प्रगति को अपनी निजता से अधिक महत्व देता है को खारिज करने के लिये कोर्ट ने अमर्त्य सेन की लाइनों का उदाहरण दिया।

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कोर्ट ने कहा, 'ये कहना कि गरीब को राजनीतिक और सामाजिक अधिकार नहीं चाहिये और वो सिर्फ अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर चिंतित होता है, जैसे तर्क सदियों से गरीबों के मानवाधिकार का उल्लंघन करते आए हैं।'

बेंच ने कहा, 'जनता से जुड़े मुद्दों की समीक्षा स्वतंत्रता पर ही आधारित हैं। ऐसे में सामाजिक व राजनीतिक अधिकार और सामाजिक-आर्थिक आधिकार एक्सक्लूजिव नहीं बल्कि एक दूसरे के पूरक हैं। इस तरह की चर्चा अमर्त्य सेन ने अपनी किताबों और लेखों में भी कहा है।'

कोर्ट ने अपने आदेश में अमर्त्य सेन के लेखों का उदाहरण देते हुए कहा है कि जिस समाज में लोकतांत्रिक अधिकार मजबूत होते हैं वो सामाजिक-आर्थिक संकटों से निपटने में कम अधिकार वालों की अपेक्षा बेहतर होते हैं।

जजों ने अमर्त्य सेन की किताब डेवेलपमेंट ऐज़ फ्रीडम से कुछ लाइन का उदाहरण लेते हुए कहा, 'सेन के विश्लेषण के अनुसार नेताओं और सत्ता में बैठे लोगों के मिलने वाली राजनीतिक छूट ऐसी स्थिति को कम करने में नाकाफी होती है।'

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कोर्ट ने फैसले में कहा, 'भारत के परिप्रेक्ष्य में सेन ने कहा है कि 1943 में बंगाल का सूखा विनाशकारी इसलिये रहा क्योंकि ब्रिटिश राज में लोकतांत्रिक अधिकार नहीं थे। उस समय प्रेस पर कई प्रतिबंध लगाए गए और ब्रिटिश मीडिया ने इस पर चुप्पी साध रखी थी।'

कोर्ट ने आगे कहा, 'राजनीतिक छूट और लोकतांत्रिक अधिकार विकास के प्रमुख अंग माने जाते हैं। 1973 में महाराष्ट्र में आए सूखे से प्रति व्यक्ति खाद्यान्न की पैदावार सहारा-अफ्रीका की पैदावर की आधी रह गई थी। लेकिन वहां सूखे का प्रभाव उतना नहीं हुआ क्योंकि लोगों को विभिन्न योजनाओं में लगा दिया गया। इससे साबित होता है कि लोकतंत्र लोगों को सुरक्षा देने की भूमिका अदा करता है।'

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Source : News Nation Bureau

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