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सर्वोच्च न्यायालय का फैसला-निजता का अधिकार है मौलिक अधिकार

पूर्व में दिए गए इन दो फैसलों में कहा गया था कि संविधान निजता के अधिकार की सुरक्षा की गारंटी नहीं देता।

Updated on: 24 Aug 2017, 11:26 PM

नई दिल्ली:

सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है और संविधान में प्रदत्त जीवन एवं स्वतंत्रता के अधिकार के अभिन्न हिस्से के तौर पर इसे सुरक्षित रखा गया है।

भारत सरकार के निजता के अधिकार के मौलिक अधिकार न होने के दावे को खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय की नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाते हुए एम. पी. शर्मा बनाम खड़क सिंह के दो मामलों में पूर्व में दिए फैसलों को भी पलट दिया।

पूर्व में दिए गए इन दो फैसलों में कहा गया था कि संविधान निजता के अधिकार की सुरक्षा की गारंटी नहीं देता।

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे. एस. खेहर की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा, 'अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार को जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अभिन्न हिस्सा बताते हुए सुरक्षा प्रदान की गई है तथा संविधान के भाग-3 में प्रदत्त स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा है।'

यह फैसला सुनाने वाली संविधान पीठ में प्रधान न्यायाधीश के अलावा न्यायमूर्ति जे. चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति एस. ए. बोबडे, न्यायमूर्ति आर. के. अग्रवाल, न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति ए. एम. सप्रे, न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एस. के. कौल और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर शामिल थे।

इन नौ न्यायाधीशों ने छह फैसले सुनाए, हालांकि इस बात पर सभी न्यायाधीश सर्वसम्मत थे कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है।

न्यायमूर्ति कौल ने अपने फैसले में कहा, 'निजता के अधिकार, जो एक बेहद अहम अधिकार है, को स्पष्ट तौर पर संविधान के भाग-3 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों में माना जाए, लेकिन सीमा के साथ, जो भाग-3 से संबंधित हो। यह मौजूदा समय की मांग है। पुराने आदेश बदलते रहते हैं और नए आदेश के लिए जगह रिक्त करते रहते हैं।'

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने प्रधान न्यायाधीश सहित चार न्यायाधीशों की ओर से दिए फैसले में कहा कि केंद्र सरकार और उसकी समर्थक राज्य सरकारों द्वारा किया गया दावा उस वजह को समझने में धोखेबाजी युक्त कमी है, कि अधिकारों को आखिर क्यों भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के रूप में सबसे ऊपर रखा गया है।

केंद्र सरकार और उसकी समर्थक राज्य सरकारों ने दावा किया था कि निजता के संवैधानिक अधिकार को मौलिक अधिकार मानने की जरूरत नहीं है।

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चारों न्यायाधीशों ने केंद्र सरकार के उस तर्क को भी खारिज कर दिया, जिसे रखते हुए तत्कालीन महाधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा था निजता का अधिकार संभ्रातीय विचार वाला है।

सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में कहा, 'महाधिवक्ता ने हमारे समाने तर्क रखा था कि राष्ट्र की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए निजता के अधिकार के साथ समझौता किया जा सकता है। लेकिन हमारा मानना है कि निजता के अधिकार को संभ्रातीय विचार वाला मानने का तर्क टिकने योग्य नहीं है।'

अदालत ने कहा कि नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार एवं सामाजिक-आर्थिक अधिकार एकदूसरे के खिलाफ नहीं हो सकते, क्योंकि वे 'एकदूसरे के पूरक हैं, न कि पारस्परिक समावेशी'।

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अदालत ने सूचना की निजता पर कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के अलावा राष्ट्र के पास इस तरह की सूचनाएं एकत्रित करने एवं भंडारण करने के लिए न्यायोजित कारण होने चाहिए।

न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने अपने फैसले में कहा कि सभी उदारवादी लोकतंत्रों का मानना है कि राष्ट्र को मानव जीवन के कुछ निश्चित पहलुओं में अयोग्य प्राधिकारों को दखल नहीं करने देना चाहिए।

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