सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को इस सवाल पर अपना फैसला सुना सकता है कि क्या निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना जा सकता है?
प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने इस सवाल पर तीन सप्ताह के दौरान करीब छह दिन तक सुनवाई की थी। यह सुनवाई दो अगस्त को पूरी हुई थी। सुनवाई के दौरान निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार में शामिल करने के पक्ष और विरोध में दलीलें दी गयीं।
सरकार की तरफ से ये दलील दी जा रही है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने तय किया कि आधार कार्ड की वैधता पर सुनवाई से पहले ये तय किया जाए कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं।
एक बार इस बारे में फैसला ले लिया जायेगा, उसके बाद पांच जजों की बेंच आधार कार्ड की वैधता को लेकर सुनवाई करेगी।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में आधार कार्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं लंबित हैं। याचिकाकर्ताओं की मुख्य दलील है कि आधार कार्ड के लिए बायोमेट्रिक रिकॉर्ड की जानकारी लेना निजता का हनन है।
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आधार कार्ड योजना को सामाजिक न्याय से जोड़ते हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा कि वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट भी ये तस्दीक करती है कि हर विकासशील देश में आधार कार्ड जैसी योजना होनी चाहिए।
कोई शख्स ये दावा नहीं कर सकता कि उसके बायोमेट्रिक रिकॉर्ड लेने से मूल अधिकार का हनन हो रहा है। इस देश में करोड़ो लोग शहरों में फुटपाथ और झुग्गी में रहने को मजबूर हैं।
आधार जैसी योजना उन्हें भोजन, आवास जैसे बुनियादी अधिकारों को दिलाने के लिए लाई गई है, ताकि उनका जीवन स्तर सुधर सके। महज कुछ लोगों के निजता के अधिकार की दुहाई देने से (आधार का विरोध करने वाले) एक बड़ी आबादी को उनकी बुनियादी जरूरतों से वंचित नही किया जा सकता।
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वहीं एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम को बताया कि लोगों के निजी डेटा के संरक्षण को लेकर उपाय सुझाने के लिए 10 सदस्यीय कमिटी गठित की गई है। जिसके अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी एन श्रीकृष्णा हैं।
अगर सुप्रीम कोर्ट की ये बेंच गुरुवार को तय कर देती है कि निजता का अधिकार मूल अधिकार है, तो ऐसी स्थिति में इसका सबसे पहला असर सरकार की आधार कार्ड योजना पर होगा, जिसमें बायोमेट्रिक रिकॉर्ड लिए जाने को निजता के अधिकार का हनन बताया गया है।
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Source : News Nation Bureau