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अयोध्या मसले पर फैसला सर्वसम्मत होने से पुनर्विचार याचिका के सफल होने के आसार कम

जानकारों का मानना है कि इस याचिका के सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सफल होने की संभावनाएं बेहद कम हैं. इसकी वजह यह है कि अयोध्या मसले पर फैसला सर्वसम्मति से लिया गया है.

Updated on: 17 Nov 2019, 09:46 AM

highlights

  • सर्वसम्मत फैसला होने से अयोध्या मसले पर पुनर्विचार याचिका नहीं होगी सफल.
  • यदि फैसले में एक भी विरोधी सुर होता, तो रास्ता आसान हो सकता था.
  • फिर मामला रामलला विराजमान के पक्ष में हुआ इसलिए ढांचा महत्वपूर्ण नहीं रहा.

New Delhi:

अयोध्या मामले (Ayodhya Verdict) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ मुस्लिम पक्ष पुनर्विचार याचिका (Review Petition) दाखिल करने की सोच रहा है. हालांकि जानकारों का मानना है कि इस याचिका के सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सफल होने की संभावनाएं बेहद कम हैं. इसकी वजह यह है कि अयोध्या मसले पर फैसला सर्वसम्मति से लिया गया है, जिसमें विरोध या नाराजगी का कोई सुर नहीं है. ऐसे में पुनर्विचार याचिका का विफल होना तय है. कहा जा रहा है कि यदि फैसले में एक भी विरोधी सुर होता, तो रास्ता आसान हो सकता था. जैसे सबरीमाला मंदिर (Sabrimala Temple) के मामले में हुआ. इसमें एक जज इंदु मल्होत्रा ने फैसले के प्रति कड़ा विरोध दर्ज कराया था.

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दीवानी मामले में गुंजाइश है कम
अयोध्या एक शुद्ध दीवानी विवाद है जो लिखित प्लैंट और दलीलों के आधार पर आगे बढ़ता है. जानकारों का कहना है कि आपराधिक मुकदमे में भी गुंजाइश होती है कि सुनवाई में अतिरिक्त सबूत या गवाहों को बुला लिया जाए, लेकिन दीवानी केस में इसकी अनुमति नहीं है. एक बार लिखित में जो मुकदमा दे दिया, वह अंतिम हो जाता है. दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि कोई पुनर्विचार याचिका दाखिल होती है तो उसे फैसला देने वाले जज ही सुनेंगे. इस लिहाज से देखें तो एक जज बदलने कि उम्मीद है क्योंकि फैसला देने वाली पीठ के मुखिया जस्टिस रंजन गोगोई (Ranjan Gogoi) 17 नवंबर को रिटायर हो चुके हैं. उनकी जगह कौन जज पीठ में आएगा इसका फैसला नए मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे तय करेंगे.

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मुस्लिम पक्ष का दावा हो चुका है कमजोर
संविधान और कानून के जानकारों के अनुसार, मुस्लिम पक्ष जिस बिंदु को अपने पक्ष में मान रहा है वह यह है कि कोर्ट ने 1949 में चोरी से मूर्तियां ढांचे में रखना और उसके चालीस साल बाद 1992 में उस ढांचे को ध्वस्त कर देना गैरकानूनी और धर्मनिरपेक्ष (Secular) सिद्धांतों के खिलाफ करार दिया है. इस ध्वस्तीकरण के कारण ही मुसलमानों (Muslims) को बतौर मुआवजा अयोध्या में मस्जिद के लिए पांच एकड़ का प्लॉट देने का आदेश दिया गया है. मुकदमे में मुस्लिम पक्ष की यह मांग नहीं थी कि उन्हें वैकल्पिक प्लॉट दिया जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पूर्ण न्याय करते हुए अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल कर प्लॉट देने का आदेश दिया. कोर्ट ये राहत देने से गुरेज भी कर सकता था क्योंकि ये कभी मांगा ही नहीं गया.

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मुस्लिम पक्ष में डिक्री नहीं हुआ मामला
दरअसल यह ढांचा एक केस प्रॉपर्टी था जिसे कोर्ट का फैसला आने तक बरकरार रखा जाना चाहिए था. यह सरकार का फर्ज था कि इसकी सुरक्षा करे. इसकी सुरक्षा में विफल रहने के लिए उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (Kalyan Singh) को अदालत ने एक दिन के लिए जेल भी भेजा था. वहीं ढांचा तोड़ने के मामले में लखनऊ में विशेष सीबीआई कोर्ट में तमाम नेताओं और कारसेवकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चल रहा है. उसका फैसला अगले साल अप्रैल में आ सकता है. दूसरे यह कि तथाकथित मस्जिद तोड़ने पर गई कठोर टिप्पणियां तब महत्वपूर्ण होती जब मामला मुस्लिम पक्षकारों के पक्ष में डिक्री होता. चूंकि मामला रामलला विराजमान के पक्ष में डिक्री हुआ इसलिए ढांचा उतना महत्वपूर्ण नहीं रह गया, क्योंकि हिन्दू पक्ष वहां मंदिर ही बनाता.

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मुस्लिम पक्ष के मुद्दों पर हो चुकी है पूरी सुनवाई
यही नहीं, जानकार कहते हैं कि मुस्लिम पक्ष ने जो मुद्दे उठाए कोर्ट ने उन पर पूरी सुनवाई की है. गौरतलब है कि जन्म स्थान पुनरुद्धार समिति के वकील ने कोर्ट में एक किताब का जिक्र किया था जिसमें जन्मस्थान का नक्शा था. कोर्ट ने उस स्वीकार नहीं किया. वजह यह रही कि इसे ट्रायल के दौरान हाईकोर्ट में नहीं रखा गया था. मुस्लिम पक्ष के वकील ने नक्शा देने का भारी विरोध किया था और उसे कोर्ट में ही फाड़ दिया था, जबकि हिन्दू पक्ष ने 1855 से एडवर्स कब्जा साबित किया.