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गणतंत्र को शर्मसार करती ये तस्वीरें बयां करती है 'उपद्रवी' सोच

तिरंगा थामे उपद्रवियों को वॉशिंगटन के कैपिटल हिल हिंसा की तरह राष्ट्रीय राजधानी पर कब्जा करने की छूट दी जा सकती है.

Updated on: 26 Jan 2021, 02:07 PM

नई दिल्ली:

आजाद भारत के 72वें गणतंत्र दिवस (Republic Day) पर किसान नेताओं के 'खोखले वादों' ने पूरे देश को न सिर्फ शर्मसार कर दिया है, बल्कि राष्ट्रीय पर्व के दिन को भी कलंकित कर दिया है. तुर्रा यह है कि राष्ट्रीय राजधानी के दिल पर तांडव करती इस घटना के लिए पूरे तौर पर पुलिस-प्रशासन को ही जिम्मेदार करार दिया गया है. कल तक शांतिपूर्ण ट्रैक्टर रैली की बात कर रहे किसान नेता मंगलवार को हंगामा शुरू होने के घंटों बाद सामने आए और उग्र किसानों को रोकने के बजाय पुलिस पर ही उकसाने का आरोप मढ़ा. हद तो यह है कि यही किसान नेता कह रहे हैं कि अब तो धरना दिल्ली में ही दिया जाएगा, जब तक तीनों कृषि कानून रद्द नहीं किए जाते.

याद आ गई कैपिटल हिल हिंसा
सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात तो यही है कि किसान नेताओं ने वादा किया था कि ट्रैक्टर रैली लेकर आने वाले किसान तिरंगे के साथ हैं. यह अलग बात है कि हाथ और ट्रैक्टर पर फहरा रहे किसान उपद्रवी में तब्दील हो गए. सवाल उठता है कि क्या तिरंगा थामे उपद्रवियों को वॉशिंगटन के कैपिटल हिल हिंसा की तरह राष्ट्रीय राजधानी पर कब्जा करने की छूट दी जा सकती है.

जय जवान जय किसान का नारा छोड़ जवानों को ही निशाना बनाया
जय जवान जय किसान के नारे उछालते आ रहे इन अराजक तत्वों ने गणतंत्र दिवस के ही दिन जवानों को निशाना बनाया. कहीं दौड़ा कर डंडे लगे तिरंगों से पीटा, तो कहीं धक्का-मुक्की की. यह उन जवानों का सीधा-सीधा अपमान है, जिन्हें गणतंत्र दिवस पर श्रद्धासुमन अर्पित किए जाते हैं. उन जवानों की तौहीन है जो गणतंत्र को बचाने के लिए सीमा पर और घरेलू मोर्चे पर डटे रहते हैं

हाथों में तलवार लेकर धमकाते निहंग
दिल्ली सीमा पर हाथ में तलवारें लहराते घोड़े पर सवार और पैदल निहंगों ने पुलिसवालों तक को निशाना बनाया. यह तब है जब शांतिपूर्ण रैली की बात की गई थी. बैरिकेड्स तोड़ दिए गए. डीटीसी की बसें पलट दी गईं.

सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान
आईटीओ पर गाजीपुर बॉर्डर से आए किसानों ने रोकने के लिए खड़ी की गई डीटीसी बसों को निशाना बनाया गया. यह तब है जब सरकारी संपत्ति को नुकसान न पहुंचाने के लिए सर्वोच्च अदालत भी गलत ठहरा चुकी है.

शाहीन बाग की यादें हो आईं ताजा
किसानों के इस उपद्रव ने शाहीन बाग की याद दिला दी है. सोशल मीडिया पर कई यूजर्स कहते पाए गए कि यह शाहीन बाग पार्ट 2 लग रहा है. इससे उन आशंकाओं की पुष्टि ही होती है कि किसान आंदोलन में कुछ राष्ट्रविरोधी ताकतें सक्रिय हो गई हैं.