विरोध के बीच रंजन गोगोई बोले- मुझे शपथ लेने दीजिए, फिर मैं राज्यसभा मनोनयन स्वीकार करने पर... करूंगा

पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई (Ranjan gogoi) ने खुद को राज्यसभा (Rajya Sabha) के लिए मनोनीत किए जाने को लेकर उठे विवाद के बीच मंगलवार को कहा कि शपथ लेने के बाद उच्च सदन की सीट की पेशकश स्वीकार करने के बारे में वह विस्तार से बोलेंगे.

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Deepak Pandey
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पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई (Ranjan gogoi)( Photo Credit : फाइल फोटो)

पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई (Ranjan gogoi) ने खुद को राज्यसभा (Rajya Sabha) के लिए मनोनीत किए जाने को लेकर उठे विवाद के बीच मंगलवार को कहा कि शपथ लेने के बाद उच्च सदन की सीट की पेशकश स्वीकार करने के बारे में वह विस्तार से बोलेंगे. गुवाहाटी में अपने आवास पर मुलाकात के लिए पहुंचे संवाददाताओं से संक्षिप्त बातचीत में गोगोई ने कहा कि मैं संभवत: कल दिल्ली जाऊंगा. 

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पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि पहले मुझे शपथ लेने दीजिए, इसके बाद मैं मीडिया से इस बारे में विस्तार से चर्चा करूंगा कि मैंने यह पद क्यों स्वीकार किया और मैं राज्यसभा क्यों जा रहा हूं. सोमवार को एक गजट अधिसूचना में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने एक मनोनीत सदस्य का पद रिक्त होने पर इस सीट के लिए गोगोई को मनोनीत किया. गोगोई को मनोनीत किए जाने को लेकर सियासी गलियारों और अन्य हलकों में भी चर्चा है. गोगोई पिछले साल नवंबर में भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के पद से सेवानिवृत्त हुए थे. वह इस पद पर करीब 13 महीनों तक रहे.

विधायिका का नजरिया भी न्यायपालिका के सामने आएगाः गोगोई

राज्यसभा के लिए मनोनयन की हो रही आलोचना पर रंजन गोगोई ने एक स्थानीय समाचार चैनल को बताया कि मैंने राज्यसभा के लिए मनोनयन का प्रस्ताव इस दृढ़विश्वास की वजह से स्वीकार किया कि न्यायपालिका और विधायिका को किसी बिंदु पर राष्ट्र निर्माण के लिए साथ मिलकर काम करना चाहिए. उन्होंने कहा, “संसद में मेरी मौजूदगी विधायिका के सामने न्यायपालिका के नजरिये को रखने का एक अवसर होगी.” इसी तरह विधायिका का नजरिया भी न्यायपालिका के सामने आएगा.

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पूर्व सीजेआई ने कहा, “भगवान संसद में मुझे स्वतंत्र आवाज की शक्ति दे. मेरे पास कहने को काफी कुछ है, लेकिन मुझे संसद में शपथ लेने दीजिए और तब मैं बोलूंगा.” गोगोई उच्चतम न्यायालय के उन चार शीर्ष मौजूदा न्यायाधीशों में थे जिन्होंने जनवरी 2018 में अभूतपूर्व संवाददाता सम्मेलन कर दावा किया था कि तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने “पसंदीदा न्यायाधीशों को चुनिंदा मामले सौंपे” और “संवेदनशील मामले कनिष्ठ न्यायाधीशों को सौंपे गए.”

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