रिकॉर्ड मतों से लोकसभा चुनाव जीतने वाले रामविलास की राजनीति में थी अलग पहचान
बिहार में दलित राजनीति का सिरमौर बने रामविलास पासवान गुरुवार को ऐसे सफर पर निकल गए, जहां से लोग फिर कभी नहीं लौटते. रामविलास अनंत सफर पर भले ही निकल गए हों, लेकिन राजनीति में उनकी कमी कोई पूरी नहीं कर सकेगा.
नई दिल्ली:
बिहार में दलित राजनीति का सिरमौर बने रामविलास पासवान गुरुवार को ऐसे सफर पर निकल गए, जहां से लोग फिर कभी नहीं लौटते. रामविलास अनंत सफर पर भले ही निकल गए हों, लेकिन राजनीति में उनकी कमी कोई पूरी नहीं कर सकेगा. सत्ता पक्ष रहा हो या विपक्ष सभी के लिए सर्वसुलभ और सभी नेताओं की इज्जत करने वाले रामविलास के जाने के बाद सभी राजनीतिक दलों के नेता उनके निधन पर मर्माहत हैं. दलितों की राजनीति के लिए अपनी पहचान बना चुके रामविलास का जन्म बिहार के खगड़िया जिले के शाहरबन्नी गांव में 5 जुलाई 1946 को हुआ था. रामविलास पासवान का राजनीतिक सफर 1969 में तब शुरू हुआ था, जब वे संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर बिहार विधानसभा के सदस्य बने थे. पासवान राजनीति में आने से पहले बिहार प्रशासनिक सेवा में अधिकारी थे.
पासवान ने आपातकाल का पूरा दौर जेल में गुजारा. आपातकाल के बाद पासवान जनता दल में शामिल हो गए. जनता दल के ही टिकट पर उन्होंने हाजीपुर संसदीय सीट से 1977 के आम चुनाव में 4 लाख से अधिक मतों से जीत हासिल की, जो इतिहास में दर्ज हो गई. रिकॉर्ड अंतर से यह चुनाव जीतकर वो देशभर में चर्चित हो गए. समाजवादी नेताओं में शुमार वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी कहते हैं कि रामविलास पासवान किसी भी गठबंधन में रहे हों, लेकिन वे किसी से व्यक्तिगत तौर पर वैर भाव नहीं रखते थे. उन्होंने अपने संस्मरणों की बात करते हुए कहा कि अपने घर की एक शादी में उन्हें गलती से निमंत्रण नहीं भेजा था, जब उन्हें इसकी खबर लगी तो वे बिना इंतजार किए हमारे दरवाजे पर पहुंच गए और शिकायत करते हुए कहा कि आपने क्यों नहीं बुलाया. तिवारी ने कहा कि उस वक्त हम दोनों अलग-अलग पार्टियों में थे.
वर्ष 1977 की रिकॉर्ड जीत के बाद रामविलास पासवान को 1980 और 1989 के लोकसभा चुनाव में जीत मिली और फिर वे केंद्र सरकार में मंत्री बन गए. कई सालों तक विभिन्न सरकारों में पासवान ने रेल से लेकर दूरसंचार और कोयला मंत्रालय तक की जिम्मेदारी संभाली. इस बीच, वे भाजपा, कांग्रेस, राजद और जदयू के साथ कई गठबंधनों में रहे और केंद्र सरकार में मंत्री बने रहे. पासवान नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली दोनों सरकारों में खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्री रहे. रामविलास पासवान गोधरा दंगों के बाद तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी वाली सरकार में मंत्री पद से इस्तीफा देकर राजग से नाता तोड़ लिया था. इसके बाद पासवान कांग्रेस की नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) में शामिल हुए और मनमोहन सिंह कैबिनेट में दो बार मंत्री रहे. 2014 में पासवान एक बार फिर संप्रग का साथ छोड़कर राजग में शामिल हो गए.
छह प्रधानमंत्रियों के साथ काम कर अनूठा रिकार्ड बनाने वाले रामविलास को मजाकिया लहजे में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने एक बार राजनीति का 'मौसम वैज्ञानिक' बताया था, बाद में वो इस नाम से चर्चित हो गए. लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की स्थापना करने वाले रामविलास ने जयप्रकाश आंदेलन में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. उनको जानने वाले कहते हैं कि उन्होंने राजनीति ही समाज में अंतिम व्यक्ति तक सुविधा पहुंचाने के लिए प्रारंभ की थी. वे किसी को गरीबी में देखकर भावुक हो जाते थे. जदयू के प्रदेश अध्यक्ष और रामविलास के साथ 45 सालों से जुड़े रहने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह बताते हैं कि जेपी आंदोलन में वे दोनों पटना के फुलवारी जेल में साथ रहे थे. उन्होंने कहा यह भावुक क्षण है. उनकी स्मृतियां अब दिखाई पड़ रही हैं. वे बताते हैं, राज्यसभा में भी वे कभी दिखाई पड़ जाते थे तो बिना हाल-चाल जाने गुजरते नहीं थे.
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