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अयोध्या विवाद : सुप्रीम कोर्ट के सुनवाई टालने के बाद अब 'सक्रिय बीजेपी' सरकार के सामने ये हैं 3 विकल्‍प

अयोध्‍या में राम मंदिर के मामले में सुप्रीम कोर्ट के सुनवाई टालने से केंद्र सरकार की सांसत बढ़ गई है. अब 2019 के चुनाव से पहले अयोध्‍या में विवादित जगह को लेकर फैसला आने की उम्‍मीद कम हो गई है. इससे सरकार पर राम मंदिर को लेकर अध्‍यादेश लाने का दबाव बढ़ गया है.

Updated on: 24 Nov 2018, 09:10 AM

नई दिल्ली:

अयोध्‍या में राम मंदिर के मामले में सुप्रीम कोर्ट के सुनवाई टालने से केंद्र सरकार की सांसत बढ़ गई है. अब 2019 के चुनाव से पहले अयोध्‍या में विवादित जगह को लेकर फैसला आने की उम्‍मीद कम हो गई है. इससे सरकार पर राम मंदिर को लेकर अध्‍यादेश लाने का दबाव बढ़ गया है. राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत ने भी इसकी वकालत की है. इसके अलावा विश्‍व हिन्‍दू परिषद और साधु-संतों की ओर से भी लगातार दबाव बनाया जा रहा है. संतों ने तो कुंभ से पहले अध्‍यादेश लाने की चेतावनी भी दे दी है. अब सवाल यह है कि सरकार के सामने क्‍या विकल्‍प हैं.

पहला विकल्‍प : कोर्ट के फैसले का इंतजार करे
सरकार के सामने पहला विकल्‍प है कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करे और जो भी फैसला आए, उसका पालन करे. इसमें सरकार के सामने दिक्‍कत यह है कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई लगातार टल रही है और सरकार चुनाव में इसका फायदा नहीं उठा सकती या इससे सरकार के खिलाफ माहौल बन सकता है और चुनाव में उसे परेशानी झेलनी पड़ सकती है.
क्‍या होगा नुकसान : अभी तक इस मुद्दे पर कोर्ट के फैसले का इंतजार करते रहने की वकालत करने वाली विपक्षी पार्टियां चुनाव में इस मुद्दे को उठा सकती हैं और बीजेपी पर जनता को बरगलाने का आरोप लगा सकती हैं. इसके अलावा आरएसएस, विश्‍व हिन्‍दू परिषद और अन्‍य हिन्‍दूवादी संगठन बीजेपी का साथ छोड़ सकते हैं, जिसका उसे बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. चुनाव में भी बीजेपी नेताओं को जनता के सामने जवाब देना भारी पड़ जाएगा.

दूसरा विकल्‍प : अध्यादेश लाए केंद्र सरकार
सरकार राम मंदिर बनाने को लेकर अध्‍यादेश ला सकती है, जिसकी वकालत राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ और अन्‍य हिन्‍दूवादी संगठन कर रहे हैं. साधु-संतों ने भी कुंभ से पहले सरकार से अध्‍यादेश लाने के लिए अल्‍टीमेटम दे दिया है. इससे सॉफ्ट हिन्‍दुत्‍व का कार्ड खेल रहे कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी को अपना रुख स्‍पष्‍ट करने का दबाव बढ़ जाएगा. चुनाव में भी बाकी दल बैकफुट पर आ जाएंगे.
क्‍या होगा नुकसान : केंद्र सरकार के अध्‍यादेश लाने पर हो सकता है कि राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के सहयोगी दल बिदक जाएं और अपनी राह अलग कर लें. इससे राजग का आकार छोटा पड़ जाएगा और इसका भी चुनाव में खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. इसके अलावा केंद्र सरकार पर यह भी आरोप लगेंगे कि सुप्रीम कोर्ट में मामला विचाराधीन होने के बाद भी अध्‍यादेश लाकर सरकार ने गलत किया है.

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तीसरा विकल्‍प : सरकार मानसून सत्र में विधेयक लाए
सरकार के सामने तीसरा और अंतिम विकल्‍प यह है कि वह संसद के आगामी मानसून सत्र में राम मंदिर बनाने से संबंधित विधेयक लेकर आए. विधेयक पर बहस के दौरान सभी दलों को अपना रुख साफ करना होगा और बताना होगा कि वह राम मंदिर के पक्ष में हैं या नहीं. राज्‍यसभा से पारित न होने पर सरकार दोनों सदनों का संयुक्‍त सत्र बुलाकर विधेयक पारित करा सकती है, लेकिन इसके लिए सरकार को दृढ़ इच्‍छा शक्‍ति दिखानी होगी.
क्‍या होगा नुकसान : संसद में विधेयक लाने पर सरकार के सामने यह दिक्‍कत पेश आएगी कि राज्‍यसभा में उसके पास अब भी बहुमत नहीं है, लिहाजा ऊपरी सदन से इस विधेयक का पारित होना मुश्‍किल होगा. वहीं सरकार के वो सहयोगी दल, जो धर्मनिरपेक्षता का झंडा बुलंद करते हैं, वो किनारे कर लेंगे और इससे राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का आकार छोटा हो जाएगा. इससे चुनाव में बीजेपी को मुश्‍किलें पेश आ सकती हैं. सरकार पर हिन्‍दूवादी होने का आरोप लगेगा.

क्‍या सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित होने पर भी लाया जा सकता है अध्‍यादेश
संविधान में अध्‍यादेश लाने के लिए सरकार को पूरी छूट है. संविधान के अनुच्‍छेद 123 के अनुसार, राष्‍ट्रपति को अध्‍यादेश जारी करने का अधिकार है. इस अधिकार का इस्‍तेमाल राष्‍ट्रपति तभी करते हैं, जब संसद का सत्र नहीं चल रहा हो और कानून बनाना जरूरी हो. इसके लिए किसी प्रकार का अंकुश नहीं है.

सरकार पर अध्‍यादेश या विधेयक लाने का दबाव क्‍यों?
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल की शुरुआत में दलित उत्‍पीड़न एक्‍ट के कुछ अंश को अवैधानिक करार देते हुए उसे रद कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद किए गए प्रावधान को केंद्र सरकार ने संशोधन विधेयक संसद से पारित करा दिया था, जिससे वे प्रावधान और सख्‍त हो गए थे. यानी मुकदमा दर्ज कराने से पहले प्राथमिक जांच कराने की जरूरत नहीं होगी. इस कानून के दायरे में आने वाले आरोपी की गिरफ्तारी के लिए किसी भी तरह के अनुमोदन की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. सरकार के इस कदम के बाद से सवर्ण नाराज हो गए. उसके बाद से सरकार पर इस बात का दबाव बढ़ने लगा कि अगर सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट सकती है तो राम मंदिर पर इस तरह का कदम क्‍यों नहीं उठाती?

अगले साल जनवरी में होगी मामले की सुनवाई
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को (29 अक्‍टूबर) को सुनवाई शुरू हुई. नई बेंच के गठन होने के बाद यह पहली सुनवाई थी. हालांकि सुनवाई एक बार फिर अगले साल जनवरी तक के लिए टल गई. CJI रंजन गोगोई ने स्‍पष्‍ट किया किया कि इस मामले में तुरंत सुनवाई नहीं होगी.

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