आज खुश तो बहुत होंगे लालकृष्ण आडवाणी (Lalkrishna Adwani), बर्थडे (Birthday) के दूसरे दिन मिला जीवन का अनमोल तोहफा
Ayodhya Verdict : राम मंदिर आंदोलन (Ram Mandir Andolan) के पुरोधा रहे लालकृष्ण आडवाणी आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुनकर आह्लादित हो गए होंगे. उनकी खुशी इसलिए भी बढ़ गई होगी, क्योंकि उनके जन्मदिन के दूसरे ही दिन सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अयोध्या में राम मंदिर (Ram Mandir In Ayodhya) बनाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है.
नई दिल्ली:
आज बीजेपी के संस्थापक, पूर्व अध्यक्ष और देश के प्रधानमंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी (Lalkrishna Adwani) खुश तो बहुत होंगे. आज उन्हें जीवन का अनमोल तोहफा जो मिला है. जी हां, राम मंदिर आंदोलन (Ram Mandir Andolan) के पुरोधा रहे लालकृष्ण आडवाणी आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुनकर आह्लादित हो गए होंगे. उनकी खुशी इसलिए भी बढ़ गई होगी, क्योंकि उनके जन्मदिन के दूसरे ही दिन सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अयोध्या में राम मंदिर (Ram Mandir In Ayodhya) बनाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम मंदिर के पक्ष में फैसला देते हुए केंद्र सरकार को तीन माह में बोर्ड ऑफ ट्रस्टी (Board Of Trusty) बनाने और मंदिर के लिए योजना पर काम शुरू करने का आदेश दिया है.
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अपनी स्थापना के समय से ही बीजेपी (BJP) ने जिन तीन मुद्दों को प्रमुखता से उठाया और आंदोलन चलाया, उनमें राम मंदिर आंदोलन प्रमुख है. राम मंदिर आंदोलन से ही बीजेपी को हिन्दुत्व की राजनीति करने वाली पार्टी के तौर पर जाना गया. पहले हिन्दुत्व बीजेपी के लिए राजनीतिक कमजोरी के तौर पर जाना जाता था, लेकिन अब वही उसकी पहचान बन चुका है और इसका सारा श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह हैं लालकृष्ण आडवाणी. राम मंदिर को लेकर लालकृष्ण आडवाणी ने देश के बड़े हिस्से में राम रथ यात्रा निकाली. इसी राम रथ यात्रा के दौरान बिहार में उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया. तब वहां मुसलमान और यादव की राजनीति के झंडाबरदार लालू प्रसाद यादव की सरकार थी. फिर भी न झुके, न डिगे लालकृष्ण आडवाणी अपने उद्देश्य को लेकर हमेशा सचेत रहे और आगे बढ़ते रहे.
92 साल के बीजेपी के पितामह लालकृष्ण आडवाणी को 1992 के अयोध्या आंदोलन का नायक माना जाता है. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का संकल्प लेकर 1990 में उन्होंने गुजरात के सोमनाथ से रथ यात्रा निकाली. इस रथयात्रा ने उन्हें हिन्दुत्व के सबसे बड़ा मसीहा बना दिया. लालकृष्ण आडवाणी 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा स्थापित जनसंघ से जुड़े. 1977 में जनता पार्टी से जुड़े. 1980 में बीजेपी की स्थापना के समय से लेकर करीब तीन दशकों तक वे पार्टी के शीर्ष नेता रहे. बीजेपी की पूरी राजनीति आडवाणी के इर्द-गिर्द घूमती रही. लालकृष्ण आडवाणी ने हिन्दुस्तान की राजनीति में हिन्दुत्व का प्रयोग किया और आज उसी का फल है कि पार्टी न केवल देश, बल्कि विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है. राम मंदिर आंदोलन, अनुच्छेद 370 और समान नागरिक संहिता के मुद्दों के बल पर 1984 में 2 सीटों वाली पार्टी 2019 में 303 सीटों पर आ चुकी है.
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वैसे तो राम मंदिर आंदोलन की शुरुआत 1980 में ही विश्व हिन्दू परिषद ने कर दिया था, लेकिन इस आंदोलन को राजनीतिक कवच नहीं मिल रहा था. आडवाणी ने मौका भांप लिया और इसे भुनाने में लग गए. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति की लहर में बीजेपी को भले ही दो सीटें मिलीं, लेकिन 1989 में बीजेपी की सीटें 86 हो गईं. इसके बाद आडवाणी पूरी ताकत के साथ राम मंदिर आंदोलन में जुट गए. उन्होंने रथयात्रा निकाली और इसके लिए सोमनाथ की जगह चुनी. रथयात्रा का समापन अयोध्या में होना था. सोमनाथ और अयोध्या के बारे में लोग मानते थे कि मुस्लिम आक्रांताओं ने इन दोनों जगहों पर मंदिरों को तोड़ा था.
25 सितंबर 1990 को आडवाणी ने सोमनाथ से राम रथ यात्रा निकाली. अपने जोशीले भाषणों के दम पर वे हिन्दुत्व के नायक बन गए. आडवाणी का इरादा 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचने का था, जहां वे मंदिर निर्माण शुरू करने के लिए 'कारसेवा' में भाग लेने वाले थे, लेकिन बिहार के समस्तीपुर में 23 अक्टूबर को उन्हें तत्कालीन सीएम लालू यादव के आदेश पर गिरफ्तार कर लिया गया. इस कारण आडवाणी की रथ यात्रा समाप्त हो गई, लेकिन 1991 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी सीटें 120 तक पहुंच गई.
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6 दिसंबर 1992 को हजारों कारसेवक अयोध्या में जमा थे. लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती जैसे नेता वहां मौजूद थे. देखते ही देखते बेकाबू भीड़ ने बाबरी मस्जिद ढहा दी, जिसका मुकदमा आज भी लालकृष्ण आडवाणी पर चल रहा है. 1995 में आडवाणी ने वाजपेयी को पीएम पद का दावेदार बताकर सबको हैरान कर दिया था. उस समय 1996 में आडवाणी पर हवाला कांड में शामिल होने का आरोप लगा. विपक्ष के उंगली उठाने से पहले ही उन्होंने संसद की सदस्यता छोड़ और बाद में बेदाग बरी भी हो गए.
अविभाजित भारत के सिंध प्रांत में 8 नवंबर 1927 को लालकृष्ण आडवाणी का जन्म हुआ था. पिता कृष्णचंद डी आडवाणी और माता ज्ञानी देवी के घर पैदा हुए लालकृष्ण आडवाणी की पढ़ाई पाकिस्तान के कराची के स्कूल में हुई और सिंध के कॉलेज में दाखिला लिया. देश का बंटवारा हुआ तो उनका परिवार मुंबई आ गया. आडवाणी 14 साल की अवस्था में ही संघ से जुड़ गए थे.
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