बॉर्डर पर गन्ने का रस निकालने के लिए लगा कोल्हू, राकेश टिकैत ने चरखे से काता सूत
राकेश टिकैत से चरखा चलाने के पीछे की वजह जानी तो उन्होंने कहा कि, महात्मा गांधी ने देश के लिए सूत काता और गांव की महिला घर घर में सूत कातती थी. कपड़े का काम गांव में होता था, बाजार पर निर्भर नहीं थे, स्वेदशी की परंपरा इसी से मापी जाती थी.
highlights
- कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन के बीच अब गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों ने कोल्हू लगा दिया है.
- गुजरात से कुछ प्रदर्शनकारी चरखा लेकर यहां पहुंचे.
- राकेश टिकैत ने रविवार को कोल्हू चलाकर किसानों के लिए गन्ने का रस निकाला.
नई दिल्ली :
कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन के बीच अब गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों ने कोल्हू लगा दिया है. वहीं दूसरी ओर गुजरात से कुछ प्रदर्शनकारी चरखा लेकर यहां पहुंचे. भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने रविवार को कोल्हू चलाकर किसानों के लिए गन्ने का रस निकाला. उन्होंने चरखा चला कर सूत भी काता. भाकियू प्रवक्ता टिकैत ने कोल्हू चलाने के बाद आईएएनएस को बताया कि, कोल्हू गन्ने का रस पीने के लिए लगाया गया है. किसान कोल्ड ड्रिंक नहीं सिर्फ जूस पीएगा. राकेश टिकैत के मुताबिक सन 1995 के दौरान हुये आंदोलन के दौरान भी कोल्हू दिल्ली में लगाया गया था, अब ये दूसरी बार आंदोलन के दौरान कोल्हू लगाया गया है.
गुजरात से कुछ प्रदर्शनकारी चरखा लेकर यहां पहुंचे
हालांकि, राकेश टिकैत से चरखा चलाने के पीछे की वजह जानी तो उन्होंने कहा कि, महात्मा गांधी ने देश के लिए सूत काता और गांव की महिला घर घर में सूत कातती थी. कपड़े का काम गांव में होता था, बाजार पर निर्भर नहीं थे, स्वेदशी की परंपरा इसी से मापी जाती थी. दरअसल राकेश टिकैत बीते दो दिनों से गाजीपुर बॉर्डर पर मोर्चा संभाले हुए हैं. वहीं बॉर्डर पर फिर से किसानों की संख्या बढ़ गई है.
बॉर्डर पर कुछ छात्रों ने आकर किसानों के समर्थन में गाने प्रस्तुत किए
रविवार को बॉर्डर पर कुछ छात्रों ने आकर किसानों के समर्थन में गाने प्रस्तुत किए, वहीं गांव से महिलाएं भी आई जिन्होंने राकेश टिकैत के साथ काफी देर बातचीत की ओर अपनी परेशानियों को टिकैत के सामने रखा.
सरकार और किसान संगठनों के बीच 11 दौर की वार्ता हो चुकी है लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकल सका है. दूसरी ओर फिर से बातचीत शुरू हो इसके लिए किसान और सरकार दोनों तैयार है, लेकिन अभी तक बातचीत की टेबल पर नहीं आ पाए हैं. दरअसल तीन नए अधिनियमित खेत कानूनों के खिलाफ किसान पिछले साल 26 नवंबर से राष्ट्रीय राजधानी की विभिन्न सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
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