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इंदिरा गांधी ने आज के दिन लगाई थी इमरजेंसी, राहुल ने बताए लोकतंत्र पर कांग्रेस के विचार

25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में लोकतंत्र की हत्या कर इमरजेंसी लगाई थी. हजारों लोगों को जेल में डाल दिया गया. अब राहुल गांधी ने लोकतंत्र पर अपने विचार बताए हैं.  

Updated on: 25 Jun 2021, 09:12 AM

नई दिल्ली:

25 जून 1975 को लोकतंत्र का काला दिन कहा जाता है. जब भी तारीख आती है लोग इमरजेंसी के उस मंजर को भूल नहीं पाते हैं जब निर्दोष लोगों को जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया जाता था. लोगों से उनके मौलिक अधिकार तक छीन लिए गए थे. आज ही के दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने आज ही दिन लोकतंत्र पर कांग्रेस के विचार की बात की है. इस ट्वीट की सबसे खास बात यह है कि इस ट्वीट को उस दिन किया गया है जब कांग्रेस ने ही लोकतंत्र की हत्या की थी. 

इमरजेंसी के दिन ही कांग्रेस ने अपने ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से कुछ देर पहले ही एक ट्वीट किया. इस ट्वीट में राहुल गांधी की तस्वीर के साथ लोकतंत्र के लिए कुछ लाइनें लिखीं हैं. इसके साथ ही #congresskevichaar का भी प्रयोग किया. इस ट्वीट में लिखा है कि लोकतंत्र का मतलब विकेंद्रीकृत शक्ति और बहस है. यह संस्थाएं हैं जो सरकार को जवाबदेह रखती हैं. यह लोगों के कल्याण के प्रति सरकार का कर्तव्य है, न कि इसके विपरीत.

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इस ट्वीट की सबसे खास बात यह है कि इस ट्वीट को उस दिन किया गया है जब कांग्रेस ने ही लोकतंत्र की हत्या की थी. आपातकाल की घोषणा के बाद ना जाने कितने लोगों को जेल में डाल दिया गया. इतना ही नहीं मीडिया को भी बोलने की आजादी नहीं थी. अखबार के दफ्तरों की लाइट काट दी गई. इस दौरान देशभर में इतनी गिरफ्तारियां हुई थी कि जेल में जगह कम पड़ गई. सरकार की तानाशाही इस कदर बढ़ गई कि खुले मैदान में जेल बनाकर लोगों को कैद कर दिया गया.  

अभिव्यक्ति का अधिकार तो छिना ही जीवन का अधिकार तक गया
आपातकाल की घोषणा के साथ ही सभी नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे. अभिव्यक्ति का अधिकार ही नहीं, लोगों के पास जीवन का अधिकार भी नहीं रह गया था. 25 जून की रात से ही देश में विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारियों का दौर शुरू हो गया था. जयप्रकाश नारायण, लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी, जॉर्ज फर्नाडीस आदि बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया गया था. जेलों में जगह नहीं बची थी. आपातकाल के बाद प्रशासन और पुलिस के द्वारा भारी उत्पीड़न की कहानियां सामने आई थीं. प्रेस पर भी सेंसरशिप लगा दी गई थी. हर अखबार में सेंसर अधिकारी बैठा दिया गया, उसकी अनुमति के बाद ही कोई समाचार छप सकता था. सरकार विरोधी समाचार छापने पर गिरफ्तारी हो सकती थी. यह सब तब थम सका, जब 23 जनवरी 1977 को मार्च महीने में चुनाव की घोषणा हो गई.