तारीख 12 जुलाई 1949, राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ (RSS) के जेल में बंद हजारों कार्यकर्ताओं ने सोचा भी नहीं था कि इस दिन का सवेरा उनके लिए कई मायनों में खास होगा। महात्मा गांधी (बापू) की हत्या के बाद करीब एक साल से प्रतिबंध झेल रहे इस संगठन पर से तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने बैन हटा लिया था। संघ पर साल 1948 में प्रतिबंध लगा दिया गया था। आरोप लगा था कि आरएसएस के कार्यकर्ता नाथूराम गोडसे ने बापू की हत्या की थी।
वहीं अब फिर से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, बापू की हत्या के लिए आरएसएस को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं तो दूसरी ओर पूर्व उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी अपनी किताब 'मेरा देश मेरा जीवन' में बापू के मर्डर में संघ के हाथ होने की बात खारिज करते हैं। साथ ही गांधी की हत्या की जांच के लिए गठित आयोग ने भी इस मामले में संघ को क्लिनचिट दी थी।
तो क्या इंदिरा की जांच पर राहुल को शक है?
'गांधी जी को मारा इन्होंने, आरएसएस के लोगों ने गांधी जी को गोली मारी और आज उनके लोग गांधी जी की बात करते हैं...' कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ये बात 6 मार्च 2014 को महाराष्ट्र के भिवंडी में एक चुनावी रैली में कही थी। राहुल गांधी के इस भाषण पर आरएसएस के एक कार्यकर्ता ने मुकदमा दर्ज कराया था। इसके बाद भी कई जनसभाओं में राहुल ने इस बात को दोहराया और अपने बयान पर अब भी कायम हैं।
मामला दर्ज होने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि यह विचारधारा की लड़ाई है और वे पीछे नहीं हटेंगे। अब इतने दिनों बाद गांधी की हत्या के मामले में संघ को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश को लेकर राहुल आखिर क्या साबित करना चाहते हैं! जबकि नेहरू और इंदिरा की सरकार इस मामले में पहले ही संगठन को क्लिनचिट दे चुकी है।
संगठन को लेकर नेहरू के कार्यकाल में गृहमंत्री सरदार पटेल और इंदिरा गांधी के कार्यकाल में गठित आयोग के अध्यक्ष जस्टिस जे एल कपूर ने अपनी रिपोर्ट में माना कि 'बापू की हत्या में संघ का कोई हाथ नहीं है।'
जांच आयोग ने लिखा, 'आरोपियों का संघ का सदस्य होना साबित नहीं हुआ है और न ही हत्या में इस संगठन का हाथ होना पाया गया है।' एक अन्य टिप्पणी में उन्होंने लिखा, 'दिल्ली में भी इस बात का कोई साक्ष्य नहीं मिला है कि एक संगठन के रूप में महात्मा गांधी या कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के खिलाफ संघ हिंसक गतिविधियों में लिप्त था।'
वहीं आडवाणी अपनी किताब में यह भी दावा करते हैं कि आरएसएस पर से बैन हटाने के बाद सरदार पटेल ने गोलवलकर को खत लिखा था, जिसमें उन्होंने संघ पर से प्रतिबंध हटाने को लेकर खुशी जताई थी।
इस खत में उन्होंने जिक्र किया था, 'केवल मेरे नजदीकी लोग ही जानते हैं कि जब संघ पर से प्रतिबंध हटाया गया तो मैं कितना प्रसन्न था। मेरी ओर से आपको हार्दिक शुभकामनाएं।'
गोडसे को लेकर आडवाणी का दावा
गोडसे और संघ के बीच रिश्तों को लेकर अपनी किताब में आडवाणी लिखते हैं, 'गोडसे बहुत पहले संघ से अलग हो चुका था। संघ के खिलाफ ही वह दुष्प्रचार कर रहा था। संघ के द्वारा चलाए जा रहे चरित्र निर्माण पर बल देने बाले अभियान का उपहास करता था।'
गोडसे को लेकर आडवाणी अपनी किताब में दावा करते हैं, 'वह कभी संघ का स्वयंसेवक रहा था, लेकिन गहरे मतभेद के कारण 15 साल पहले संगठन छोड़ चुका था।'
संघ छोड़ने से पहले गोडसे ने आरोप लगाया था, 'संघ ने हिंदुओं को नपुंसक बना दिया है। वह वास्तव में कटु आलोचक बन गया था। संगठन से उसकी मुख्य शिकायत थी कि संघ के कारण हिंदुओं की आक्रामक भावना नरम हो गई है।'
गांधी की हत्या का समाचार मिलने के बाद गोलवलकर ने पंडित नेहरू, सरदार पटेल और महात्मा गांधी के बेटे देवदास गांधी को तुरंत एक टेलीग्राम भेजा और इस क्रूर हमले की निंदा की। अपने कार्यकर्ताओं को उन्होंने संदेश भेजा और कहा, 'महात्मा गांधी के दुखद निधन पर हिंदू रीति के अनुसार वे 13 दिन तक शोक मनाएं।'
किताब के मुताबिक कार्यकर्ताओं ने ऐसा ही किया। 13 दिन तक संगठन के सभी कार्यों को स्थगित कर दिया। अगले पत्र में गोलवलकर ने कहा, 'एक विचारहीन व्यक्ति के इस निंदनीय कृत्य ने संसार की नजरों में हमारे समाज को कलंकित किया है। हर राष्ट्रवादी आज असहाय पीड़ा से भरा हुआ है।'
जब जेल में हलवा खाने के लिए आडवाणी ने बोला झूठ
गांधी की हत्या के बाद जब आरएसएस को प्रतिबंधित संगठन मानकर उनके अनेकों कार्यकर्तोओं को जेल में बंद कर दिया गया था। उस दौरान आडवाणी को भी हिरासत में लेकर जेल भेज दिया गया था। जेल की मोटी रोटी और पानी की तरह दाल खाकर वहां कैदी अपनी सजा काट रहे थे। एक दिन कि बात है कि जेल में बंद के दौरान शिवरात्री का त्योहार आया। जब जेलर ने आडवाणी और उनके ग्रुप से पूछा कि क्या आप लोग शिवरात्री पर व्रत रखना चाहेंगे।
आडवाणी और उनके साथियों ने इस मौके पर उपवास रहने से मना कर दिया और कहा कि यहां जिस तरह का खाना मिल रहा है, हम रोज भूख से मर रहे हैं। हमें और कोई उपवास नहीं करना है, चाहे शिवरात्री हो या कुछ और। अगली सुबह हम लोगों को सामान्य भोजन मिला और हमनें उसे ही खाया।
शाम के करीब पांच बजे अन्य कैदियों जिन्होंने व्रत रखा था, उनके लिए स्पेशल हलवे की व्यवस्था की गई थी। हम लोगों ने जब देखा तो बड़ी निराशा हुई। आपस में सभी लोगों ने चर्चा कर अगली सुबह जेलर के पास पहुंचे और बोले हम आज व्रत रखेंगे। उसके लिए कृपया आप जरूरी इंतजाम करें।
जेलर ने चकित हो कर पूछा कि आज व्रत किसका शिवरात्री तो कल था। आप लोग आज किस लिए व्रत रख रहे हैं। तभी हमारे एक साथी ने तुरंत जवाब दिया जो कि पहले से तैयार किया गया था। उसने कहा, 'कल शैव मत के लोगों की शिवरात्री थी, वैष्णवों की आज है।'
जेलर आडवाणी और उनके साथियों के विचारों को भांप गया और एक समझ से भरी मुस्कान के साथ कहा कि यदि आप लोग शाम को हलवा खाना चाहते हैं तो मैं उसकी वयवस्था कर दूंगा। उसके लिए उपवास करने की कोई जरूरत नहीं है। फिर जेल में हम लोगों को हलवा खिलाया गया, जोकि उस दौरान एकलौती मिठाई हुआ करती थी।
जब बापू की हत्या की गई थी, तब आडवाणी राजस्थान में प्रचारक की भूमिका निभा रहे थे। तब वहां की सरकार ने संगठन पर बैन लगने के कारण उन्हें साथियों सहित जेल में डाल दिया था। अपनी जेल यात्रा को लेकर आडवाणी ने कई दिलचस्प किस्सों का भी वर्णन इस किताब में किया है।
राहुल का चुनावी स्टंट या इंदिरा-नेहरू की सरकार को चुनौती
बैन हटने के बाद से आज तक निरंतर आरएसएस के कार्यकर्ता अपना काम कर रहे हैं, लेकिन आज भी कुल लोग और राजनीति पार्टियां इस संगठन को एक संदिग्ध नजरों से देखती है जबकि पंडित नेहरू और इंदिरा की सरकार ने गांधी की हत्या के मामले में आरएसएस को पहले ही क्लिन चिट दे दी थी।
इतने दिनों बाद राहुल गांधी ने फिर से इस मामले को तूल दिया है। गांधी की हत्या मामले को कोर्ट तक पहुंचाने में अपने बयानों के जरिए अहम भूमिका निभाई, लेकिन क्या वह इस बात को साबित कर पाएंगे या सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप का दौर और फिर इस मुद्दे पर माफी मांगकर अपना पल्ला झाड़ लेंगे। जैसा कि बाकी नेता करते हैं।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
Source : Abhiranjan Kumar