Raghav Chadha ने संसद में श्री करतारपुर साहिब जाने वाले श्रद्धालुओं का मुद्दा उठाया

चड्ढा के अनुसार, श्री करतारपुर साहिब गुरुद्वारा के दर्शन को लेकर हर शख्स वहां जाना चाहता है, लेकिन श्रद्धालुओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. सबसे पहली समस्या पासपोर्ट की होती है

चड्ढा के अनुसार, श्री करतारपुर साहिब गुरुद्वारा के दर्शन को लेकर हर शख्स वहां जाना चाहता है, लेकिन श्रद्धालुओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. सबसे पहली समस्या पासपोर्ट की होती है

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Mohit Saxena
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Raghav Chadha( Photo Credit : social media)

आम आदमी पार्टी (आप) के वरिष्ठ नेता और पंजाब से राज्यसभा सांसद  राघव चड्ढा ने शुक्रवार को संसद में श्री करतारपुर साहिब जाने वाले श्रद्धालुओं के मुद्दे को प्रमुखता से रखा. राघव चड्ढा के अनुसार, कुछ वर्ष पहले जब श्री करतारपुर साहिब कॉरिडोर को खोला गया था, तब पूरी दुनिया श्री गुरु नानक देव के रंग देव जी के रंग में रंग गई थी. चड्ढा के अनुसार, श्री करतारपुर साहिब गुरुद्वारा के दर्शन को लेकर हर शख्स वहां जाना चाहता है, लेकिन श्रद्धालुओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. सबसे पहली समस्या पासपोर्ट की होती है. जाने वाले के पास पासपोर्ट जरूर होना चाहिए. ऐसे में अगर आपके पास पासपोर्ट नहीं है तो आप श्री करतारपुर साहिब नहीं जा सकेंगे. भारत सरकार को इस खास मुद्दे पर पाकिस्तान सरकार के सामने उठाने की आवश्यकता है. 

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वहीं दूसरी समस्या यह भी है कि हर तीर्थयात्री को दर्शन के​ लिए 20 डॉलर यानि करीब 1600 रुपये का शुल्क चुकाना पड़ता है. ऐसे में अगर परिवार के 5 सदस्य भी हर साल जाना चाहें तो उन्हें आठ हजार रुपये चुकाने होंगे. उनकी मांग है कि इस तरह की शुल्क वसूली को बंद किया जाए ताकि श्रद्धालु किसी तरह से आसानी से श्री करतारपुर साहिब जा सकें.  

तीसरी समस्या ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया से संबंधित है. ये काफी जटिल है. इसे आसान बनाने की जरूरत है. इस तरह से संगत को परेशानी नहीं उठानी पड़ती है. इसके साथ उनका समय भी खराब नहीं होता है. चड्ढा के अनुसार, इन समस्याओं का समाधान हो जाने से गुरु और संगत के बीच की दूरी को कम किया जा सकेगा. 

इतिहास के लिहाज से देखा जाए तो श्री करतारपुर साहिब कॉरिडोर का महत्व काफी है.  ये सिख धर्म के पहले गुरु गुरुनानक देव जी की कर्मस्थली रही है. ऐसा कहा जाता है कि 22 सितंबर 1539 को इस जगह गुरुनानक देव जी ने इसी जगह अपने शरीर को त्याग दिया था. उनके जाने के बाद ही उस पवित्र भूमि पर गुरुद्वारा साहिब का निर्माण किया गया था. भारत के विभाजन के बाद यह गुरुद्वारा पाकिस्तान में चला गया. मगर दोनों मुल्कों के लिए यह आज की आस्था का केंद्र बना हुआ है.

HIGHLIGHTS

  • श्रद्धालुओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है:  राघव चड्ढा  
  • दर्शन के​ लिए 20 डॉलर का शुल्क चुकाना पड़ता है
  • ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया काफी जटिल है

Source : News Nation Bureau

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