राफेल की कीमत पूछकर पाकिस्तान और चीन की मदद करना चाहते हैं राहुल गांधी: रविशंकर प्रसाद
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि स्वंत्रत भारत के इतिहास में पहली बार किसी पार्टी के अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री के लिए इस तरह का शब्दों का प्रयोग किया है।
नई दिल्ली:
राफेल मामले पर राहुल गांधी द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधे जाने के बाद कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने शनिवार को कहा कि गैर जिम्मेदाराना, आधारहीन और लापरवाही वाला बयान उस परिवार की ओर से आया है, जो नेशनल हेराल्ड मामले में जमानत पर बाहर हैं और देश में सारे भ्रष्टाचार की जड़ हैं.
बता दें कि शुक्रवार को फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद का बयान सामने आने के बाद कि 'राफेल निर्माण का ठेका रिलायंस कंपनी को देने का प्रस्ताव भारत सरकार ने दिया था' सरकार की ओर से कहा गया कि ओलांद के बयान की जांच की जा रही है.
शनिवार को मीडिया से मुखातिब प्रसाद ने इस मुद्दे की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की जांच की मांग खारिज कर दी और कहा कि 'जेपीसी जांच एक अज्ञानी और घमंडी नेता के अहंकार को संतुष्ट नहीं करेगा.'
ओलांद के बयान और उससे उपजे सवालों का जवाब न देते हुए मंत्री ने कांग्रेस अध्यक्ष पर छींटाकशी कर सरकार के बचाव की तरकीब सोची. उन्होंने कहा, "जिन्होंने देश में भ्रष्टाचार का उन्मूलन किया है, ऐसे प्रधानमंत्री के खिलाफ बयान देकर, राहुल ने अपने चेहरे पर कालिख पोती है."
प्रसाद ने कहा, "राहुल गांधी का बयान पूरी तरह से गैर जिम्मेदाराराना है. वह राफेल की कीमत और अन्य चीजों का खुलासा कर पाकिस्तान और चीन के हाथों में खेल रहे हैं. इससे हमारे दुश्मनों को मदद मिलेगी. राहुल गांधी पाकिस्तान की मदद करने की कोशिश कर रहे हैं."
उन्होंने फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बयान के आधार पर कांग्रेस की ओर से लगाए गए इस आरोप को खारिज कर दिया कि 'सरकार ने वर्ष 2015 में दसॉ एविएशन के ऑफसेट पार्टनर के रूप में रिलायंस डिफेंस का नाम सुझाया.'
ओलांद ने शुक्रवार को कहा था कि उन्हें सिर्फ एक ही कंपनी का नाम सुझाया गया, इसलिए उनके पास रिलायंस को ठेका देने के सिवाय दूसरा कोई चारा नहीं था.
प्रसाद ने कहा कि कुछ समकालिक सबूत हैं जो दिखाते हैं कि ऑफसेट पार्टनर के रूप में रिलायंस का चयन 2012 में खुद संप्रग सरकार ने किया था, जो मोदी के प्रधानमंत्री बनने से बहुत पहले हुआ था.
उन्होंने कहा, "यह सबूत मौजूद हैं कि दसॉ और रिलायंस इंइस्ट्री के बीच 13 फरवरी, 2013 को समुचित समझौता ज्ञापन (एमओयू) हुआ था, जिसका मतलब है कि यह हमारे सत्ता में आने से 1 वर्ष, चार माह पहले हुआ था."
कानून मंत्री ने सरकार के बचाव के लिए जिस रिलायंस इंडस्ट्री का जिक्र किया, वह मुकेश अंबानी की थी, जो कुछ ही दिनों बाद बंद हो गई थी. राफेल के लिए जो सौदा हुआ है और ओलांद ने जिस रिलायंस डिफेंस की बात कही है, वह अनिल अंबानी की है.
प्रसाद ने कहा, "ऑफसेट के नियम को 2012 में यूपीए ने अंतिम रूप दिया था और एचएएल के स्थान पर एक निजी कंपनी के विकल्प को रखा गया था. वास्तव में यूपीए ने एचएएल को धोखा दिया."
उन्होंने कहा कि फ्रांस सरकार और दासॉ, दोनों ने आधिकारिक बयान जारी कर निजी कंपनी के चयन को लेकर फ्रांस की मैक्रों सरकार की संलिप्तता से इनकार किया है.
करार चूंकि ओलांद सरकार के समय हुई थी, इसलिए मैक्रों सरकार की इस सौदे में संलिप्तता से इनकार स्वाभाविक है. मुद्दा तो ओलांद के बयान का है और सवाल उठ रहा है कि ओलांद आखिर झूठ क्यों बोलेंगे.
प्रसाद ने कहा, "मुझे नहीं पता कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ने कुछ भी कहा उस पीछे क्या कारण और मजबूरी है."
और पढ़ें- पाकिस्तान के साथ मुलाकात रद्द होने पर बोले इमरान, भारत की प्रतिक्रिया अहंकारी
इस दावे पर अपने स्पष्टीकरण में शुक्रवार रात जारी बयान में फ्रांस सरकार ने कहा, "इस सौदे के लिए भारतीय औद्योगिक साझेदारों को चुनने में फ्रांस सरकार की कोई भूमिका नहीं थी."
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