राफेल डील पर एक और दावा सामने, मोदी सरकार ने यूपीए की नीतियों के तहत ही किया था समझौता
सूत्रों ने कहा है कि राफेल में भारतीय समझौता दल ने जब कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के लिए डील को अंतिम रूप दिया था तो डीपीपी-2013 के प्रावधानों के साथ ही तय किया था.
नई दिल्ली:
राफेल डील में अनियमितताओं को लेकर मोदी सरकार पर विपक्षी दलों द्वारा हो रहे हमलों के बीच एक और खुलासा हुआ है जिसके मुताबिक इस विमान की खरीद प्रक्रिया पर हस्ताक्षर पहले के कांग्रेस सरकार के दौरान तय किए गए प्रावधानों के अनुसार ही हुआ था. समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक नरेन्द्र मोदी सरकार और फ्रांस सरकार के बीच हुआ समझौता, 2013 में यूपीए सरकार के द्वारा तय निर्धारित किए गए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर या स्टैंडर्ड कॉन्ट्रैक्ट डॉक्यूमेंट के तहत अंतर सरकारी समझौते के आधार पर ही हुआ था.
एजेंसी ने सोमवार को उच्च अधिकारिक सूत्रों के हवाले से बताया कि भारतीय समझौता दल जिन्होंने फ्रांसीसी कंपनी दसॉ के साथ 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीद समझौते को अंतिम रूप दिया था, उन्होंने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की नीतियों का ही पालन किया था.
एजेंसी के मुताबिक, 2013 में यूपीए सरकार एक नई नीति लेकर आई थी जो रक्षा मंत्रालय को दोनों दोस्ताना राष्ट्रों की आपसी सहमति के प्रावधानों के साथ अंतर सरकारी समझौतों पर हस्ताक्षर करने की अनुमति देता है और इसके लिए रक्षा खरीद की तय नीतियों को नहीं मानने की छूट देता है.
रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी) 2013 के मुताबिक, 'कई बार ऐसे मौके होते हैं, जब भू-रणनीतिक फायदों के कारण दोस्ताना देशों से खरीद जरूरी होते हैं. ऐसी खरीद में स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर या स्टैंडर्ड कॉन्ट्रैक्ट डॉक्यूमेंट का पालन नहीं किया जाता है, जबकि दोनों देशों की सरकारों के द्वारा आपसी समझौता प्रावधानों के तहत होता है. ऐसे खरीद सक्षम वित्तीय प्राधिकारी (सीएफए) के क्लीयरेंस के बाद दोनों देशों के बीच अंतर सरकारी समझौता के तहत होते हैं.'
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सूत्रों ने कहा है कि राफेल में भारतीय समझौता दल ने जब कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के लिए डील को अंतिम रूप दिया था तो डीपीपी-2013 के प्रावधानों के साथ ही तय किया था. रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी)-2013 को यूपीए सरकार के दौरान 2013 में लागू किया गया था और उस वक्त रक्षा मंत्री ए के एंटनी थे.
इससे पहले सोमवार को ही अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू' ने राफेल पर एक और नया खुलासा करते हुए लिखा था कि इस समझौते पर हस्ताक्षर से पहले मोदी सरकार ने खरीद प्रक्रिया में होने वाले भ्रष्टाचार पर लगने वाले जुर्माने सहित कई अन्य के प्रावधानों को हटा दिया था.
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