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वाजपेयी सरकार ने शुरू की थी राफेल डील की प्रक्रिया, पढ़ें पूरी खबर

वाजपेयी सरकार ने भारतीय वायु सेना की मांग के बाद 126 राफेल विमान खरीदने का पहली बार प्रस्‍ताव रखा था. 2004 में वाजपेयी सरकार (Vajpayee Govt) के जाने के बाद कांग्रेस (Congress) ने इसको आगे बढ़ाते हुए 2007 में खरीद को मंजूरी दी थी.

Updated on: 25 Dec 2019, 10:54 AM

नई दिल्‍ली:

जिस राफेल डील (Rafale Deal) को लेकर देश में बखेड़ा हुआ, सरकार पर गंभीर आरोप लगे, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से राहत मिली, उसकी प्रक्रिया अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) की सरकार ने शुरू की थी. मिग (MIG) और जगुआर (Jaguar) विमानों की खराब हालत और वायुसेना में लड़ाकू विमानों की कमी को देखते हुए अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते एनडीए (NDA) की सरकार के दौरान कवायद शुरू की गई थी. अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने भारतीय वायु सेना की मांग के बाद 126 राफेल विमान खरीदने का पहली बार प्रस्‍ताव रखा था. 2004 में वाजपेयी सरकार (Vajpayee Govt) के जाने के बाद कांग्रेस (Congress) ने इसको आगे बढ़ाते हुए 2007 में खरीद को मंजूरी दी थी. बोली प्रक्रिया के बाद 126 विमानों की खरीद का आरएफपी (RFC) जारी कर दिया गया.

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हालांकि यूपीए सरकार के दौरान टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के मामले में दोनों पक्षों में गतिरोध बने रहने की वजह से यह सौदा अंतिम रूप नहीं ले सका. दरअसल, सौदे के मसौदे में शामिल एक बिंदु पर डसाल्‍ट एविएशन राजी नहीं था. भारत चाहता था कि यहां पर तैयार होने वाले राफेल विमानों की गुणवत्‍ता की जिम्‍मेदारी भी कंपनी ले, लेकिन कंपनी इसके लिए तैयार नहीं थी. डसाल्‍ड के मुताबिक, भारत में इसके उत्पादन के लिए 3 करोड़ मानव घंटों की जरूरत थी, जबकि HAL ने इसके तीन गुना अधिक मानव घंटों की जरूरत बताई थी, जिससे विमान की लागत बहुत बढ़ जाती.

सहमति, समझौता और शर्त

  • 2015 में पीएम नरेंद्र मोदी की फ्रांस यात्रा के दौरान इस विमान को लेकर दोनों देशों के बीच समझौता हुआ.
  • इस समझौते में तय समय-सीमा में विमानों की आपूर्ति शामिल थी.
  • कंपनी को विमान से जुड़े सभी सिस्‍टम, हथियार भी तय मानकों के अनुरूप करने थे.
  • समझौते के तहत विमानों के रखरखाव की जिम्‍मेदारी कंपनी की थी.
  • इस सौदे को 2016 में कैबिनेट से मंजूरी मिली. समझौते पर हस्‍ताक्षर होने के 18 माह के अंदर कंपनी को विमानों की आपूर्ति शुरू करनी थी.

क्‍या था विवाद
राफेल सौदे के बाद कांग्रेस खासकर राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि उसने कहीं अधिक कीमत पर यह सौदा किया है. कहा गया कि एनडीए ने यह सौदा करीब साढ़े 1200 करोड़ रुपये अधिक में किया है. वहीं सरकार की तरफ से कहा गया है पहले सौदे में राफेल के टेक्‍नोलॉजी ट्रांसफर की बात कहीं नहीं थी जबकि महज मैन्‍युफैक्‍चरिंग लाइसेंस दिए जाने की बात कही गई थी. दावा था कि सौदे के बाद फ्रांस की कपंनी मेक इन इंडिया को बढ़ाने में सहायक होगी.

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कांग्रेस की आपत्‍ति

  • विपक्ष लगातार सौदे से जुड़े आंकड़ों को सार्वजनिक करने की मांग करता रहा.
  • कांग्रेस का आरोप था कि उसके नेतृत्‍व वाली यूपीए सरकार 126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ रुपये दे रही थी, जबकि मोदी सरकार 36 विमानों के लिए 58,000 करोड़ अदा कर रही है.
  • कांग्रेस का आरोप था कि मोदी सरकार में एक राफेल विमान की कीमत 1555 करोड़ रुपये हैं, जिसे यूपीए सरकार में 428 करोड़ रुपये में खरीदने की बात हुई थी.
  • कांग्रेस के मुताबिक, यूपीए सरकार के समय 108 विमानों की असेंबलिंग भारत में की जानी थी, जबकि 18 तैयार विमान भारत को मिलने वाले थे.
  • इस सौदे में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर भी शामिल था.
  • यूपीए ने सवाल उठाया कि सौदे को लेकर मोदी सरकार में हड़बड़ी क्‍यों थी.
  • कांग्रेस ने इस सौदे में घोटाले का आरोप लगाया है.
  • राहुल गांधी ने सदन में राफेल सौदे को 1 लाख 30 हजार करोड़ की डील बताया है.

राफेल में रिव्यू पिटीशन
राफेल मामले की जांच की अर्जी 14 दिसंबर 2018 को खारिज हो गई थी, जिसके बाद याचिकाकर्ता ने मामले में रिव्यू पिटिशन दाखिल की थी. राफेल खरीद प्रक्रिया और इंडियन ऑफसेट पार्टनर के चुनाव में सरकार द्वारा भारतीय कंपनी को फेवर किए जाने के आरोपों की जांच की गुहार लगाने वाली तमाम याचिकाओं को 14 दिसंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था, फैसले लेने की प्रक्रिया में कहीं भी कोई संदेह की गुंजाइश नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील मामले में केस दर्ज कर कोर्ट की निगरानी में जांच की गुहार खारिज कर दी थी.

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केंद्र ने छुपाए तथ्य : याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि राफेल मामले में 14 दिसंबर 2018 का जजमेंट खारिज की जाए और राफेल डील की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच हो. प्रशांत भूषण ने कहा था, केंद्र सरकार ने कई फैक्ट सुप्रीम कोर्ट से छुपाए. दस्तावेज दिखाता है कि पीएमओ ने इस सौदे को लेकर रक्षा मंत्रालय की टीम के समानांतर बातचीत की थी, जो गलत है. पहली नजर में मामला संज्ञेय अपराध का बनता है और ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का पुराना जजमेंट कहता है कि संज्ञेय अपराध में केस दर्ज होना चाहिए.

कुछ याचियों ने तो डील को ही कैंसिल कराने की मांग की थी. इन याचियों का कहना था, सुप्रीम कोर्ट ने पहले से ललिता कुमारी से संबंधित वाद में व्यवस्था दे रखी है कि जब भी संज्ञेय अपराध हुआ हो तो मामले में एफआईआर होना चाहिए. इसी जजमेंट के आलोक में हम मामले की जांच चाहते हैं. मामले में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच होनी चाहिए.