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'एशियन नाटो' क्‍वाड पर  टिकी हैं दुनिया की नजरें, क्या बदल जाएगी भारत की गुटनिरपेक्ष नीति

यूक्रेन पर रूसी हमले और ताइवान के खिलाफ चीन के आक्रामक तेवर के साथ ही लद्दाख में ड्रैगन की जंगी तैयारी के बीच दुनियाभर की निगाहें  जापान में चल रहे क्वाड शिखर सम्मेलन पर टिक गई है.

Updated on: 23 May 2022, 03:17 PM

highlights

  • चीनी रणनीतिकार बोला, कभी सफल नहीं होगा क्वॉड
  • भारत की गुटनिरपेक्ष नीति बनेगी सबसे बड़ी बाधा
  • भारत रणनीतिकार ने बताया क्वाड का असल मकसद

नई दिल्ली:

यूक्रेन पर रूसी हमले और ताइवान के खिलाफ चीन के आक्रामक तेवर के साथ ही लद्दाख में ड्रैगन की जंगी तैयारी के बीच दुनियाभर की निगाहें  जापान में चल रहे क्वाड शिखर सम्मेलन पर टिक गई है. क्वॉड के सदस्य देश भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान इंडो-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा और ड्रैगन की इलाके में बढ़ती सक्रियता पर लगाम लगाने के लिए मंथन कर रहे हैं. इस बैठक से जहां  चीन तिलमिलाया हुआ है. इस बीच भारत की विदेश नीति को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या भारत पंडित नेहरू की गुटनिरपेक्ष नीति को त्याग देगा और पूरी तरह से अमेरिका का पिक्षलग्गू बन जाएगा. 

न्यू वर्ल्ड ऑर्डर के तहत विश्व की बदलती सामिरक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए नए दोस्त और संगठन सामने आ रहे हैं. इन्हीं में से एक है क्वाड. क्वॉड को एशिया का नाटो भी कहा जा रहा है, लेकिन अपनी सीमा के बेहद करीब हो रहे क्वाड के शिखर सम्मेलन पर चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा है कि क्‍वाड कभी भी 'एशियाई नाटो' नहीं बन सकता है. चीनी विदेश मंत्री भले ही क्‍वाड को खारिज कर रहे हैं. हालांकि, सच्चाई ये हैं कि क्‍वाड धीरे-धीरे हिंद प्रशांत क्षेत्र में ड्रैगन पर नकेल कसने का सबसे बड़ा मोर्चा बनकर उभर रहा है. अब देखने वाली बात ये हो इसी मोर्चे का इस्तेमाल पीएम मोदी मोदी ड्रैगन पर नकेल कस तरह करते हैं. 

सिर्फ टीन ही नहीं, इससे भी बड़ा है क्‍वाड का लक्ष्य
भारतीय विशेषज्ञों के मुताबिक भारत के लिए चीन सबसे महत्वपूर्ण सुरक्षा चुनौती है. भारत के लिए चीन से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही तरह खतरा है. हालांकि, ड्रैगन से निपटने के लिए भारत को क्वाड देशों से भरपूर मदद की जरूरत होगी, ताकि खुफिया जानकारी इकट्ठा की जा सके और हथियारों को साझा किया जा सके. भारत को क्वाड सम्मेलन में चीन के खिलाफ खुफिया निगरानी के लिए एक मंच पर जोर देना चाहिए, ताकि किसी खतरे को दूर किया जा सके. हालांकि, सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि क्वाड के लिए हिंद प्रशांत क्षेत्र में केवल चीन की बढ़ती आक्रामकता ही एक समस्या नहीं है. इसके अलावा आतंकवाद, खाड़ी देशों के ऊर्जा के स्रोत, ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान-भारत और चीन के परमाणु हथियार भी चिंता का सबब हैं. विशेषज्ञ यह भी चिंता जता रहे हैं कि यूक्रेन संकट की वजह से अगर जापान और दक्षिण कोरिया भी परमाणु हथियार हासिल कर लेते हैं तो इससे दिक्कत और बढ़ जाएंगी. ऐसे में इन सभी चुनौतियों से निपटना किसी एक देश के बस की बात नहीं है. लिहाजा, ऐसे में इन मामलों को हल करने में क्‍वाड अपनी भूमिका को एक संगठन के रूप में प्रभावी तरीके से निभा सकता है. उन्होंने कहा कि भारत को इसी लाइन पर आगे बढ़ना चाहिए.

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क्‍वाड के विफल होने के लिए चीन देख रहा गुटनिरपेक्षता के ख्वाब
क्वॉड के सदस्य देश जहां इसे एशिया का नाटो बनाने की कोशिश में जुटे हैं. वहीं, चीन इस एक विफल संगठन के रूप में देख रहा है. चीन के रणनीतिकारों का मानना है कि भारत पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय से चली आ रही अपनी गुटनिरपेक्षता की नीति के नाते किसी भी गुट में खुद को शामिल करने से परहेज करता रहा है. इसके अलावा भारत और अमेरिका के बीच जटिल रिश्‍ते नई दिल्‍ली को क्‍वाड का पूर्ण सदस्य बनने से रोकता है. इसके अलावा अमेरिका, जापान और ऑस्‍ट्रेलिया जहां पूरी तरह से विकसित देश हैं. वहीं, भारत अभी विकासशील देश है. ऐसे में भारत और 3 दूसरे देशों के दर्जे में बहुत ही अंतर है. इसके अलावा चीनी रणनीतिकार ये भी तर्क दे रहे हैं कि भारत अन्‍य तीन देशों से उलट अपनी अर्थव्यवस्था को खोलने से बचता रहा है, लिहाजा, भारत ये नीतियां क्‍वाड के लंबे वक्त तक सफल रहने बाधा बनेगा. यही नहीं चीनी रणनीतिकार ने यहां तक कहा है कि अगर चीनी सेना ने भारत पर हमला किया तो यूक्रेन की तरह भारत को भी अकेला छोड़ दिया जाएगा और उसे बचाने के लिए कोई भी आगे नहीं आएगा. इसके अलावा चीन के रणनीतिकारों का दावा है कि क्‍वाड का ढांचा बहुत कमजोर है और भारत-अमेरिका संबंध लंबे समय तक संदेह के घेरे में रहेगा, जो भारत हिंद प्रशांत क्षेत्र के लिए बनाए गए क्‍वाड की सबसे कमजोर कड़ी है.

और भी प्रभावी होगा क्वाड
इसके उलट भारतीय विशेषज्ञों के मुताबिक ड्रैगन पर लगाम लगाने के लिए बनाए गए क्‍वाड वक्त क ेसाथ और भी मजबूत होता जाएगा, क्योंकि दक्षिण कोरिया भी अब इसमें शामिल होने का इच्छुक है, जो अब से पहले तक बीजिंग के खिलाफ खुलकर सामने आने से हिचक रहा था. इसके चीन के दूसरे पड़ोसी देश इंडोनेशिया, मलेशिया और ताइवान जैसे दूसरे देश भी चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए क्‍वाड को एक वास्तविकता के रूप में देख रहे हैं. इन सभी देशों को उम्मीद है कि आने वाले वक्त में यह संगठन हिंद प्रशांत क्षेत्र में नेतृत्व वाली भूमिका निभाएगा. इसके अलावा अमेरिका में बाइडन सरकार के आने के बाद भी क्वॉड की लगातार हो रही बैठकों से साफ हो गया है कि यह 'एशियाई नाटो' अब लगातार मजबूत हो रहा है.