निर्माता से लेखिका बनी आस्था राठौड़ नाद की पहली 'रोर ऑफ़ द डार्क' में महिलाओं के जीवन पर

यह किताब आपको समाज द्वारा स्त्रियों को नियंत्रित करने की तमाम तरह की कोशिशों के बीच महिलाओं के लिए पुरुषों द्वारा निर्धारित की गई भूमिका पर पुरजोर तरीके‌ से सवाल उठाती है.

यह किताब आपको समाज द्वारा स्त्रियों को नियंत्रित करने की तमाम तरह की कोशिशों के बीच महिलाओं के लिए पुरुषों द्वारा निर्धारित की गई भूमिका पर पुरजोर तरीके‌ से सवाल उठाती है.

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Vikash Gupta
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Aastha Rathod Naad

Aastha Rathod Naad( Photo Credit : Social Media)

एक निर्माता से लेखिका बनी आस्था राठौड़ की लिखी किताब 'रोर ऑफ़ द डार्क' महज एक साधारण सी कहानी ना होकर समाज की स्याह हकीकतों को बयां करने और विचारोत्तेजक ढंग से लोगों से संवाद स्थापित करने की एक ईमानदार और नायाब कोशिश है. यह किताब हमारे अंतर्मन में बसी तमाम तरह की धारणाओं को खुरचने का काम करती है और वास्तविक दुनिया में महिलाओं को लेकर हमारी संकुचित सोच और प्राचीन समय से महिलाओं को लेकर रखी जा रही धारणाओं पर‌ पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर‌ देती है.

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आज के दौर‌ में हर कोई नारी सशक्तिकरण, उनकी आत्मनिर्भरता और शिक्षा के ज़रिए नारी शक्ति के नारे को उछालता दिखाई देता है. मगर महिलाओं को सशक्त बनाने की ऐसी तमाम बातें खोखली साबित हो रही हैं क्योंकि हम समस्या की असली जड़ तक जाने से कतराते हैं. खुद महिलाएं ही असुरक्षा की भावना से ग्रसित हैं और विरोधाभास का शिकार हैं क्योंकि कभी उन्हें खुद अपने बारे में उचित तरीके से सोचना सिखाया ही नहीं गया है. ऐसे में आस्था राठौड़ नाद अपनी किताब 'रोर ऑफ द डार्क' के ज़रिए महिलाओं में अपने शरीर को लेकर व्याप्त असुरक्षा की भावना को समझने का प्रयास करती नजर आती हैं. किताब में इस बात को भी बखूबी रेखांकित किया गया है कि कैसे ज्यादातर महिला‌ओं‌ को अपने ही शरीर को लेकर खास तरह की सामाजिक अवधारणा‌ओं को मानने के लिए मजबूर किया जाता है.‌ 

यह किताब आपको समाज द्वारा स्त्रियों को नियंत्रित करने की तमाम तरह की कोशिशों के बीच महिलाओं के लिए पुरुषों द्वारा निर्धारित की गई भूमिका पर पुरजोर तरीके‌ से सवाल उठाती है और आपको सोचने के लिए मजबूर करती है. एक गृहिणी के तौर पर तय की गई भूमिका से लेकर एक उपभोग की वस्तु के रूप में उसे पेश किये जाने की कोशिशों पर कुठाराघात करती है ये किताब.

महिलाओं के लिए सम्मान

पुरातनपंथी सोच रखने वाले हमारे समाज ने स्त्रियों को कभी बराबरी का दर्जा दिया ही नहीं, लेकिन आज का आधुनिक समाज भी उन्हें बर्बादी की राह पर ले जा रहा है. आजकल की लड़कियां अपनी हिम्मत के लिए नहीं जानी जाती हैं और ना ही कुछ अलग करने की चाह रखती हैं. वे अपनी पहचान को महज़ अपनी सेक्सुअलिटी और खूबसूरती से जोड़ते हुए सुविधाजनक जीवन जीने की चाह रखने वाली महिलाओं की विरासत को आगे बढ़ा रही हैं. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि एक समाज के तौर पर हमारी अवधारणाएं बदल रही हैं और हम सचमुच में किसी तरह की प्रतिभा अथवा कौशल की धनी महिलाओं की बजाय इंटरनेट पर अर्ध-नग्न लड़कियों को पसंद करने लगे हैं.

साझा किए अनुभव

इस किताब के जरिए अपने निजी अनुभवों को साझा करते हुए आस्था राठौड़ नाद कहती हैं कि कैसे हमारे पुराणों में भी महिलाओं को यौन सुख प्रदान करने वाली वस्तु के रूप में और उन्हें तय की भूमिका के दायरे में प्रस्तुत किया गया है.‌ वे कहती हैं कि किसी भी पुरुष और अन्य किसी भी तरह के जीवों को इस तरह की बंदिशों में जीने के‌ लिए मजबूर‌ नहीं होना पड़ता है.  क्या चुपचाप अत्याचार सहना, दूसरों की सेवा करना और बच्चों का पालन-पोषण करना ही महिलाओं की पहचान है? क्या किसी महिला का शरीर ही उसकी एकमात्र पहचान है या फिर शरीर से आगे जाकर भी उसकी अपनी कोई हैसियत है? आस्था राठौड़ नाद ने इन सभी सवालों को बेहद विचारोत्तेजक ढंग से पाठकों के सामने रखने की कोशि‌श की है.

इन फिल्मों में किया काम

आपको बता दें कि आस्था ने 'एम. ए. पास' के ज़रिए‌ हिंदी फ़िल्मों की दुनिया में कदम रखा था जिसे उन्होंने साल 2016 में प्रोड्यूस किया था.‌ साल 2017 में उन्होंने‌ जी टीवी के लिए 'ऐसी दीवानगी देखी नहीं कभी' नामक टीवी शो का भी निर्माण किया था. बाद में उन्होंने ज़ी5 के लिए 'पॉइजन', 'भूत-पूर्वा' और 'भ्रम' का भी सह निर्माण किया. साल 2023 में उन्होंने एक सफल हॉरर फिल्म '1920: हॉरर ऑफ द हार्स्ट्स' का भी सह निर्माण किया था. एक निर्माता से एक लेखिका बनीं आस्था राठौड़ नाद जल्द अपनी पहली किताब 'रोर ऑफ द डार्क' के बारे में बात करते हुए कहती हैं कि वे इस किताब से भावनात्मक रूप से जुड़ी हैं और उन्हें साल 2019 से इस किताब के प्रकाशित होने का इंतजार रहा है.

दुनिया के सामने पेश

उल्लेखनीय है कि आस्था ने सालों पहले फ़िल्म बनाने के लिहाज़ से एक स्क्रिप्ट लिखनी शुरू की थी मगर किसी कारणवश वो इस पर फिल्म नहीं बना सकीं. फिर उन्होंने इस स्क्रिप्ट को किताब 'रोर ऑफ द डार्क' की शक्ल दे दी ताकि वे इसके ज़रिए अधिक से अधिक लोगों के बीच अपनी बात पहुंचा सकें. मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा, कि किसी वजह से मैं अपनी स्क्रिप्ट पर फिल्म नहीं बना सकी और बाद में मैंने प्रोडक्शन के क्षेत्र में कदम रखा. मैं एक दशक पहले बड़ी मेहनत के साथ लिखी गई इस कहानी को दुनिया के सामने लाना चाहती थी. ऐसे में सालों बाद मैने इस कहानी को एक किताब के रूप में पेश करने का फैसला किया.

Source : News Nation Bureau

रोर ऑफ़ द डार्क' Aastha Rathod Naad
      
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