राष्ट्रपति चुनाव: रामनाथ कोविंद बनाम मीरा कुमार, 'धर्मसंकट' में नीतीश
कांग्रेस की तरफ से राष्ट्रपति पद के लिए बीजेपी के दलित उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के खिलाफ विपक्ष ने एक औऱ दलित नेता और पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार को उम्मीदवार बनाकर नीतीश कुमार को 'धर्मसंकट' में डाल दिया है।
highlights
- मीरा कुमार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद धर्मसंकट में फंसे नीतीश कुमार
- बीजेपी के दलित उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के खिलाफ कांग्रेस ने मीरा कुमार को अपना उम्मीदवार बनाया है
New Delhi:
कांग्रेस की तरफ से राष्ट्रपति पद के लिए बीजेपी के दलित उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के खिलाफ विपक्ष ने एक औऱ दलित नेता और पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार को उम्मीदवार बनाकर नीतीश कुमार को 'धर्मसंकट' में डाल दिया है।
दिल्ली में सोनिया गांधी के नेतृत्व में हुई विपक्ष की बैठक से पहले कुमार ने दलित पृष्ठभूमि को आधार बनाते हुए बीजेपी के उम्मीदवार और बिहार के पूर्व राज्यपाल रामनाथ कोविंद को अपना समर्थन का ऐलान कर विपक्षी खेमे को सकते में डाल दिया था। लेकिन अब मीरा कुमार की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद नीतीश कुमार 'धर्मसंकट' में फंसते नजर आ रहे हैं।
विपक्ष की बैठक के बाद सोनिया गांधी ने सभी विपक्षी दलों से मीरा कुमार की उम्मीदवारी के समर्थन की अपील की है, जिसमें जेडीयू को छोड़कर सभी बड़े विपक्षी दल शामिल हुए।
बिहार की महागठबंधन सरकार में सहयोगी और आरजेडी मुखिया लालू यादव ने नीतीश कुमार से 'ऐतिहासिक भूल' नहीं करने की अपील की है।
राष्ट्रपति चुनाव: लालू ने कहा ऐतिहासिक भूल नहीं करें नीतीश
लालू ने कहा कि वह नीतीश कुमार से 'बिहार की बेटी' मीरा कुमार के लिए समर्थन देने को लेकर उनके फैसले पर पुर्नविचार करने की अपील करेंगे।
विपक्ष की बैठक से पहले गोपाल कृष्ण गांधी, प्रकाश आंबेडकर और सुशील कुमार शिंदे के नाम को लेकर भी अटकलें लगाई जा रही थी, लेकिन मीरा कुमार को आखिर में विपक्ष ने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर कुमार को मुश्किल में डाल दिया है।
राष्ट्रपति चुनाव अब दलित बनाम दलित नहीं होकर 'सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता' का अखाड़ा बन गया है। दूसरा मीरा कुमार बिहार से आती हैं वह आजादी के बाद दलित राजनीति का बड़ा चेहरा रहे पूर्व रक्षा मंत्री जगजीवन राम की बेटी हैं।
राष्ट्रपति चुनाव: कोविंद के मुकाबले मीरा कुमार होंगी उम्मीदवार, विपक्ष ने लगाई मुहर
इसके अलावा नीतीश कुमार उन नेताओं में शामिल रहे हैं जो राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के खिलाफ सभी समान विचारधाराओं वाले दलों के गठबंधन के पुरजोर हिमायती रहे हैं। इतना ही नहीं वह बिहार में महागठबंधन की जीत के बाद असम और उत्तर प्रदेश में महागठबंधन की कोशिश कर चुके हैं, हालांकि इन दोनों राज्यों में उनकी कोशिश कामयाब नहीं हो पाई।
ऐसे में अब जब राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष ने भी बीजेपी के दलित उम्मीदवार के खिलाफ दलित को अपना उम्मीदवार बना दिया है, तब नीतीश कुमार के लिए केवल दलित होने के आधार पर कोविंद को समर्थन देने के फैसले का बचाव करना बेहद मुश्किल होगा।
इससे न केवल धर्मनिरपेक्ष दलों के बीच उनकी साख कमजोर होगी बल्कि बिहार में महागठबंधन की सरकार के समीकरण भी इसकी आंच आएगी।
नोटबंदी को लेकर कुमार के रुख की वजह से पहले भी महागठबंधन में कांग्रेस और आरजेडी के रिश्तों में उतार-चढ़ाव आता रहा है। वहीं नोटबंदी के बाद यह दूसरा बड़ा मुद्दा होगा जब विपक्ष को कुमार के समर्थन की जरूरत होगी और वह भी विचारधारा के स्तर पर, जिसके आधार पर वह बीजेपी के खिलाफ राष्ट्रीय गठबंधन की वकालत करते रहे हैं।
इतना ही नहीं कोविंद को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद नीतीश कुमार और बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने सबसे पहले सकारात्मक संकेत दिए थे। हालांकि अब मायावती ने कोविंद के मुकाबले मीरा कुमार को ज्यादा काबिल बताते हुए अपना समर्थन दे दिया है। मायावती ने कोविंद की उम्मीदवारी की घोषणा के वक्त भी साफ-साफ इस बात के संकेत दिए थे।
हालांकि जेडीयू ने साफ कर दिया है कि रामनाथ कोविंद को समर्थन देने का फैसला हड़बड़ी में नहीं लिया गया। पार्टी के वरिष्ठ नेता के सी त्यागी ने कहा, 'रामनाथ कोविंद को समर्थन देने का फैसला सभी से विचार के बाद लिया गया। राजनीतिक फैसले तुरंत-तुरंत नहीं बदले जाते हैं।' आने वाले दिनों में नीतीश अपने रुख पर कायम रहते हैं या लालू उन्हें मना पाने में सफल होते हैं, देखना दिलचस्प होगा।
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