जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू, राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने दी मंजूरी
पीडीपी के साथ जम्मू कश्मीर में करीब तीन साल गठबंधन सरकार में रहने के बाद बीजेपी ने मंगलवार को सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा की।
नई दिल्ली:
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की ओर से मंजूरी मिलने के बाद जम्मू-कश्मीर में बुधवार को तत्काल प्रभाव से राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया है।
गौरतलब है कि बेहद आश्चर्यजनक तरीके से भारतीय जनता पार्टी ने मंगलवार को खुद को प्रदेश की सत्तारूढ़ बीजेपी-पीडीपी गठबंधन से अलग कर लिया था। इसके बाद मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने इस्तीफा दे दिया।
बीजेपी ने सरकार से समर्थन वापस लेते हुए कहा था कि राज्य में बढ़ती कट्टरता और आतंकवाद के बीच सरकार में बने रहना असंभव हो गया है।
मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद राज्यपाल एन एन वोहरा ने राष्ट्रपति को भेजे गये एक पत्र में राज्य में केन्द्र का शासन लागू करने की सिफारिश की थी। इसकी एक प्रति केन्द्रीय गृह मंत्रालय को भी भेजी गयी थी।
राष्ट्रपति ने वोहरा कि सिफारिश को मंजूरी दे दी है, जिसके बाद आज तत्काल प्रभाव से प्रदेश में राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया है।
वहीं जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल एन एन वोहरा ने सीमा सुरक्षा की समीक्षा को लेकर एक बैठक बुलाई है।
बता दें कि पीडीपी के साथ जम्मू कश्मीर में करीब तीन साल गठबंधन सरकार में रहने के बाद बीजेपी ने मंगलवार को सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा की। बीजेपी ने कहा कि राज्य में बढ़ते कट्टरपंथ और आतंकवाद के चलते सरकार में बने रहना मुश्किल हो गया था।
वहीं पूर्व मुख्यमंत्री व नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने जम्मू एवं कश्मीर में जल्द चुनाव कराने की मांग की है।
राज्य की पीडीपी बीजेपी सरकार के गिरने के बाद उमर ने मंगलवार को राज्यपाल एन एन वोहरा से मुलाकात की और उसके बाद उन्होंने मीडिया से बातचीत की।
उन्होंने कहा, 'आज अचानक करीब 2.30 बजे खबर आई कि बीजेपी ने पीडीपी के साथ अपने सियासी रिश्ते तोड़ दिए हैं।'
उन्होंने कहा, 'मैंने थोड़ी देर पहले राज्यपाल से मुलाकात की। मैंने राज्यपाल से कहा कि 2014 के चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस के पास सरकार बनाने का जनादेश नहीं था और आज भी हमारे पास जनादेश नहीं है।'
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पूर्व मुख्यमंत्री ने संवाददाताओं से कहा, 'हम से किसी ने संपर्क नहीं किया है और हमने भी किसी पार्टी से राज्य में सरकार बनाने के लिए संपर्क नहीं किया है।'
उन्होंने कहा, 'राज्यपाल के पास राज्यपाल शासन लगाने और स्थिति में सुधार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, ताकि नए चुनाव के बाद राज्य में एक लोकतांत्रिक सरकार का गठन किया जा सके।'
उमर ने कहा कि उन्होंने राज्यपाल को नेशनल कांफ्रेंस का सहयोग देने का भरोसा दिया है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि राज्यपाल और उनके प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जल्द चुनाव हो, ताकि उनके स्थान पर चुनी हुई सरकार आए।
उन्होंने कहा, 'एक जिम्मेदार राजनीतिक पार्टी के नाते राज्य के तीनों क्षेत्रों में शांति के लिए हम काम करेंगे।'
बीजेपी के सरकार से हटने के संभावित कारणों के बारे में पूछे जाने पर नेशनल कांफ्रेंस नेता ने कहा, 'मैं बीजेपी के बारे में नहीं बोल सकता। इस फैसले की क्या वजह रही यह वही बता सकते हैं।'
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उन्होंने कहा, 'हां, मैं बीजेपी के फैसले के समय को लेकर चकित हूं। मुझे उम्मीद थी कि यह इस साल के अंत में होगा, लेकिन हालात बिगड़ने के कारण यह जल्दी हो गया।'
यह पूछे जाने पर कि क्या बीजेपी ने एकतरफा फैसला लेकर पीडीपी को परेशान किया? अब्दुल्ला ने कहा, 'पीडीपी परेशान है या नहीं वे जानते होंगे, लेकिन मेरा मानना है कि बीजेपी को पीडीपी को विश्वास में लेना चाहिए था।'
उन्होंने कहा, 'लेकिन विभिन्न अंग अलग-अलग काम करते हैं। बीजेपी कट्टरवाद का दावा करती है और जाहिर है उनके पास हमसे बेहतर सूचना है।'
उन्होंने कहा, 'हमारा मानना है कि इन दोनों पार्टियों ने साथ मिलकर राज्य को पीछे धकेल दिया है।'
अब्दुल्ला ने कहा कि राज्यपाल अपने व्यापक अनुभव से राज्य को मौजूदा संकट से बाहर निकालने में मदद कर सकते हैं।
उनकी पार्टी के पीडीपी को पहले समर्थन का प्रस्ताव दिए जाने के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा, 'वह एक बार का प्रस्ताव था और उनके बीजेपी के साथ हाथ मिलाने के बाद वह प्रस्ताव समाप्त हो गया।'
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राजनीतिक घटनाक्रम से उनकी पार्टी के खुश होने की बात पूछे जाने पर उन्होंने कहा, 'हम गठबंधन टूटने का जश्न नहीं मनाते। हम राज्य में लोकतंत्र की समाप्ति पर मातम कर रहे हैं।'
क्या वह राज्यपाल से राज्य विधानसभा के निलंबन या इसे भंग किए जाने के लिए कहेंगे? अब्दुल्ला ने कहा कि यह राज्यपाल का विशेषाधिकार है, किसी अन्य का नहीं।
विडंबना यह भी है कि पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के दिवंगत पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद की उन राजनीतिक घटनाक्रमों में प्रमुख भूमिका थी, जिस कारण राज्य में सात बार राज्यपाल शासन लागू हुआ।
पिछली बार मुफ्ती सईद के निधन के बाद आठ जनवरी, 2016 को जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल का शासन लागू हुआ था। उस दौरान पीडीपी और बीजेपी ने कुछ समय के लिए सरकार गठन को टालने का निर्णय किया था।
तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से संस्तुति मिलने पर जम्मू- कश्मीर के संविधान की धारा 92 को लागू करते हुए वोहरा ने राज्य में राज्यपाल शासन लगाया था।
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जम्मू - कश्मीर में मार्च 1977 को पहली बार राज्यपाल शासन लागू हुआ था। उस समय एल के झा राज्यपाल थे। सईद की अगुवाई वाली राज्य कांग्रेस ने नेशनल कांफ्रेंस के नेता शेख महमूद अब्दुल्ला की सरकार से समर्थन वापस ले लिया था , जिसके बाद राज्यपाल शासन लागू करना पड़ा था।
मार्च 1986 में एक बार फिर सईद के गुलाम मोहम्मद शाह की अल्पमत की सरकार से समर्थन वापस लेने के कारण राज्य में दूसरी बार राज्यपाल शासन लागू करना पड़ा था।
इसके बाद राज्यपाल के रूप में जगमोहन की नियुक्ति को लेकर फारूक अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री के पद से त्यागपत्र दे दिया था।
इस कारण सूबे में तीसरी बार केंद्र का शासन लागू हो गया था। सईद उस दौरान केंद्रीय गृह मंत्री थे और उन्होंने जगमोहन की नियुक्ति को लेकर अब्दुल्ला के विरोध को नजरंदाज कर दिया था। इसके बाद राज्य में छह साल 264 दिन तक राज्यपाल शासन रहा , जो सबसे लंबी अवधि है।
इसके बाद अक्तूबर, 2002 में चौथी बार और 2008 में पांचवीं बार केंद्र का शासन लागू हुआ।
राज्य में छठीं बार साल 2014 में राज्यपाल शासन लागू हुआ था।
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