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विरोध के बावजूद आरएसएस के कार्यक्रम में शामिल होने नागपुर पहुंचे प्रणब, इन मुद्दों पर हो सकती है बात

देश यह जानने के लिए उत्सुक है कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी आरएसएस के मुख्यालय में गुरुवार को आखिर क्या कहेंगे।

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Deepak Kumar
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विरोध के बावजूद आरएसएस के कार्यक्रम में शामिल होने नागपुर पहुंचे प्रणब, इन मुद्दों पर हो सकती है बात

प्रणब मुखर्जी, पूर्व राष्ट्रपति

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पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों के मना करने के बावजूद आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसंवक संघ) के कार्यक्रम में शामिल होने बुधवार को नागपुर पहुंच गए हैं।

प्रणब मुखर्जी गुरुवार को आरएसएस के तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग के समापन में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल होंगे और सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के साथ मंच साझा करेंगे।

देश यह जानने के लिए उत्सुक है कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी आरएसएस के मुख्यालय में गुरुवार को आखिर क्या कहेंगे।

प्रणब मुखर्जी के आखिरी भाषण पर गौर करें तो राष्ट्रपति के तौर पर 2017 में दिया गया उनका अंतिम भाषण उनके पांच दशकों के राजनीतिक कार्यकाल के दौरान के उनके विचारों और चिंताओं को दर्शाता है।

प्रणव ने अपने 2017 के इस संबोधन में कहा था, 'मैं आपके साथ कुछ सच्चाई साझा करना चाहता हूं जिसका मैंने इस दौरान अनुभव किया है। भारत की आत्मा बहुलवाद और सहिष्णुता में बसती है। भारत केवल एक भौगोलिक जगह नहीं है। यह अपने में इतिहास के विचार, दर्शनशास्त्र, बुद्धि, औद्योगिक बुद्धिमत्ता, शिल्प, नवाचार और अनुभवों को समेटे हुए है। हमारे समाज की बहुलता दशकों से विचारों का आकलन करने के बाद उत्पन्न हुई है।'

उन्होंने अपने करियर के इस अंतिम भाषण में कहा था, 'संस्कृति, विश्वास और भाषा की विभिन्नता भारत को विशेष बनाती है। हमें सहिष्णुता से मजबूती मिलती है। यह सदियों से हमारी सामूहिक चेतना का हिस्सा रहा है। सार्वजनिक जीवन में कई विचार होते हैं। हम उनसे सहमत हो सकते हैं, नहीं भी हो सकते हैं। लेकिन हम विविध विचारों के होने से इनकार नहीं कर सकते। अगर हम ऐसा करेंगे तो अपनी विचार प्रक्रिया के एक मूल तत्व को हम गंवा देंगे।'

राष्ट्रपति बनने से पहले जिंदगी भर कांग्रेस के साथ रहे मुखर्जी गुरुवार को नागपुर में आरएसएस के कार्यकर्ताओं को संबोधित करने वाले है। आरएसएस के मंच पर यह उनका पहला भाषण होगा जिसकी वह अतीत में एक से अधिक बार आलोचना कर चुके हैं।

शायद इसीलिए, उनके द्वारा आरएसएस का निमंत्रण स्वीकार करने के बाद विवाद पैदा हो गया।

हालांकि, वह नागपुर में क्या बोलने वाले हैं, इसका सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा है कि वह जो भी कहेंगे, उसके बारे में पता उनके संबोधन के बाद ही चल पाएगा।

गौरतलब है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम, जयराम रमेश, सीके जाफर शरीफ समेत कांग्रेस के कई नेताओं ने पत्र और मीडिया के जरिए मुखर्जी को संघ के इस कार्यक्रम से दूर रहने की अपील की थी। नेताओं का कहना है प्रणब के कार्यक्रम में जाने से संघ विचारधारा को मजबूती मिल सकती है।

असम कांग्रेस प्रमुख रिपुन बोरा ने पत्र में लिखा कि प्रणब अपने आरएसएस के कार्यक्रम में जाने से पहले एक बार फिर सोचें। पूर्व राष्ट्रपति उस संस्था के कार्यक्रम में शामिल होने जा रहे हैं जिस संस्था ने आज तक राष्ट्रीय झंडे तक का आदर नहीं किया।

वहीं आरएसएस ने पूर्व राष्ट्रपति के नागपुर स्थित मुख्यालय में होने वाले एक कार्यक्रम में शामिल होने को सामान्य बताते हुए कहा कि इसमें कुछ भी 'आश्चर्यजनक' नहीं है।

आरएसएस नेता नरेंद्र कुमार ने कहा, 'जो भी संघ को जानते हैं या समझते हैं, यह उनके लिए आश्चर्यजनक या नया नहीं है। यह उनके लिए सामान्य है, क्योंकि आरएसएस प्रसिद्ध लोगों और सामाजिक सेवा से जुड़े लोगों को बुलाता रहता है। इस बार, आरएसएस ने डॉ. प्रणब मुखर्जी को निमंत्रण दिया है और यह उनकी महानता है कि उन्होंने यह निमंत्रण स्वीकार किया है।'

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संगठन ने कहा कि 25 दिवसीय 'तृतीय वर्ष वर्ग' प्रत्येक वर्ष नागपुर में मनाया जाता है, जिसमें पूरे देश से सदस्य प्रशिक्षण के लिए भाग लेते हैं।

बयान के अनुसार, 'इस वर्ष, यह 14 मई को शुरू हुआ था और यह सात जून को समाप्त होगा, जिसमें देश के विभिन्न भागों से 709 स्वयंसेवक अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे।'

बयान के अनुसार, यहां तक कि महात्मा गांधी ने वर्धा स्थित शिविर का दौरा किया था और बाद में कहा था कि वह संगठन के 'कड़े अनुशासन, सादगी और भेदभाव की अनुपस्थिति' से प्रभावित हुए।

पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन, समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण, फील्ड मार्शल के एम करियप्पा समेत अन्य हस्तियां भी आरएसएस के समारोह में भाग ले चुकी हैं।

बयान के अनुसार, 'भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी 1962 में चीन के साथ युद्ध के दौरान आरएसएस की भूमिका को देखते हुए इसे 1963 में गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था।'

बयान के अनुसार, 'तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने भी 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के समय सर्वदलीय बैठक में आरआरएस को आमंत्रित किया था।'

बयान में कहा गया है, 'संघ पिछले 92 वर्षो से समतावादी समाज बनाने के लिए कार्य कर रहा है और इसमें सफलता मिल रही है। जो भी इसके विचार और कार्य से सहमत होते हैं, वे संघ के समारोह में शामिल होते हैं और सहयोग करते हैं।'

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Source : News Nation Bureau

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