भारत-चीन रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलने के आसार, पीएम मोदी 14 को जाएंगे समरकंद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भाग लेने के लिए 14 सितंबर को समरकंद पहुंच जाएंगे और 16 सितंबर को वापसी करेंगे. इस दौरान उनकी शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन से अलग-अलग मुलाकात हो सकती है.
highlights
- शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भाग लेने जा रहे हैं पीएम नरेंद्र मोदी
- 14 सितंबर को पहुंच जाएंगे समरकंद और 16 सितंबर को करेंगे वापसी
- इस दौरान शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन से हो सकती है अलग वार्ता
नई दिल्ली:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उजबेकिस्तान के समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन की 15-16 सितंबर को होने वाली बैठक में भाग लेंगे. इसके पहले किर्गिस्तान में जून 2019 में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में पीएम मोदी ने वर्चुअल भाग लिया था. सूत्रों के मुताबिक पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) 14 सितंबर को समरकंद पहुंच जाएंगे और 16 सितंबर को वापस भारत आएंगे. शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में भारत की उपस्थिति इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि अगली बार नई दिल्ली को इसकी मेजबानी करनी है. जाहिर है भारत में होने वाली बैठक में रूस, चीन और पाकिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष भाग लेंगे. समरकंद में भी उम्मीद जताई जा रही है कि पीएम मोदी की व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) समेत शी जिनपिंग (Xi Jinping) से अलग से बातचीत हो सकती है. खासकर बीते दिनों रूस-चीन के साथ संयुक्त सैन्याभ्यास और एलएसी के विवादित प्वाइंट से पीएलए सैनिकों की वापसी के बाद इस मुलाकात की संभावनाओं को बल मिला है.
भारत-चीन के संबंध नहीं हैं सामान्य
जाहिर है पीएम मोदी की समरकंद यात्रा के दौरान शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन से अलग बातचीत पर राजनीतिक विश्लेषकों की निगाह रहेगी. गौरतलब है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी समेत पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ शंघाई सहयोग संगठन की बैठक की आड़ में द्विपक्षीय रिश्तों को लेकर एक कदम और आगे बढ़ा सकते हैं. हालांकि एससीओ बैठक से इतर अलग-अलग बातचीत को लेकर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है. गौरतलब है कि इसके पहले नवंबर 2019 में ब्राजील में ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन में पीएम नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग आमने-सामने थे. हालांकि दोनों की अलग से कोई बातचीत नहीं हुई. मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद दोनों देशों के बीच रिश्तों पर जमी बर्फ की परत कुछ और मोटी हो गई है. हालांकि बीते कुछ दिनों के घटनाक्रम से आने वाले समय में रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलने की उम्मीद भी बढ़ी है.
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मोदी-जिनपिंग में हो सकती है अलग से बातचीत
गौरतलब है कि भारत-चीन के बीच सीमा विवाद के महत्वपूर्ण प्वाइंट 15 यानी गोगरा हॉट स्प्रिंग से बीते दिनों दोनों देशों की सैनिकों की वापसी से इस बात की संभावनाएं काफी बढ़ गई हैं कि दिल्ली-बीजिंग के बीच उच्च स्तर पर बातचीत हो. बदलते सामरिक समीकरण भी इस बात की जरूरत पर बल दे रहे हैं कि भारत-चीन दक्षिण एशियाई राजनीति में एक-दूसरे के सहयोगी बनें. हालांकि दोनों देशों के बीच राजनीतिक स्तर पर बातचीत इस पर निर्भर करेगी की एलएसी पर हालात कैसे रहते हैं. सूत्रों की मानें तो पीएम नरेंद्र मोदी की व्लादिमीर पुतिन और इब्राहिम रईसी से मुलाकात तो काफी हद तक संभव है. हालांकि लद्दाख गतिरोध के बाद पहली बार पीएम मोदी और शी जिनपिंग एक ही मेज पर आमने-सामने होंगे. यह भी तय माना जा रहा है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की पीएम मोदी से अलग से बातचीत के लिए आधिकारिक स्तर पर कोई चर्चा भी नहीं हुई है.
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रूस-यूक्रेन युद्ध और अफगानिस्तान पर चर्चा तय
जानकारी के मुताबिक शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद बदले भू-राजनैतिक समीकरण पर चर्चा होगी. इसके साथ ही अफगानिस्तान में तालिबान सरकार पर भी बातचीत तय मानी जा रही है, क्योंकि शंघाई सहयोग संगठन के कई देशों की सीमाएं अफगानिस्तान से लगी हुई हैं. आधिकारिक सूत्रों की मानें तो पीएम नरेंद्र मोदी और उजबेकिस्तान के राष्ट्रपति शवकत मिर्जियोयेव के बीच मुलाकात तय है. शंघाई सहयोग संगठन का गठन जून 2001 में हुआ था. फिलवक्त इसके आठ देश सदस्य हैं. ये हैं चीन, भारत, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान. अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया को भी इसकी जल्द पूर्ण सदस्यता दे दी जाएगी. इसके अलावा अर्मेनिया, अजरबेजान, कंबोडिय़ा, नेपाल, श्रीलंका और तुर्की इस संगठन के अन्य वार्ताकार देश हैं. 2021 में ईरान को संगठन के स्थायी सदस्य बतौर मान्यता देने का निर्णय हुआ था, जिस पर जल्द ही अमल होगा.
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