मोदी 2.0 सरकार देश में एक साथ चुनाव कराने की दिशा में बढ़ा रही कदम
ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि राज्यसभा में एनडीए का बहुमत होते ही एक देश एक चुनाव मसले पर जरूरी संविधान संशोधन किया जा सकता है.
highlights
- मोदी 2.0 सरकार 2023 में एक साथ चुनावों की घोषणा कर सकती है.
- राज्यसभा में एनडीए का बहुमत होते ही होगा जरूरी संविधान संशोधन.
- हालांकि राज्य़सभा में बहुमत के लिए 2021-22 तक इंतजार करना होगा.
नई दिल्ली:
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने सरीखा बड़ा कदम उठाने के बाद केंद्र में सत्तारूढ़ मोदी सरकार 2.0 एक औऱ ऐतिहासिक कदम उठा सकती है. यह है देश में एक साथ चुनाव कराना, जिसकी ओर नरेंद्र मोदी सरकार तेजी से बढ़ रही है. ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि राज्यसभा में एनडीए का बहुमत होते ही इस मसले पर जरूरी संविधान संशोधन किया जा सकता है. गौरतलब है कि अगल साल नवंबर तक राज्यसभा में एनडीए के घटक दलों के सदस्यों की संख्या बहुमत का आंकड़ा पार कर लेगी.
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2023 में हो सकते हैं देश भर में चुनाव
सुत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार मोदी सरकार 2022 में आजादी की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर पूरे देश में 2023 में एक साथ चुनावों की घोषणा कर सकती है. अगर ऐसा होता है तो इसके लिए लोकसभा का कार्यकाल दो वर्ष कम किया जाएगा तथा विधानसभाओं का कार्यकाल कम या ज्यादा करने की बात होगी. एनडीए सरकार को सामान्य बहुमत राज्यसभा में अगले साल नवंबर में मिल जाएगा. क्योंकि राज्यसभा की लगभग 55 सीटें असम, महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल, उत्तराखंड सीटें वर्ष 2020 अप्रैल में खाली हो रही हैं.
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राज्यसभा में एनडीए का होगा बहुमत
राज्यसभा सीटों पर बीजेपी या उसके सहयोगी दलों के जीत कर आने की गणित इस कदम की बुनियाद बनेंगे. अगर देखा जाए तो सिर्फ उत्तर प्रदेश से 10 सीटें हैं और एक को छोड़ ये सभी सीटें भाजपा द्वारा जीतने की संभावना है क्योंकि भाजपा की प्रदेश में दो तिहाई बहुमत (309 सीटें) की सरकार है. भाजपा का जोर पार्टी के स्तर पर बहुमत लेने का है, मगर इसमें उसे वर्ष 2021-22 तक इंतजार करना होगा. इसके अलावा अगले साल भाजपा असम, ओडिशा, हिमाचल और उत्तराखंड से भी कुछ सीटें हासिल कर सकती है. हालांकि कुछ राज्यसभा सीटें वह मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में खोएगी.
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फायदा भी और नुकसान भी
समूचे देश में एक साथ लोकसभा विधानसभा चुनाव कराने का सबसे बड़ा फायदा मानव संसाधनों और खर्च की भारी बचत के रूप में सामने आएगा. दूसरी तरफ इस कदम के साथ कुछ आशंकाएं भी व्यक्त की जा रही हैं. इनमें भी प्रमुख है कि गठबंधन सरकार बनने पर कोई दल समर्थन वापस लेता है और सरकार के अल्पमत में आने की स्थिति में क्या होगा. हालांकि इसे मुद्दे का हल समर्थन वापस लेने वाले दल पर वैकल्पिक सरकार बनाने की शर्त रख कर किया जा सकता है या राज्य को राष्ट्रपति शासन के अधीन रखा जा सकता है या वहां दोबारा चुनाव करवाए जा सकते हैं जो बचे हुए कार्यकाल के लिए होंगे.
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