प्रधानमंत्री डिग्री मामला: आरटीआई खारिज करने पर डीयू अधिकारी पर 25 हज़ार रुपये का जुर्माना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री संबंधी आरटीआई को खारिज करने पर दिल्ली विश्वविद्यालय के एक अधिकारी पर केंद्रीय सूचना आयोग ने 25 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया।
highlights
- आरटीआई के ज़रिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्नातक डिग्री सें जुड़ी जानकारी दिल्ली विश्वविद्यालय से मांगी गई थी।
- दिल्ली विश्वविद्यालय की केंद्रीय जन सूचना अधिकारी ने आरटीआई खारिज की थी जिसके बाद केंद्रीय सूचना आयोग ने अधिकारी पर जुर्माना लगाया।
- मामले पर कार्रवाई करते हुए केंद्रीय जन सूचना अधिकारी पर 25 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया गया है।
दिल्ली:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्नातक की डिग्री के बारे में जानकारी न देने के मामले में केंद्रीय सूचना आयोग ने दिल्ली विश्वविद्यालय पर 25 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया है। दरअसल प्रधानमंत्री की स्नातक की डिग्री के बारे में आरटीआई के तह्त जानकारी मांगी गई थी। लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय के केंद्रीय जन सूचना अधिकारी ने इस याचिका को खारिज कर दिया जिसके बाद केंद्रीय सूचना आयोग ने केंद्रीय जन सूचना अधिकारी मीनाक्षी सहाय पर 25 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया है।
मुख्य सूचना आयुक्त एम.श्रीधर आचार्युलु ने अपने देश में दिल्ली विश्वविद्यालय की सीपीआईओ मीनाक्षी सहाय पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इनके द्वारा आवेदन को खारिज करना 'अशरफी लुटाकर कोयले पर मुहर' (पेनी वाइज, पाउंड फुलिश) की याद दिलाता है। आयोग, दिल्ली के एक वकील मोहम्मद इरशाद की एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिनके आरटीआई आवेदन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री के निरीक्षण की मांग को अस्वीकार कर दिया गया था।
इस आरटीआई को अस्वीकार करने के पीछे कारण यह दिया गया था कि भारतीय पोस्टल आर्डर (आईपीओ) विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार के पक्ष में चिन्हित नहीं था।आयोग ने 'लोक प्राधिकारी' को निर्देश देते हुए कहा कि सहाय के वेतन से 25000 रुपये की राशि वसूली जाए।
आयोग ने कहा कि पूरी कहानी सुनने के बाद जिसमें हजारों रुपये की राशि की कानूनी लड़ाई को महज दस रुपये के पोस्टल आर्डर की भेंट चढ़ा देने से 'पेनी वाइज, पाउंड फुलिश' की कहावत इस बदलाव के साथ दिमाग में आई कि 'रुपया वाइज एंड थाऊजेंड फुलिश'। मीनाक्षी सहाय ने अपने बचाव में दलील दी कि आरटीआई आवेदन को अस्वीकार करने में कोई दुभार्वना नहीं थी और उन्होंने विश्वविद्यालय की नीतियों का पालन किया था।
लेकिन मीनाक्षी सहाय की इन दलीलों को आयोग ने तर्कहीन बताया और अपनी टिप्पणी में कहा कि एक आरटीआई अनुरोध को अस्वीकार करने के लिए शुल्क बड़ी वजह नहीं हो सकती है।
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