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गुजरात के केवड़िया में PM नरेंद्र मोदी ने ब्यूरोकेसी को दी नसीहत, बोले- अपने निर्णयों को इन कसौटियों में जरूर कसें

सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती पर पीएम नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को गुजरात के केवड़िया में ट्रेनी आईएएस अफसरों को संबोधित किया है.

Updated on: 31 Oct 2019, 05:06 PM

नई दिल्ली:

सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती पर पीएम नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को गुजरात के केवड़िया में ट्रेनी आईएएस अफसरों को संबोधित किया है. उन्होंने कहा कि सरदार साहब ने ही याद दिलाया था कि ये ब्यूरोकेसी ही है जिसके भरोसे हमें आगे बढ़ना है, जिसने रियासतों के विलय में अहम योगदान दिया था. सरदार पटेल ने दिखाया है कि सामान्य जन के जीवन में सार्थक बदलाव के लिए हमेशा एक बुलंद इच्छाशक्ति को होना जरूरी होता है.

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पीएम मोदी ने आगे कहा कि आज भारत तेजी से बदल रहा है. कभी अभावों में चलनी वाली व्यवस्था आज विपुलता की तरफ बढ़ रही है. आज देश में विपुल युवा शक्ति, विपुल युवा भंडार और आधुनिक तकनीक है. उन्होंने कहा कि अपने सभी निर्णयों को आप ब्यूरोक्रेट्स को दो कसौटियों पर जरूर कसना चाहिए. एक, जो महात्मा गांधी ने रास्ता दिखाया था कि आपका फैसला समाज के आखिरी छोर पर खड़े व्यक्ति की आशा, आकांक्षाओं को पूरा करता है या नहीं. दूसरा, आपका फैसला इस कसौटी से कसना चाहिए कि उससे देश की एकता, अखंडता को बढ़ावा मिले.

पीएम ने आगे कहा कि ब्यूरोक्रेसी और सिस्टम आज दो ऐसे शब्द बन गए हैं जो अपने आप में नेगेटिव perception बन गया है. आखिर ये हुआ क्यों? जबकि अधिकतर अफसर मेहनती भी हैं. सिविल सेवाओं को लेकर अफसरशाही की, रौब की एक छवि रही है. इस छवि को छोड़ने में कुछ लोग पूरी तरह सफल नहीं हो पाए हैं. इस छवि को छोड़ने का पूरा प्रयत्न होना चाहिए.

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उन्होंने आगे कहा कि हमारे फैसलों और नीतियों को लेकर जो feedback आता है उसका ईमानदारी से आंकलन जरूरी है. ऐसा नहीं होना चाहिए कि जो हमारी आंखों और कानों को अच्छा लगे, वही देखना और सुनना है. हमें feedback प्राप्त करने के दायरे का विस्तार करने के साथ ही विरोधियों की बातों को भी सुनना चाहिए. हम किसी भी सर्विस में हों, हमें अपने comfort zone से बाहर आकर लोगों से जुड़ना बहुत आवश्यक है. इससे हमें सही नीतियों से संबंधित निर्णय लेने में बहुत मदद मिलेगी.

पीएम नरेंद्र मोदी ने आगे कहा कि आज पूरे भारत में हम देख रहे हैं कि नागरिक पहले से ज्यादा जागरूक हैं, संवेदनशील हैं. सरकार कोई भी मदद मांगे, एक आवाज लगाए या किसी मुहीम में शामिल होने को कहे तो लोग खुशी-खुशी उसमें शामिल हो जाते हैं. इसलिए हमारी जिम्मेदारी बनती है हम देशवासियों की ईज ऑफ लिविंग को बढ़ाएं.

उन्होंने कहा कि हमें इस बात को सुनिश्चित करना होगा कि सामान्य नागरिक को रोजमर्रा की चीजों से जूझना न पड़े. हमें ये ध्यान रखना होगा कि सामान्य मानवीय की जिंदगी सरकार के प्रभाव में दब न जाए और गरीब की जिंदगी सरकार के अभाव में दम न तोड़ दे.