सिंधु नदी जल समझौता पर विचार करने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बैठक शुरु हो गई है। इस बैठक में विदेश सचिव एस. जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल, और प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्र भी मौजूद हैं।
दरअसल पाकिस्तान पर नकेल कसने के लिये सरकार युद्ध के बजाए दूसरे रास्तों पर ध्यान लगा रही है। सरकार एक तरफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दबाव बना रही है तो दूसरी तरफ सिंधु नदी समझौते को लेकर भी दबाव बनाना चहती है। बताया जा रहा है कि सिंधु नदी समझौते के नफ़े-नुकसान पर समीक्षा के लिए पीएम ने सोमवार को संबंधित मंत्रियों और अधिकारियों की बैठक बुलाई है।
अपको बता दें कि भारत ने 1960 में पाकिस्तान के साथ सिंधु नदी समझौता साइन किया था। इस समझौते के मुताबिक, भारत अपनी 6 नदियों से पाकिस्तान को पानी दे रहा है। आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि भारत पाकिस्तान को ख़ुद से भी ज़्यादा पानी को दे रहा है। असल में भारत अगर इस समझौते को मानने से इनकार कर दे तो पाकिस्तान के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है और वो हर शर्त मानने को तैयार हो सकता है।
सिंधु जल समझौते से जुड़े पोल में हिस्सा लें:
आपको बता दें कि पाकिस्तान के कराची में 19 सितंबर 1960 को भारत ने वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में इंडस वाटर ट्रीटी साइन की थी। इसके मुताबिक, भारत पाक को अपनी सिंधु, झेलम, चिनाब, सतलुज, व्यास और रावी नदी का पानी देगा। इन नदियों का 80 फीसदी से ज्यादा पानी पाकिस्तान को मिलता है और पाकिस्तान का एग्रीकल्चर पूरी तरह से इन नदियों के पर निर्भर है।
इस ट्रीटी पर फॉर्मर पीएम जवाहर लाल नेहरू और पाक के फॉर्मर प्रेसिडेंट जनरल अयूब खान ने साइन किए थे।
ऐसे में अगर भारत ने इन नदियों का पानी बंद कर दिया तो पाकिस्तान का एग्रीकल्चर पूरी तरह तबाह हो जाएगा। क्योंकि, यहां खेती बारिश पर नहीं, बल्कि इन नदियों के पानी पर निर्भर है। इसलिए पाकिस्तान भारत के बगलियार और किशनगंगा पावर प्रोजेक्ट्स का इंटरनेशनल लेवल पर विरोध करता है। ये प्रोजेक्ट्स बन जाने के बाद उसे मिलने वाले पानी में कमी आ जाएगी और वहां परेशानी बढ़ जाएगी।