किसान आंदोलन को PFI का समर्थन, बीजेपी-संघ पर 'गुंडागर्दी' का आरोप
बीजेपी-संघ समेत मोदी सरकार विरोधी बयान से जाहिर है कि पीएफआई किसानों के बीच घुसपैठ कर अपने हित साधने की कोशिश कर रहा है.
नई दिल्ली:
नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ कथित आंदोलन में अपनी भड़काऊ और देशविरोधी हिंसक गतिविधियों को लेकर देश भर में खुफिया के रडार पर आए पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी PFI ने अब किसान आंदोलन में घुसपैठ कर ली है. एक बयान जारी कर पीएफआई ने न सिर्फ किसानों के कानूनों के खिलाफ जारी आंदोलन के अधिकार को कुचलने का आरोप मोदी सरकार पर लगाया है, बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर हिंसा फैला कर किसान आंदोलन को तोड़ने का आरोप भी मढ़ा है. पूरी तरह से बीजेपी-संघ समेत मोदी सरकार विरोधी बयान से जाहिर है कि पीएफआई किसानों के बीच घुसपैठ कर अपने हित साधने की कोशिश कर रहा है.
मोदी सरकार का बर्ताव अलोकतांत्रिक
पीएफआई के अध्यक्ष ओएमए सलाम ने एक बयान में मोदी सरकार के किसान आंदोलन को लेकर 'अलोकतांत्रित बर्ताव' की निंदा की है. सलाम ने कहा कि ताकत का इस्तेमाल कर सरकार शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे किसानों से उनका विरोध का संवैधानिक अधिकार छीन रही है. इसके साथ ही पीएफआई ने पुलिस प्रशासन से आंदोलनरत किसानों को सुरक्षा प्रदान करने को कहा है नाकि उनका दमन करने के लिए. इसके साथ ही संगठन 'दक्षिणपंथी गुंडों' को किसानों पर हमला करने का आरोप मढ़ा है.
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संघ परिवार फैला रहा हिंसा
यही नहीं, पीएफआई ने कहा है कि संघ परिवार हिंसा फैला कर किसानों को आंदोलनस्थल से हटाने के प्रयास कर रहा है. पीएफआई ने आरोप लगाया है कि किसान आंदोलन के खिलाफ स्थानीय लोगों का विरोध वास्तव में संघ परिवार की देन है, जिसका उनका संगठन घोर निंदा करता है. सलाम ने कहा कि केंद्र और योगी सरकार के ताकत के जरिए आंदोलनरत किसानों को धरना स्थल से हटाने के सारे के सारे प्रयास धरे के धरे रह गए हैं. संगठन ने कहा कि इस ताकत के प्रदर्शन से हुआ उलटा है और अब किसान आंदोलन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पैर पसार रहा है.
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फिर सीएए की याद दिला की अपील
इस बयान में पीएफआई ने सीएए विरोधी धरना-प्रदर्शन को भी फिर से शामिल किया है. बयान में कहा गया है कि केंद्र और योगी सरकार ने यही रणनीति सीएए विरोधी धरना-प्रदर्शन में अपनाई थीं. उसने कहा है कि स्थानीय लोगों के भेष में बीजेपी और संघ के गुंडे सोची-समझी रणनीति के तहत किसानों को डरा-धमका रहे हैं. संगठन ने सिविल सोसाइटी से किसान आंदोलन के समर्थन में मजबूती से खड़े होने की अपील भी की है. उसका कहना है कि देश की लोकतांत्रिक संस्कृति खतरे में है और फासीवादी ताकतों से उसे बचाने का संवैधानिक अधिकार आम लोगों के पास निहित है.
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