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पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से नहीं मिलेगी राहत, जानें क्या है कारण

दरअसल, सरकार को लगता है कि इससे चालू खाते का घाटा लक्ष्य से ऊपर निकल सकता है ऐसे में वह पेट्रोल, डीजल पर उत्पाद शुल्क कम करके राजकोषीय गणित के साथ छेड़छाड़ नहीं करना चाहती।

Updated on: 05 Sep 2018, 06:37 AM

नई दिल्ली:

देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतें पहले से ही अभूतपूर्व स्तर पर हैं और इसमें सोमवार को लगातार 7वें दिन भी बढ़ोतरी जारी रही। इतना ही नहीं आने वाले दिनों में भी इससे राहत मिलने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। सरकार ने पेट्रोल, डीजल के बढ़ते दाम से उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए उत्पाद शुल्क में कटौती की संभावनाओं को खारिज कर दिया। सरकार ने कहा है कि राजस्व वसूली में किसी तरह की कटौती की उसके समक्ष बहुत कम गुंजाइश है।

एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए में गिरावट के चलते आयात महंगा हो रहा है। 

दरअसल, सरकार को लगता है कि इससे चालू खाते का घाटा लक्ष्य से ऊपर निकल सकता है ऐसे में वह पेट्रोल, डीजल पर उत्पाद शुल्क कम करके राजकोषीय गणित के साथ छेड़छाड़ नहीं करना चाहती। अधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर ये बात कही। 

पेट्रोल और डीजल की कीमतें मंगलवार को नई ऊंचाई पर पहुंच गईं। इस दौरान भारतीय मुद्रा, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 71.54 के रेकॉर्ड निम्न स्तर तक गिर गई, जिसकी वजह से आयात महंगा हो गया।

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दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 79.31 रुपये प्रति लीटर की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई। वहीं डीजल का दाम 71.34 रुपये के रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। इस तेजी को कम करने के लिए उत्पाद शुल्क में कटौती की मांग उठी है।

इन दोनों ईंधन के दाम में करीब आधा हिस्सा, केंद्रीय और राज्य सरकारों द्वारा लिए जाने वाले कर का होता है।

पेट्रोल, डीजल के दाम में निरंतर वृद्धि पर टिप्पणी करते हुए, पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा, 'पेट्रोल, डीजल की कीमतों में निरंतर वृद्धि जरूरी नहीं है, क्योंकि ईधनों पर अत्यधिक करों की वजह से दाम ऊंचे हैं। अगर करों में कटौती की जाती है, तो कीमतें काफी कम हो जाएंगी।'

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वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि हम पहले से ही जानते हैं कि चालू खाते के घाटे पर असर होगा। यह जानते हुए हम राजकोषीय घाटे के संबंध में कोई छेड़छाड़ नहीं कर सकते हैं, हमें इस मामले में समझदारी से फैसला करना होगा।'

राजकोषीय घाटे का मतलब होगा आय से अधिक व्यय का होना जबकि चालू खाते का घाटा देश में विदेशी मुद्रा प्रवाह और उसके बाहरी प्रवाह के बीच का अंतर होता है। चुनावी वर्ष में सरकार सार्वजनिक व्यय में कटौती का जोखिम नहीं उठा सकती है। इसका विकास कार्यों पर असर होगा।