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पहले चरण के मतदान के बाद महबूबा, उमर के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करेगी अदालत

दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Elections 2019) में कश्मीरी नेता महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला की भागीदारी पर प्रतिबंध की मांग करने वाली याचिका पर शुक्रवार (12 अप्रैल) को सुनवाई होगी।

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Yogendra Mishra
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पहले चरण के मतदान के बाद महबूबा, उमर के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करेगी अदालत

प्रतीकात्मक फोटो

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Elections 2019) में कश्मीरी नेता महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला की भागीदारी पर प्रतिबंध की मांग करने वाली याचिका पर शुक्रवार (12 अप्रैल) को सुनवाई होगी। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति अनूप जयराम भमभानी की पीठ ने कहा कि शुक्रवार को मामले पर सुनवाई अन्य पीठ द्वारा की जाएगी।

अदालत 2019 आम चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की भागीदारी को प्रतिबंधित करने के लिए निर्वाचन आयोग को निर्देश देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में कहा गया कि 'इन दलों के नेताओं की वफादारी भारतीय संविधान में नहीं बल्कि कहीं और निहित है।'

वकील संजीव कुमार द्वारा दाखिल याचिका में इन नेताओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के राजद्रोह सहित विभिन्न आरोपों के तहत मामला दर्ज करने का निर्देश देने की भी मांग की गई। 

अपनी याचिका में याचिकाकर्ता ने कहा कि 'इन नेताओं को चुनाव लड़ने की इजाजत देना लोकतंत्र का मजाक होगा क्योंकि यह लोग धर्म के आधार पर 'भारत मां' को विभाजित करने और दो प्रधानमंत्री की मांग कर खुले तौर पर राजद्रोह कर रहे हैं। यह नेता एक प्रधानमंत्री जम्मू एवं कश्मीर के लिए और दूसरा शेष भारत के लिए मांग रहे हैं।'

याचिकाकर्ता ने अदालत से कहा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर का बयान अस्वीकार्य है। बयान में दोनों नेताओं ने कश्मीर के लिए वजीर-ए-आजम और सदर-ए-रियासत पद को फिर से बहाल करने की मांग की थी।

याचिका में कहा गया, "महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला के देशद्रोही, सांप्रदायिक बयान भारतीय संविधान के खिलाफ हैं और इसलिए अदालत/चुनाव आयोग को उनके लोकसभा में प्रवेश पर हर शर्त पर प्रतिबंध लगाना चाहिए क्योंकि उनकी वफादारी भारतीय संविधान में नहीं बल्कि कहीं और निहित है।"

Source : IANS

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