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पेगासस मामले में SC में आदेश सुरक्षित, CJI ने केंद्र सरकार पर दिखाई सख्ती

सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता चाहते है कि सरकार बताये कि किसी विशेष सॉफ्टवेयर ( पेगासस) का जासूसी के इस्तेमाल हुआ या नहीं. 

Updated on: 13 Sep 2021, 01:43 PM

नई दिल्ली :

सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को पेगासस मामले पर सुनवाई हुई. सुनवाई में केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि वो इस मामले पर एफिडेविट दाखिल नहीं करने जा रही है. ये राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मसला है. इस पर सार्वजनिक चर्चा नहीं हो सकती है. केंद्र ने कहा कि वो इसकी जांच के लिए पैनल गठित कर सकते हैं. पैनल के सामने सारी बातें रख सकते हैं.  सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता चाहते है कि सरकार बताये कि किसी विशेष सॉफ्टवेयर ( पेगासस) का जासूसी के इस्तेमाल हुआ या नहीं. 

हमारा कहना है कि इन सब बातों को हम एफिडेविट के जरिये नहीं रख सकते. ये राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मसला है. इस पर सार्वजनिक चर्चा नहीं हो सकती. हम हलफनामे के जरिये ये खुलासा कर सकते कि किसी A या B सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल हुआ है या नहीं.

तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत को आगे बताया कि सेक्शन 69 के तहत टेरर फंडिंग, टेरर लिंक का पता लगाने के लिए कॉल इंटरसेप्ट की जा सकती है.  हम सारी बातें कमेटी के सामने रखेंगे. किसी ख़ास सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल हुआ या नहीं, इस बारे में हलफनामे में नहीं रख सकते.

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रमना ने फिर पूछा कि हम पहले ही कह चुके है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े संवेदनशील मसले पर हम कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं करना चाहते. हमारे सामने याचिकाकर्ता जो आये है, उनका कहना है कि उनकी निजता का हनन हुआ है. 

हमारी दिलचस्पी सिर्फ इतनी जानने में है कि अगर ऐसा हुआ है तो ये क़ानून सम्मत तरीके से हुआ है या नहीं.

जिसपर तुषार मेहता ने आईटी मिनिस्टर का बयान बढ़ा. उन्होंने कहा कि कमेटी का गठन करने के पक्ष में हम हैं. इन सब संवेदनशील बातों को नहीं हलफनामे में रख सकते

.जिसपर कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि आप बार बार एक ही बात दोहरा रहे है. हम पहले ही कह चुके है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुडी संवेदनशील जानकारी हम आपसे चाहते ही नहीं है. हम सीमित बिन्दु पर आपसे जवाब चाहते है.

कोर्ट ने कहा, 'आपके रूख से साफ है कि आप सीमित बिंदु ( कि क्या सरकार ने जासूसी की अनुमति दी थी/ या जासूसी क़ानून सम्मत तरीके से हुई) पर भी जवाब दाखिल नहीं करना चाहते.'

याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल ने अपनी बात रखी. कपिल सिब्बल ने ब्लैकमनी केस का हवाला दिया. सिब्बल ने कहा, 'सरकार ऐसे कोर्ट से जानकारी नहीं छुपा सकती. ये अदालत को न्याय करने से रोकता है. जब नागरिकों के मूल अधिकारों के हनन की बात हो, सरकार ऐसा रुख नहीं अपना सकती. ये सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वो कोर्ट/ याचिकाकर्ताओं के साथ जानकारी साझा करें. सरकार का ये रुख नागरिकों की अभिव्यक्ति की आजादी का हनन है.'

सिब्बल ने आगे कहा कि अंतराष्ट्रीय एजेंसियों ने माना है कि भारतीयों को टारगेट किया गया. एक्सपर्ट का कहना है कि भारतीयों के फोन हैक किये गए. कल जर्मनी ने भी माना पर भारत सरकार स्वीकार नहीं करना चाहती. सरकार सीधे-सीधे मना भी नहीं कर रही है. इसका मतलब उसने सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया है.

सिब्बल ने "हवाला केस" का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि वहां जांच के लिए जजों के पैनल बनाया गया था. इस केस में ऐसा किया जा सकता है. हमारे आरोप सरकार के खिलाफ है, फिर सरकार को अपनी ही कमेटी के गठन की इजाज़त कैसे दी जा सकती है. कमेटी ऐसी होनी चाहिए जो सरकार के प्रभाव से मुक्त हो. 

दूसरे याचिकाकर्ता जगदीप छोकर की ओर से श्याम दीवान दलीले रखी. श्याम दीवान ने आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञ संदीप शुक्ला और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ आनंद वी के हलफनामे का हवाला दिया. उन्होंने बताया है किइस सॉफ्टवेयर से जिसकी जासूसी होती है, उसे पता ही नहीं चल पाता. ये न केवल जासूसी करता है बल्कि इसके जरिये फर्जी डेटा/ डॉक्यूमेंट भी इम्प्लांट किया जा सकता है.  हम चाहते थे कि कैबिनेट सेकेट्री रैंक के अधिकारी हलफनामे में खुलासा करें.

तमाम दलीलों को सुनने के बात सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया. सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस मामले की कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग पर आदेश सुरक्षित रखा. दो तीन दिन में सीजेआई इसपर अपना फैसला सुनाएंगे.