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दिल्ली विश्वविद्यालय: एससी एसटी सेल की तर्ज पर ट्रांसजेंडर के लिए सेल बनाने मांग

दिल्ली विश्वविद्यालय: एससी एसटी सेल की तर्ज पर ट्रांसजेंडर के लिए सेल बनाने मांग

Updated on: 22 Aug 2021, 05:00 PM

नई दिल्ली:

दिल्ली विश्वविद्याालय के कुलपति प्रोफेसर पीसी जोशी से एससी एसटी सेल की तर्ज पर विश्वविद्यालय में ट्रांसजेंडर के लिए सेल की स्थापना करने की मांग की गई है। विश्वविद्यालय के शिक्षकों का कहना है कि यूजीसी द्वारा भेजे गए सकरुलर को लागू नहीं किया है ,उसे तुरंत लागू करने की मांग की गई है।

दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन ( डीटीए ) के मुताबिक यूजीसी के चेयरमैन ने सुप्रीम कोर्ट के सात साल पहले एक फैसले के अंतर्गत ट्रांसजेंडर्स को सुविधाएं मुहैया कराने की बात कही थी।

इसके तहत जामिया मिलिया इस्लामिया, अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, इलाहबाद यूनिवर्सिटी, जेएनयू, बीएचयू, इग्नू, लखनऊ यूनिवर्सिटी, अम्बेडकर यूनिवर्सिटी ,एमडीयू, केयू और दिल्ली यूनिवर्सिटी समेत देशभर की तमाम सेंट्रल यूनिवर्सिटी, स्टेट यूनिवर्सिटी व डीम्ड यूनिवर्सिटीज को ट्रांसजेंडर्स को सुविधाएं देने की बात कही थी।

डीटीए के अध्यक्ष डॉ हंसराज सुमन ने बताया है कि यूजीसी के चेयरमैन ने ट्रांसजेंडर छात्रों के कल्याणार्थ एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया गया था। ऐसा उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 15 अप्रैल 2014 के जजमेंट के बाद निर्णय लिया, उसके बाद यूजीसी की अंडर सेक्ट्ररी ने देशभर की सभी यूनिवर्सिटीज को एक सकरुलर जारी कर निर्देश दिए थे कि यूनिवर्सिटी एवं कॉलेजों में ट्रांसजेंडर से संबंधित विभिन्न मुद्दों को उचित एवं प्रभावी तरीके से लागू करने के निर्देश दिए गए।

इस संदर्भ में यूजीसी ने उचित कार्यवाही करते हुए एक्सपर्ट की एक कमेटी बनाकर इस बात को लागू करने की बात कही है। एक्सपर्ट कमेटी ने सुझाव दिया है कि इक्वल अपोर्चनीटी सेल को इस संदर्भ में रिसर्च और अन्य विभिन्न मुद्दों से संबंधित सभी जानकारी उपलब्ध कराएं।

डॉ हंसराज सुमन ने बताया है कि आज तक इन यूनिवर्सिटीज में न तो सेल ही बना है और न ही एडमिशन संबंधी गाइड लाइन ही बनी है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय आने के बाद से विभिन्न सेवाओं में आरक्षण उपलब्ध कराके उनके हितों की रक्षा के लिए विशिष्ट प्रावधान किया गया है और पिछले कई साल इनका अलग श्रेणी में दिल्ली यूनिवर्सिटी में रजिस्ट्रेशन किया गया था ताकि ये उच्च शिक्षा प्राप्त कर मजबूत बने।

उन्होंने बताया है कि शैक्षिक सत्र 2016-17 में ट्रांसजेंडर के 15 छात्रों ने अपना रजिस्ट्रेशन कराया था। इसी तरह शैक्षिक सत्र 2017-18 में 86 ट्रांसजेंडर ने आवेदन किया था। उनका यह भी कहना है कि इन वर्गों के लिए आज तक कोई कमेटी नहीं बनी और ना ही इनके एडमिशन की नीति क्या होगी ,तय नहीं किया गया ।

डॉ. सुमन ने बताया है कि वर्ष 2018 में उन्होंने एडमिशन कमेटी की पहली मीटिंग में ट्रांसजेंडर संबंधी कई मुद्दों जैसे एडमिशन, हॉस्टल, स्कॉलरशिप व अन्य सुविधाओं पर चर्चा की थी लेकिन बावजूद इसके आज तक न तो दिल्ली यूनिवर्सिटी में इक्वल अपोर्चनीटी सेल द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं को कॉलेजों को सकरुलर ही भेजा और न ही कोई नीति बनी है।

डीटीए ने अपने पत्र में यह भी मांग की है कि यूजीसी के सकरुलर जारी होने के बाद से सेंट्रल, स्टेट और डीम्ड यूनिवर्सिटीज और संबद्ध कॉलेजों में ट्रांसजेंडर्स के कितने एडमिशन अभी तक हुए हैं, उनके आंकड़े मंगवाएं जाएं। इन आंकड़ों को यूजीसी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में दर्ज करें कि प्रति वर्ष कितने एडमिशन यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों में हुए हैं। उनका कहना है कि कॉलेजों व यूनिवर्सिटी के पास ट्रांसजेंर्ड संबंधी कोई डाटा नहीं है कि कितने छात्रों ने अप्लाई किया, कितने एडमिशन ले पाएं और कितने छोड़कर चले गए ,का कोई आंकड़ा अभी तक नहीं है।

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