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बिहार विधानसभा ने लोकतंत्र को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है - राज्यपाल

बिहार विधानसभा ने लोकतंत्र को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है - राज्यपाल

Updated on: 21 Oct 2021, 10:40 PM

ंपटना:

बिहार के राज्यपाल फागू चौहान ने गुरुवार को यहां कहा कि बिहार विधानसभा ने लोकतंत्र को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है तथा अपनी लम्बी यात्रा में इसने लोकतांत्रिक सिद्धांतों, परम्पराओं एवं मर्यादाओं का सफलतापूर्वक निर्वहन किया है।

उन्होंने कहा कि विधानसभा जनाकांक्षाओं को मुखर अभिव्यक्ति देने के साथ-साथ उनकी पूर्ति के लिए सार्थक प्रयत्न भी किया है।

बिहार विधानसभा के शताब्दी समारोह को संबोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि

बिहार विधानसभा ने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन के वाहक के रूप में उत्कृष्ट और प्रभावशाली भूमिका निभायी है।

बिहार विधानसभा के शताब्दी समारोह को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी संबोधित किया।

राज्यपाल ने कहा कि 22 मार्च, 1912 को बंगाल प्रेसीडेन्सी से अलग करके बिहार एवं उड़ीसा को मिलाकर एक पृथक राज्य की स्थापना की गई जिसका मुख्यालय पटना निर्धारित किया गया। इस राज्य के अस्तित्व में आने पर इसके विधायी कार्य के संचालन के लिए गठित विधायी परिषद् एवं इसके सचिवालय के लिए एक नये भवन का निर्माण कराया गया, जो वर्तमान में बिहार विधान सभा का मुख्य भवन है।

राज्यपाल ने कहा कि सदन का मुख्य कार्य कानून बनाना, जनोपयोगी मुद्दों पर बहस एवं चर्चा करना तथा नीतियों पर निर्णय लेना है। यह एक ऐसा मंच है जहां लोगों की इच्छाएं और जरूरतें गंभीर विचार-विमर्श तथा बहस के माध्यम से सामने आ पाती हैं।

उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि हाल के दिनों में बैठकों की घटती संख्या, बढ़ते व्यवधानों, सदन के बार-बार स्थगित होने एवं बहस के गिरते स्तर आदि के कारण चिंताजनक स्थिति उत्पन्न हो गई है।

उन्होंने कहा, आज आमजन की आकांक्षाएं बढ़ गई हैं, इसलिए आवश्यक है कि विधायी फैसला लेने में सदस्यों की अधिकाधिक भागीदारी हो तथा तर्कपूर्ण बहस एवं गंभीर विचार-विमर्श के जरिये कानून बनाया जाए।

राज्यपाल ने साफ शब्दों में कहा कि सरकार और विपक्ष एक-दूसरे से भिन्न नहीं हैं। दोनों ही पक्षों के सदस्य जनता के चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं तथा उनका उद्देश्य जनता की समस्याओं का समाधान एवं उनकी भलाई करना तथा देश एवं राज्य को विकसित करना है, इसलिए सत्तापक्ष और विपक्ष -दोनों को ही अपने संकीर्ण हितों से ऊपर उठकर सदन में बहस और विमर्श को सार्थक एवं प्रभावशाली बनाने हेतु गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए, जिससे हमारे देश का संसदीय लोकतंत्र अक्षुण्ण रहे तथा अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल हो सके।

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