अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर लगभग सभी दल अपनी रणनीति बनाने में जुटे हैं। इसी रणनीति के तहत दोनों गठबंधनों की नजर दलित वोटों पर है।
एक अनुमान के मुताबिक राज्य में 16 प्रतिशत से अधिक मतदाता दलित समाज से बताए जाते हैं। मतदाताओं पर नजर दोनों गठबंधन नेताओं की है।
वैसे, इसमें कोई शक नहीं कि दिग्गज नेता रामविलास पासवान जब तक थे तब तक अधिकांश दलित वोटों पर उनका कब्जा था। लेकिन, फिलहाल दलितों के बड़े नेता के रूप में रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के जीतन राम मांझी की पहचान बनी है।
चिराग कुछ वर्षों पूर्व तक एनडीए के साथ थे। जबकि, मांझी की पार्टी हम कुछ दिनों पहले तक बिहार में सत्ताधारी महागठबंधन के घटक दलों में एक थी।
फिलहाल, दोनों दल किस गठबंधन के साथ जायेंगे, इसकी औपचारिक घोषणा तो पार्टी द्वारा नहीं हुई है, लेकिन हाल के दिनों में दोनों की नजदीकियां एनडीए से बढ़ी हैं।
चिराग पासवान की सियासत ही नीतीश कुमार के विरोध के इर्द-गिर्द घूमती दिखती है। चिराग पासवान लगातार नीतीश पर निशाना साधते रहे हैं। इधर, मांझी की पार्टी भी अब नीतीश को निशाने पर ले रखी है।
भाजपा के प्रवक्ता निखिल आनंद कहते हैं कि महागठबंधन में अब कोई बड़ा दलित नेता नहीं रह गया है। चिराग पासवान ने पहले ही महागठबंधन से दूरी बना रखी थी और अब जीतन राम मांझी ने भी महागठबंधन को छोड़ दिया है। नीतीश कुमार ने दलितों को ठगने का ही काम किया है, जिससे दलित उनसे नाराज हैं।
इधर, राजद और जदयू भाजपा पर दलितों को ठगने का आरोप लगा रही है। जदयू के नेता कहते हैं कि मांझी को मुख्यमंत्री बनाने वाले भी नीतीश कुमार ही है।
राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि केंद्र सरकार दलितों की राशि रोककर खुद को दलित विरोधी साबित कर चुकी है। मांझी ने महागठबंधन छोड़कर अपने समाज को ही धोखा दिया है।
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Source : IANS