2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले महागठबंधन को राज्य में शराबबंदी, बढ़ते अपराध और रेत खनन माफिया जैसे मुद्दों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पिछले साल अगस्त में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद बिहार में फिर से जंगल राज का सवाल उठा। राज्य में जब भी शराब त्रासदी होती है, बीजेपी खासतौर पर इसे लेकर मुखर रहती है।
साल 2023 की शुरुआत सारण शराब त्रासदी से हुई, इसमें 100 से ज्यादा लोग मारे गए, जबकि कई लोगों की आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली गई। मामला संसद में भी उठा था।
भाजपा नेताओं ने इसके लिए बिहार में शराब बंदी के गलत क्रियान्वयन को जिम्मेदार ठहराया और दावा किया कि बिहार पुलिस, आबकारी विभाग, शराबबंदी विभाग और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों का शराब माफिया पर कोई नियंत्रण नहीं है।
राज्य भाजपा प्रवक्ता अरविंद कुमार सिंह ने कहा, नीतीश कुमार अब बूढ़े हो रहे हैं और उनका नौकरशाहों पर नियंत्रण नहीं है। शराब माफियाओं और सरकारी अधिकारियों की सांठगांठ के बारे में सभी जानते हैं। जब भी कोई शराब त्रासदी होती है, राज्य सरकार जांच के लिए एक टीम का गठन करती है, जो एक फाइल के साथ समाप्त होती है। कोई भी वास्तविक मुद्दों का समाधान नहीं करता।
बिहार में जन सुराज पदयात्रा कर रहे राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा, मैं पहले दिन से इशारा कर रहा हूं कि शराबबंदी से बिहार को नुकसान होगा और शराबबंदी कानून को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।
कुमार ने कहा, इस बात का कोई सबूत नहीं है कि शराबबंदी से सामाजिक और आर्थिक विकास होता है। अगर शराबबंदी से सामाजिक और आर्थिक विकास संभव होता, तो कई देश इस रणनीति को अपनाते। राज्य सरकार को शराब की होम डिलीवरी से भी हर साल 20 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है।
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के अध्यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी शराबबंदी की आलोचना की है। उन्होंने नीतीश कुमार सरकार से इसे हटाने की गुहार भी लगाई है।
लेकिन अलग-अलग हलकों से आलोचना झेलने के बावजूदनीतीश कुमार शराबबंदी पर अड़े हैं।
हालांकि उन्होंने जहरीली शराब पीने से जान गंवाने वालों के परिजनों को मुआवजा देने का संकेत दिया है। उन्होंने इस मामले पर फैसला लेने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाने का भी संकेत दिया है।
बिहार में शराबबंदी के साथ ही अपराध का ग्राफ भी तेजी से बढ़ रहा है और नीतीश कुमार को लगता है कि यह एक ऐसा मुद्दा हो सकता है, जिस पर भाजपा आगामी चुनावों से पहले उन्हें निशाना बना सकती है।
इसलिए, उन्होंने सबसे कुशल आईपीएस अधिकारियों में से एक आर.एस. भट्टी को डीजीपी के रूप में चुना। उन्होंने अपराध पर लगाम लगाने के लिए राजीव मिश्रा को पटना का नया एसएसपी भी बनाया है।
हालांकि, इन सभी अधिकारियों के बावजूद, बिहार में हर तरह के अपराध नियमित रूप से होते रहते हैं।
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Source : IANS