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पटेल को जम्मू-कश्मीर के पाक में शामिल होने से कोई गुरेज नहीं था: कांग्रेस

कांग्रेस ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस दावे का खंडन किया कि भारत के पहले पीएम जवाहरलाल नेहरू ने जम्मू-कश्मीर का मुद्दा नहीं सुलझाया था. भले ही पीएम मोदी ने नेहरू का नाम नहीं लिया, लेकिन कांग्रेस ने कहा कि उन्हें पहले तथ्यों की जांच करनी चाहिए. पार्टी ने जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन शासक महाराजा हरि सिंह पर स्वतंत्रता के तुरंत बाद भारत में शामिल नहीं होने का आरोप लगाया, लेकिन पाकिस्तान के आक्रमणकारियों द्वारा इस स्थान पर कब्जा करने की कोशिश के बाद ही निर्णय लिया

Updated on: 11 Oct 2022, 04:22 PM

नई दिल्ली:

कांग्रेस ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस दावे का खंडन किया कि भारत के पहले पीएम जवाहरलाल नेहरू ने जम्मू-कश्मीर का मुद्दा नहीं सुलझाया था. भले ही पीएम मोदी ने नेहरू का नाम नहीं लिया, लेकिन कांग्रेस ने कहा कि उन्हें पहले तथ्यों की जांच करनी चाहिए. पार्टी ने जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन शासक महाराजा हरि सिंह पर स्वतंत्रता के तुरंत बाद भारत में शामिल नहीं होने का आरोप लगाया, लेकिन पाकिस्तान के आक्रमणकारियों द्वारा इस स्थान पर कब्जा करने की कोशिश के बाद ही निर्णय लिया.

संचार विभाग के प्रभारी कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने राजमोहन गांधी की किताब का हवाला दिया और कहा, पीएम ने एक बार फिर वास्तविक इतिहास को झुठलाने की कोशिश की. वह केवल जम्मू-कश्मीर पर नेहरू को बदनाम करने के लिए निम्नलिखित तथ्यों की अनदेखी करते हैं. यह सब राजमोहन गांधी की सरदार पटेल की जीवनी में अच्छी तरह से उल्लेखित किया गया है. ये तथ्य पीएम को भी पता हैं.

जयराम गुलाम नबी आजाद का जिक्र कर रहे थे, जिन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और एक नई राजनीतिक पार्टी बनाई.

जयराम ने आगे कहा, महाराजा हरि सिंह ने विलय को दुविधा में थे. लेकिन वह स्वतंत्रता के सपने देख रहे थे. पर पाकिस्तान के आक्रमण के बाद उन्हें भारत में प्रवेश करने के लिए मजबूर होना पड़ा. वहीं 13 सितंबर 1947 तक सरदार पटेल का मानना था कि जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान में शामिल हो जाए, तो ठीक होगा.

जयराम ने कहा कि, शेख अब्दुल्ला ने पूरी तरह से नेहरू के साथ अपनी दोस्ती और गांधी के प्रति उनके सम्मान के कारण भारत में प्रवेश का समर्थन किया.

उन्होंने कहा, कश्मीर के बारे में वल्लभभाई ने 13 सितंबर 1947 को बलदेव सिंह को लिखे एक पत्र में, संकेत दिया था कि अगर (कश्मीर) दूसरे डोमिनियन में शामिल होने का फैसला करता है, तो वह इस तथ्य को स्वीकार करेंगे. बाद में उनका रवैया बदल गया कि जिस दिन उन्होंने सुना कि पाकिस्तान ने जूनागढ़ का विलय स्वीकार कर लिया है.

किताब में राजमोहन लिखते हैं कि, यदि जिन्ना एक मुस्लिम शासक के साथ एक हिंदू बहुल राज्य पर अधिकार कर सकते थे, तो सरदार को एक हिंदू शासक के साथ मुस्लिम बहुल राज्य में दिलचस्पी क्यों नहीं होनी चाहिए. उस दिन से जूनागढ़ और कश्मीर उनकी एक साथ चिंता बन गए. वह एक को हथिया लेते और दूसरे की रक्षा करते. यदि जिन्ना ने राजा और मोहरे को भारत जाने दिया होता, जैसा कि हमने देखा, पटेल ने रानी को पाकिस्तान जाने दिया होता, लेकिन जिन्ना ने इस सौदे को अस्वीकार कर दिया.

प्रधानमंत्री ने नेहरू पर परोक्ष रूप से हमला करते हुए सोमवार को कहा कि सरदार पटेल ने अन्य रियासतों के विलय के मुद्दों को सुलझाया, लेकिन एक व्यक्ति कश्मीर मुद्दे को हल नहीं कर सका.

गुजरात में एक रैली को संबोधित करते हुए मोदी ने पहले पीएम का नाम लिए बिना उन पर निशाना साधा और कहा, सरदार साहब ने सभी रियासतों को भारत में मिलाने में कामयाबी हासिल की, लेकिन एक और व्यक्ति ने कश्मीर के इस एक मुद्दे को संभाला. उन्होंने कहा, इसलिए यह अभी भी अनसुलझा है और वह पटेल के नक्शेकदम पर चल रहे हैं.