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बच्चों को गोद लेने और संरक्षण के मानदंडों को मजबूत करने का बिल पारित

किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 में संशोधन करता है, जिसमें देखभाल एवं सुरक्षा की आवश्यकता वाले बच्चों और कानूनी अड़चन में फंसे बच्चों से संबंधित प्रावधान हैं.

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Shailendra Kumar
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बच्चों को गोद लेने और संरक्षण के मानदंडों को मजबूत करने का बिल पारित( Photo Credit : IANS)

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बच्चों को गोद लेने एवं उनका बेहतर संरक्षण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लोकसभा ने बुधवार को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के प्रावधानों को मजबूत करने के लिए सर्वसम्मति से एक विधेयक पारित किया. केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी ने सदन को संबोधित करते हुए कहा कि संशोधित विधेयक एक पैनल द्वारा चिह्न्ति विभिन्न मुद्दों को संबोधित करेगा, जो किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के क्रियान्वयन में देखा गया था.

किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 में संशोधन करता है, जिसमें देखभाल एवं सुरक्षा की आवश्यकता वाले बच्चों और कानूनी अड़चन में फंसे बच्चों से संबंधित प्रावधान हैं. यह विधेयक बाल संरक्षण अवसंरचना को मजबूत करने के उपायों को पेश करता है. इसमें कहा गया है कि गंभीर अपराधों को उन अपराधों के रूप में शामिल किया जाएगा जिनके लिए अधिकतम सजा 7 साल से अधिक का कारावास है और न्यूनतम सजा निर्धारित नहीं है या 7 साल से कम है.

ऐसे अपराध जो 3 से 7 साल के कारावास के साथ दंडनीय हैं, अब जहां वारंट के बगैर गिरफ्तारी की अनुमति नहीं होगी. विधेयक में यह भी प्रावधान है कि जिला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित गोद लेने के आदेश से व्यथित कोई भी व्यक्ति इस तरह के आदेश के पारित होने की तारीख से 30 दिनों के भीतर संभागीय आयुक्त के समक्ष अपील दायर कर सकता है. इस तरह की अपीलों को अपील दायर करने की तारीख से चार सप्ताह के भीतर निपटाया जाना चाहिए.

मंत्री ने कहा कि विधेयक का उद्देश्य चाइल्ड केअर इकाइयों में रहने वाले बच्चों के साथ-साथ कहीं से बचाए गए बच्चों को सुरक्षा प्रदान करना है. मंत्री ने कहा कि सरकार ने कामकाज में खामियों का पता लगाने के लिए भारत में 7,000 से अधिक चाइल्ड केअर संस्थानों के ऑडिट के बाद विधेयक में संशोधन की योजना बनाई. इनमें से लगभग 90 प्रतिशत एनजीओ द्वारा चलाए जा रहे हैं.

मंत्री ने कहा कि एक ऑडिट में यह पाया गया कि 29 प्रतिशत संस्थान पंजीकृत नहीं थे. कई राज्यों में 26 प्रतिशत संस्थानों में कोई महिला कर्मचारी नहीं है. 15 प्रतिशत संस्थानों में अन्य कमियों के अलावा बच्चों के लिए अलग बिस्तर नहीं हैं.

 

HIGHLIGHTS

  • किशोर न्याय संशोधन विधेयक, 2021 पारित
  • 'ऐसे अपराध जो 3 से 7 साल के कारावास के साथ दंडनीय हैं'
  • 'लगभग 90 प्रतिशत एनजीओ द्वारा चलाए जा रहे हैं'

 

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