तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम ने AIADMK की महासचिव वी. के. शशिकला के खिलाफ मंगलवार को मोर्चा खोल दिया। पन्नीरसेल्वम ने देर शाम पत्रकारों से कहा कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया।
हालांकि इसके थोड़ी देर बाद ही शशिकला ने अपने कार्यकर्ताओं की आपातकालीन बैठक बुलाई। बैठक से बाहर निकलते ही शशिकला ने पन्नीरसेल्वम पर डीएमके के इशारे पर चलने का आरोप लगाया है।
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ज़ाहिर है इससे पहले डीएमके नेता एमके स्टालिन ने शशिकला की होने वाली ताज़पोशी पर सवाल खड़े करते हुए कहा था कि जयललिता ने अपने रहते हुए हमेशा ही पन्नीरसेल्वम को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाया। ऐसे में पन्नीरसेल्वम को ही सीएम पद पर बने रहना चाहिए।
मंगलवार को इससे पहले, विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष पी. एच. पांडियान और पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता की भतीजी दीपा जयकुमार ने भी शशिकला को मुख्यमंत्री बनाए जाने को लेकर विरोध व्यक्त किया।
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पांडियान ने जहां जयललिता को अस्पतला में भर्ती किए जाने की परिस्थितियों पर जांच बिठाए जाने की मांग की, वहीं जयकुमार ने कहा कि राज्य की जनता शशिकला को मुख्यमंत्री बनाए जाने के खिलाफ है।
राज्य में जिस तरह से राजनीतिक घमासान जारी है उससे यही लगता है कि इतिहास एक बार फिर से ख़ुद को दोहरा रही है।
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पिछले तीन दशकों से तमिलनाडु की राजनीति में महत्वपूर्ण सितारा रहकर अपनी शर्तों पर राजनीति करने वाली जयललिता के लिए भी एमजीआर की मौत के बाद राजनीतिक राह आसान नहीं थी। 1987 में एम जी रामचंद्रन के निधन के बाद पार्टी को चलाने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई और उन्होंने व्यापक राजनीतिक सूझ-बूझ का परिचय दिया।
नायिका के तौर पर जयललिता का सफर ‘वेन्निरा अदाई’ (द व्हाइट ड्रेस) से शुरू हुआ। राजनीति में उनकी शुरूआत 1982 में हुयी जिसके बाद एमजीआर ने उन्हें अगले साल प्रचार सचिव बना दिया। रामचंद्रन ने करिश्माई छवि की अदाकारा-राजनेता को 1984 में राज्यसभा सदस्य बनाया जिनके साथ उन्होंने 28 फिल्में की। 1984 के विधानसभा तथा लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रभार का तब नेतृत्व किया जब अस्वस्थता के कारण प्रचार नहीं कर सके थे।
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वर्ष 1987 में रामचंद्रन के निधन के बाद राजनीति में वह खुलकर सामने आईं लेकिन अन्नाद्रमुक में फूट पड़ गई। ऐतिहासिक राजाजी हॉल में एमजीआर का शव पड़ा हुआ था और द्रमुक के एक नेता ने उन्हें मंच से हटाने की कोशिश की। बाद में अन्नाद्रमुक दल दो धड़े में बंट गया जिसे जयललिता और रामचंद्रन की पत्नी जानकी के नाम पर अन्नाद्रमुक (जे)और अन्नाद्रमुक (जा) कहा गया।
एमजीआर कैबिनेट में वरिष्ठ मंत्री आरएम वीरप्पन जैसे नेताओं के खेमे की वजह से अन्नाद्रमुक की निर्विवाद प्रमुख बनने की राह में अड़चन आई और उन्हें भीषण संघर्ष का सामना करना पड़ा। जयललिता ने बोदिनायाकन्नूर से 1989 में तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की और सदन में पहली महिला प्रतिपक्ष नेता बनीं।
इस दौरान राजनीतिक और निजी जीवन में कुछ बदलाव आया जब जयललिता ने आरोप लगाया कि सत्तारुढ़ द्रमुक ने उनपर हमला किया और उनको परेशान किया गया। जैसा कि पन्नीरसेल्वन आभी शशिकला पर लगा रहे हैं।
HIGHLIGHTS
- AIADMK में इतिहास एक बार फिर से ख़ुद को दोहरा रहा है।
- 1987 में रामचंद्रन के निधन के बाद जयललिता ने भी राजनीतिक विरासत के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी।
- पन्नीरसेल्वम और शशिकला के बीच भी उसी तर्ज़ पर विरासत को लेकर लड़ाई जारी है।
Source : News Nation Bureau