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पालघर लिंचिंग: सुप्रीम कोर्ट में बोली महाराष्ट सरकार, सीबीआई को मामला ट्रांसफर करने पर कोई आपत्ति नहीं

महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि उसे 2020 के पालघर लिंचिंग मामले को सीबीआई को सौंपने में कोई आपत्ति नहीं है. महाराष्ट्र पुलिस के सहायक पुलिस महानिरीक्षक ने एक अतिरिक्त हलफनामे में कहा, याचिकाकर्ताओं ने जांच सीबीआई को हस्तांतरित करने की मांग की है, मैं कहता हूं और प्रस्तुत करता हूं कि महाराष्ट्र राज्य सी.आर. संख्या 76/2020 और सी.आर. संख्या 77/2020 की जांच सीबीआई को सौंपने के लिए तैयार है और इसके लिए कोई आपत्ति नहीं होगी.

Updated on: 11 Oct 2022, 03:08 PM

नई दिल्ली:

महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि उसे 2020 के पालघर लिंचिंग मामले को सीबीआई को सौंपने में कोई आपत्ति नहीं है. महाराष्ट्र पुलिस के सहायक पुलिस महानिरीक्षक ने एक अतिरिक्त हलफनामे में कहा, याचिकाकर्ताओं ने जांच सीबीआई को हस्तांतरित करने की मांग की है, मैं कहता हूं और प्रस्तुत करता हूं कि महाराष्ट्र राज्य सी.आर. संख्या 76/2020 और सी.आर. संख्या 77/2020 की जांच सीबीआई को सौंपने के लिए तैयार है और इसके लिए कोई आपत्ति नहीं होगी.

महाराष्ट्र पुलिस की प्रतिक्रिया अधिवक्ता शशांक शेखर झा और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर आई है. याचिकाओं में दो साधुओं महाराज कल्पवृक्ष गिरि और सुशील गिरि महाराज की लिंचिंग का मुद्दा उठाया गया था और मामले की स्वतंत्र जांच की मांग की गई थी.

जून 2020 में, श्री पंच दशाबन जूना अखाड़े के हिंदू साधुओं और दो मृतक साधुओं के रिश्तेदारों ने भी मामले की जांच में राज्य के अधिकारियों द्वारा पक्षपात का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.

सभी याचिकाओं में मामले में एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच करने के लिए जांच सीबीआई को स्थानांतरित करने की मांग की.

हलफनामे में कहा, 6 अगस्त, 2020 के आदेश के अनुसरण में, महाराष्ट्र राज्य ने 28 अगस्त, 2020 के अपने हलफनामे के माध्यम से रिकॉर्ड पर चार्जशीट दायर की है. उपरोक्त चार्जशीट के अलावा, पुलिस के खिलाफ की गई कार्रवाई का विवरण विभागीय जांच के माध्यम से कर्मियों को भी 28 अगस्त, 2020 के हलफनामे के माध्यम से रिकॉर्ड पर लाया गया था.

शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र सरकार, महाराष्ट्र के डीजीपी, केंद्र और अन्य को नोटिस जारी किया था. तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने मामले की स्वतंत्र जांच की मांग वाली याचिका का विरोध किया था और शीर्ष अदालत के समक्ष आरोप पत्र जमा किया था, और यह भी बताया था कि विभागीय जांच के माध्यम से दोषी पुलिस कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है.