उरी हमले के बाद भारत के कूटनीतिक कार्रवाई की वजह से सार्क देशों और बाकी दुनिया से अलग थलग पड़े पाकिस्तान भारत पर दबाव बनाने के लिए सार्क यानि की साउथ एशियन असोसिएशन फॉर रीजनल कॉपरेशन में दूसरे देशों को शामिल करवाने की रणनीति पर काम कर रहा है।
पाकिस्तानी अखबार डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी दौरे पर गए पाकिस्तान के संसदीय प्रतिनिधिमंडल ने न्यूयॉर्क में ये विचार दिया है। पत्रकारों से बातचीत में पाकिस्तान के सीनेटर मुशाहिद हुसैन सैयद ने कहा एक ग्रेटर साउथ एशिया का उदय हो रहा है जिसमें चीन, ईरान और पड़ोसी मध्य एशियाई देश हैं।
सैयद ने चाइना-पाकिस्तान इकॉनमिक कॉरिडोर को साउथ एशिया और सेंट्रल एशिया को जोड़ने वाला महत्वपूर्ण आर्थिक रूट करार दिया है। सैयद मुशाहिद के मुताबिक ग्वादर पोर्ट से चीन, ईरान और पड़ोसी मध्य एशियाई देशों को बेहद फायदा होगा और ग्वादर पोर्ट चीन और कई सेंट्रल एशियाई देशों के बीच सबसे नजदीकी वॉर्म वाटर पोर्ट हैं
वॉर्म वाटर पोर्ट वो बंदरगाह होते हैं जो ठंड के दिनों में भी नहीं जमते जो व्यापार के लिए बेहद जरूरी है। डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक सैयद ने भारत को भी इससे जुड़ने की अपील की है लेकिन उनके मुताबिक भारत सिर्फ सहूलियतें लेना चाहता है जो उसे सार्क की तरफ से मिलती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सार्क सदस्य देशों पर भारत का दबदबा है। बांग्लादेश, अफगानिस्तान भारत के समर्थक देश हैं, नेपाल, श्रीलंका और मालदीव्स से पाकिस्तान के अच्छे रिश्ते हैं लेकिन इनकी इतनी क्षमता नहीं है कि ये भारत पर दबाव बना पाएं।
रिपोर्ट में पाकिस्तान के एक सीनियर डिप्लोमैट के मुताबिक कहा गया है कि भारत के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए पाकिस्तान बेहद सक्रियता के साथ नए क्षेत्रीय गठजोड़ की संभावनाएं तलाश रहा है। डिप्लोमैट के मुताबिक पाकिस्तान को लगता है कि सार्क में हमेशाम भारत का दबदबा बना रहेगा इसलिए पाकिस्तान को लगता है कि नई व्यवस्था की वजह से भारत उसपर अपने फैसले नहीं थोप पाएगा।
गौरतलब है कि उरी हमले के बाद भारत के सार्क सम्मेलन में हिस्सा लेने से इनकार करने के बाद अफागानिस्तान, बांग्लादेश और भूटान ने भी इसमें हिस्सा लेने से मना कर दिया था जिससे पूरी दुनिया में पाकिस्तान की भारी किरकिरी हुई थी।
हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि सार्क देश के सभी सदस्य शायद ही इसपर राजी होंगे क्योंकि बांग्लादेश, नेपाल या श्रीलंका पोर्ट की दूरी को देखते हुए इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाएगा और अफगानिस्तान भारत से अपने गहरे संबंधों को लेकर इसका समर्थन नहीं करेगा जबकि फायदा अफगानिस्तान को भी होगा।
एक दक्षिणी एशियाई डिप्लोमैट का कहना है कि अगर पाकिस्तान ग्रेटर साउथ एशिया बनाने में कामयाब हो भी जाता है तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि नए देश पाकिस्तान का भारत के विरोध पर उसका साथ देंगे।
Source : News Nation Bureau