कुमारस्वामी के बहाने विपक्षी हुए साथ, क्या 2019 में मोदी को दे पाएंगे मात

जनता दल सेक्युलर के नेता एच डी कुमारस्वामी ने आज कर्नाटक की राजधानी बेंगलूरु में दूसरी बार सीएम पद की शपथ ली जहां मंच पर साल 2019 के चुनावी घमासान से पहले विपक्षी एकता देखने को मिली।

जनता दल सेक्युलर के नेता एच डी कुमारस्वामी ने आज कर्नाटक की राजधानी बेंगलूरु में दूसरी बार सीएम पद की शपथ ली जहां मंच पर साल 2019 के चुनावी घमासान से पहले विपक्षी एकता देखने को मिली।

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कुमारस्वामी के बहाने विपक्षी हुए साथ, क्या 2019 में मोदी को दे पाएंगे मात

विपक्षी दलों के नेता (फाइल फोटो)

जनता दल सेक्युलर के नेता एच डी कुमारस्वामी ने आज कर्नाटक की राजधानी बेंगलूरु में दूसरी बार सीएम पद की शपथ ली जहां मंच पर साल 2019 के चुनावी घमासान से पहले विपक्षी एकता देखने को मिली।

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शपथ ग्रहण समारोह में करीब-करीब देश के हर विपक्षी दल के नेता मंच पर एक साथ नजर आए।

कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के अलावा, जेडीयू के पूर्व नेता शरद यादव, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव, बीएसपी सुप्रीमो मायावती, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, आंध्रप्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू, सीपीएम नेता सीताराम येचुरी, कमल हासन और आरएलडी प्रमुख अजित सिंह समेत कई नेता मौजूद थे।

शपथ ग्रहण के बाद विपक्षी दलों की एकजुटता को लेकर कर्नाटक के नए सीएम कुमार स्वामी ने कहा, 'पूरे देश से आए नेताओं ने राष्ट्र को संदेश दिया है कि हम एक हैं और 2019 के चुनाव में देश के राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव आएगा। वो यहां हमारी सरकार को बचाने नहीं आए हैं।'

कर्नाटक में बीजेपी के सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने के बाद भी कांग्रेस ने जेडीएस से गठबंधन कर बीजेपी को वहां सत्ता में आने से रोक दिया। ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस के इस फैसले ने पूरे विपक्ष को साल 2019 के चुनाव में मोदी को सत्ता में आने से रोकने को मंत्र दे दिया है।

कांग्रेस पार्टी पीएम नरेंद्र मोदी की मजबूत और लोकप्रिय छवि का मुकाबला इन सभी दलों को एक साथ लाकर करना चाहती है क्योंकि देश के अधिकांश राज्यों में बेहद कमजोर हो चुकी है। कांग्रेस के संगठन में इतनी मजबूती नहीं दिख रही है जो बीजेपी और आरएसएस के माइक्रो लेवल बूथ मैनेजमेंट का मुकाबला देश के अधिकांश हिस्सों में कर सके।

ऐसे में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी कई महीनों से कोशिश कर रहे हैं कि क्षेत्रीय दलों और क्षत्रपों को एक गठबंधन के नीचे लाया जाए ताकि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी और नरेंद्र मोदी को हराया जा सके। हालांकि कांग्रेस के अलावा बाकी दूसरे विपक्षी दलों का हाल भी राज्यों में बहुत अच्छा नहीं है और उनपर भी अपने अस्तित्व को बचाये रखने की चुनौती है

बिहार में हाशिये पर हैं शरद यादव

बात अगर जेडीयू के पूर्व नेता शरद यादव की करें तो इन्होंने जेडीयू के दोबारा एनडीए में जाने का विरोध किया था जिसके बाद इन्हें नीतीश कुमार ने हाशिये पर भेज दिया। राज्य में इनका कोई जनाधार भी नहीं है। ऐसे में नीतीश से मुकाबले के लिए उन्होंने कांग्रेस जैसे दल का साथ चाहिए ताकि वो बिहार में अपना राजनीतिक वजूद बचाए रख सकें।

यूपी में अखिलेश की साइकिल हैं पंचर

बीते साल यूपी में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन को बीजेपी के हाथों बुरी हार का सामना करना पड़ा।

बीजेपी गठबंधन ने 325 सीटों पर चुनाव जीतकर इतिहास रच दिया। अखिलेश यादव की कुर्सी चली गई और मुलायम से उनके झगड़े ने उनके वोट बैंक को भी कमजोर कर दिया।

अखिलेश यादव की पार्टी को महज 47 सीटों से संतोष करना पड़ा। ऐसे में अगले साल होने वाले चुनाव में पार्टी की स्थिति सुधारना उनके लिए बड़ी चुनौती है जिनसे पार पाने के लिए उन्हें गठबंधन करना पड़ सकता है।

मायावती की पार्टी का है बुरा हाल

साल 2017 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा था। 404 सीटों वाले यूपी विधानसभा में उनके सिर्फ 19 विधायक चुनकर आ पाए।

बीएसपी सुप्रीमों के दलित वोट बैंक में भी बीते चुनाव में बीजेपी ने सेंध लगा दी जो उनके लिए चिंता की बात है। राज्य में हुए उपचुनाव में बीजेपी को मात देने के लिए उन्हें एसपी को समर्थन देना पड़ा जो कामयाब भी रहा।

ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस, एसपी और बीएसपी के बीच गठबंधन हो सकता है ताकि यूपी में बीजेपी को ज्यादा सीटें लाने से रोका जा सके।

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दिल्ली तक ही सिमटे अरविंद केजरीवाल

अरविंद केजरीवाल अपनी पार्टी का देश में चाह कर भी विस्तार नहीं कर पा रहे हैं। पंजाब को छोड़कर पार्टी ने जहां भी चुनाव लड़ा वहां बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा और कई जगह तो जमानत तक नहीं बची।

दिल्ली में केंद्र सरकार आए दिन उनका गतिरोध उन्हें सड़क पर उतरने के लिए मजबूर कर देता है। दिल्ली में सत्ताधारी पार्टी के एक भी सांसद नहीं है। ऐसे में अपनी पार्टी को विस्तार और एनडीए सरकार से छुटकारा पाने के लिए वो भी विपक्षी एकता का हिस्सा बन सकते हैं।

डिप्टी सीएम से नेता विपक्ष हो गए तेजस्वी, लालू के बाद पार्टी को संवारने की जिम्मेदारी

नीतीश सरकार में महागठबंधन के दौर में डिप्टी सीएम रहे तेजस्वी यादव अब वहां नेता विपक्ष है। पिता लालू यादव को चारा घोटाल के कई मामलों में सजा मिलने के बाद पार्टी की पूरी जिम्मेदारी इन्हीं पर है।

ऐसे में राज्य में आगामी लोकसभा चुनाव और उसके बाद विधानसभा चुनाव में लालू की मदद के बिना पार्टी को फिर से स्थापित करना उनके लिए बड़ी चुनौती है।

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नीतीश कुमार को सत्ता से हटाना भी उनके लिए आसान नहीं है क्योंकि जैसी राजनीतिक परस्थितियां बिहार में है ऐसे में मुश्किल ही है कि आरजेडी अकेले वहां सत्ता बना सके। तेजस्वी को वहां एनडीए और नीतीश कुमार को मात देने के लिए कांग्रेस और दूसरे दलों की मदद की निश्चित तौर पर जरूरत होगी।

बंगाल में बीजेपी को रोकने के लिए विपक्षी एकजुटता बनाने की कोशिश में ममता

लोगों के लिए सबसे बड़ा आश्चर्य था वामपंथी पार्टी सीपीएम के नेता सीताराम येचुरी और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी का एक मंच पर एक साथ दिखना। पश्चिम बंगाल में दोनों दल के कार्यकर्ता एक दूसरे का खून बहाने से भी नहीं चूकते और धुर विरोधी माने जाते हैं।

गौरतलब है कि बंगाल में 30 सालों से राज कर रही वामपंथी सरकार को ममता बनर्जी ने उखाड़ फेंका था और वहां अपनी सरकार बनाई थी।

पश्चिम बंगाल में भले ही ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस की सरकार है लेकिन सीएम बनर्जी को पता है कि आने वाले दिनों में बीजेपी राज्य में उनके लिए चुनौती बन सकती है।

इसका कारण यह है कि बीजेपी पश्चिम बंगाल में तेजी से उभर रही है जिसे ममता हर हालत में रोकना चाहती हैं। इसलिए आए दिन वो नरेंद्र मोदी की नीतियों पर जमकर हमला बोलती हैं और लोकतंत्र को बचाने की गुहार लगाती हैं।

लोकसभा चुनाव में बंगाल में बीजेपी को रोकने के लिए ममता कांग्रेस से गठबंधन कर सकती है। ममता राज्य में अपनी मजबूत स्थिति की बदौलत खुद को विपक्ष की तरफ से पीएम पद की उम्मीदवार के तौर पर भी देखती हैं।

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विशेष राज्य के दर्जे की मांग पर टूटा नाता, विपक्ष के साथ मिले चंद्र बाबू नायडू

तेलंगाना के अलग राज्य बनने के बाद आंध्र प्रदेश का ज्यादातर खनिज संपदा वाला हिस्सा अब उससे अलग हो चुका है। ऐसे में एनडीए में शामिल रहे नेता और तेलुगु देश पार्टी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू ने विशेष राज्य का दर्ज नहीं देने पर एनडीए से नाता तोड़ लिया।

आंध्र प्रदेश में टीडीपी की हालत दिनों दिन कमजोर होती जा रही है और राज्य में जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाइएसआर कांग्रेस मजबूत हो रही है। ऐसे में राजनीतिक अस्तित्व को बचाए रखने के लिए उन्हें भी विपक्षी दलों के साथ की जरूरत है।

यूपी में राष्ट्रीय लोक दल के अस्तित्व पर हैं संकट, विपक्षी दलों की एकता के भरोसे अजीत सिंह

उत्तर प्रदेश में पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल पर अस्तित्व का खतरा मंडरा रहा है। बीते यूपी चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा था।

ऐसे में अजीत सिंह की मजबूरी ने उन्हें विपक्षी दलों के इस मंच पर अपनी हाजिरी देने के लिए मजबूर कर दिया ताकि लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी की स्थिति में सुधार हो।

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Source : Kunal Kaushal

General Election 2019 Karnataka Kumaraswamy
      
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