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विपक्ष अनर्गल बयानबाजी न कर रचनात्मक भूमिका निभाए, बीजेपी नेता भूपेंद्र यादव ने दी सलाह

बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री और राज्यसभा सदस्य भूपेंद्र यादव ने विपक्ष के आरोप कि सरकार ने संसदीय स्थायी और प्रवर समितियों को समीक्षा के लिए भेजे बगैर जल्दबाजी में कई कानून राज्यसभा में पारित करवाए हैं पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है.

Updated on: 28 Jul 2019, 02:25 PM

highlights

  • 2014 से 2019 के बीच राज्यसभा में प्रवर समिति को 17 विधेयक समीक्षा के लिए भेजे.
  • गतिरोध पैदा करने वाले सदन के बेहतर प्रदर्शन पर सवाल खड़े कर रहे!
  • विपक्ष रचनात्मक रूप से कार्य कर लोकतंत्र को मजबूत बनाए.

नई दिल्ली.:

बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री और राज्यसभा सदस्य भूपेंद्र यादव ने विपक्ष के आरोप कि सरकार ने संसदीय स्थायी और प्रवर समितियों को समीक्षा के लिए भेजे बगैर जल्दबाजी में कई कानून राज्यसभा में पारित करवाए हैं पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. उन्होंने एक ब्लॉग के जरिये विपक्ष को इसका जवाब दिया है. उन्होंने कहा है कि यह समझ से परे हैं कि यदि संसद ठीक से ढंग अपने मूल कार्य को करते हुए कानून बना रही है अथवा संशोधन कर रही है तो इससे भी विपक्षी दलों को समस्या हो रही है. सदन का वर्तमान सत्र पिछले अन्य सत्रों के मुकाबले ज्यादा सार्थक और उपयोगी सिद्ध हो रहा है.

विपक्ष का आरोप निराधार
भूपेंद्र यादव ने राज्यसभा में विधेयकों को संसदीय समितियों को नहीं भेजने तथा उसकी जांच को लेकर विपक्षी दलों के आरोप को निराधार बताया है. इसे सिद्ध करने के लिए उन्होंने आंकड़ों का सहारा लिया है. इसके तहत यूपीए सरकार ने वर्ष 2009 से 2014 तक राज्यसभा में केवल पांच विधेयकों को संसद की प्रवर समिति को भेजा था, जबकि एनडीए सरकार ने वर्ष 2014 से 2019 के बीच राज्यसभा में संसद की प्रवर समिति को कुल 17 विधेयक समीक्षा के लिए भेजे हैं. इससे साफ़ होता है कि विधेयकों को संसद की समितियों के पास नहीं भेजने को लेकर विपक्ष का आरोप पूरी तरह से तथ्यहीन है.

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आरोप लगाने वाले कामकाज कर रहे बाधित
उन्होंने कहा कि आज जो लोग राज्यसभा सत्र के दौरान संसदीय गतिविधियों के दौरान चर्चाओं और ध्यानाकर्षण प्रस्तावों को बाधित कर रहे हैं, वही लोग आज सदन में सुचारू ढंग से हो रहे कामकाज पर सवाल उठा रहे हैं. संसद के कामकाज के बारे में निराधार टिप्पणी करने वालों को स्वयं से यह सवाल करना चाहिए कि आखिर मानसून सत्र 2015, बजट सत्र 2018, शीतकालीन सत्र 2018 और अंतरिम बजट सत्र 2019 में कामकाज की गति क्यों ठप जैसी हो गयी थी? हैरानी की बात है कि सदन में सकारात्मक रुख के साथ बहस और चर्चा करने की बजाय अनेक अवसरों पर गतिरोध पैदा करने वाले आज इस बात पर सवाल खड़े कर रहे हैं कि सदन का प्रदर्शन अच्छा क्यों हो रहा है!

प्रवर समितियों को भेजना जरूरी भी नहीं
उन्होंने संवैधानिक पहलुओं का हवाला देते हुए कहा है कि प्रवर समितियों को विधेयक भेजना सदन की प्रक्रिया का हिस्सा है, किन्तु यह भी सच है कि ऐसा विधेयक के लिए अनिवार्य नहीं है. कभी-कभी प्रवर समितियां कानून में फेरबदल करने की सलाह देती रही हैं और इसके परिणामस्वरूप कुछ विधेयकों में उन सिफारिशों को लागू भी किया जाता रहा है. कुछ विधेयकों पर प्रवर समितियों में विचार होने के बावजूद सदन का सत्र नहीं होने की वजह से पारित नहीं हो पाते हैं. इस कारण उन विधेयकों को दोबारा सदन पटल पर रखना पड़ता है या सदन में लाया जाता है. इस तरह के विधेयकों में ज्यादातर वे हैं जो लोकसभा द्वारा पारित भी हुए तथा स्थायी समिति द्वारा उन्हें अनुमोदित भी किया गया था, लेकिन उन विधेयकों को लैप्स होने के कारण सदन में वापस लाना पड़ा.

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तीन तलाक और मोटर व्हीकल विधेयक का उदाहरण
इसके लिए भूपेंद्र यादव ने द मोटर व्हीकल्स (अमेंडमेंट) बिल 2019 का हवाला दिया है. उनके मुताबिक इसकी समीक्षा पहले स्टैंडिंग कमेटी द्वारा की गयी, फिर लोकसभा द्वारा पारित किया गया था. इसके बाद राज्यसभा ने इस बिल को प्रवर समिति के पास भेजा था, लेकिन लैप्स होने के कारण इसे फिर से लोकसभा में लाना पड़ा. इसी तरह ट्रिपल तलाक बिल में विपक्ष के सुझाव पर संशोधन करके दो बार इसे लोकसभा द्वारा पारित किया गया है. चूँकि इसे राज्यसभा में यह दो बार पारित नहीं हो सका अंत: इसे फिर तीसरी लोकसभा में पारित कराना पड़ा है.

राज्यसभा में लंबित बिल
ऐसे अनेक विधेयक हैं जिनपर या तो प्रवर समिति या स्थायी समिति में विचार हो चुका है और इन्हें राज्यसभा द्वारा अभी पारित होना है: मसलन, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक 2019, सरोगेसी (विनियमन) विधेयक 2019, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक 2019, वेतन संहिता 2019, अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक 2019 तथा कंपनी संशोधन विधेयक 2019.0

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संसद सत्र में ज्यादा काम हो रहा
पिछले संसदीय सत्रों की तुलना में वर्तमान सत्र कानून के अधिनियमन के लिहाज से अधिक प्रभावी रहा है. यह सत्र संसद के सामान्य समय अवधि के मुकाबले अधिक कामकाज के लिहाज से अधिक उपयोगी भी रहा है और कई बार सदन की कार्यवाही सायंकाल 6 बजे से अधिक भी चली है. इस सत्र में विधेयकों के पारित होने के अलावा कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर सार्थक चर्चा भी हुई है, शून्यकाल और ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के माध्यम से सार्वजनिक महत्व के कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी सदन में चर्चा हुई है.

प्रश्नकाल भी रहा सार्थक
भूपेंद्र यादव के मुताबिक इस सत्र के कामकाज में कई मुद्दों से जुड़े निजी प्रस्ताव और सदस्यों के निजी बिल भी शामिल हैं. इस सत्र में प्रश्नकाल भी सार्थक रहा है जो कि सरकार की जवाबदेही के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण है. हाल के पांच सत्रों में से चार सत्र बर्बाद चले गए. इसके बावजूद एनडीए सरकार के दौरान 2014 से 2019 के मध्य कम समय के लिए अवधि की जो चर्चाएँ हुईं उनकी कुल संख्या 29 थी. यह वर्ष 2009 से 2014 के दौरान यूपीए सरकार की 27 चर्चाओं से अधिक है.

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लंबी चर्चाओं ने सबको बोलने का दिया मौका
संसद की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी द्वारा सदन के कामकाज को अंतिम रूप दिया जाता है, जिसमें सभी दलों का प्रतिनिधित्व होता है और सभी विधेयकों को उसके आवंटित समय के अनुसार उपरोक्त समिति द्वारा पारित होने के बाद सूचीबद्ध किया जाता है. लंबे समय के बाद लांग ऑवर चर्चाएँ सदन में फिर से होने लगी हैं. ऐसा तब हुआ है जब व्यवधानों और अनावश्यक हस्तक्षेपों के कारण संसदीय सत्र अनियमित रहे हैं.

विपक्ष रचनात्मक भूमिका निभाए
भूपेंद्र यादव का कहना है कि कानून बनाना संसद का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है और विपक्ष की रचनात्मक प्रतिक्रिया और सार्थक हस्तक्षेप इस प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन केवल विरोध के लिए विपक्ष को प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता. विपक्ष को यह समझने की आवश्यकता है कि किसी भी विधेयक के संबंध में सहमति-असहमति की प्रतिक्रिया स्वीकार्य है, परंतु अनावश्यक बाधा उत्पन्न करना स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सही नहीं है. विपक्ष को अपनी भूमिका के महत्व का अहसास कर रचनात्मक विपक्ष के रूप में कार्य करते हुए लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में काम करने की आवश्यकता है.