विभिन्न सेक्टरों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए सरकार ने तय किया है कि कर्तव्य पथ पर होने वाले गणतंत्र दिवस परेड में मार्च पास्ट, झाकिंयां और परफॉर्मेस में सिर्फ महिलाएं शामिल होंगी।
रक्षा मंत्रालय ने इस संबंध में सैन्य बलों तथा परेड में शामिल होने वाले अन्य सरकारी विभागों को पत्र लिखा है। इसमें कहा गया है कि मार्च पास्ट करने वाले दस्ते और उनके साथ जुड़े बैंड तथा झांकियों में सिर्फ महिला प्रतिभागी होंगी।
इस पत्र ने कई वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों को आश्चर्य में डाल दिया है और भ्रम की स्थिति पैदा की है। कई लोगों का मानना है कि इसके लिए सेना में पर्याप्त महिलाएं उपलब्ध नहीं हैं। वर्तमान स्थिति यह है कि मार्च करने वाली कुछ टुकड़ियों में केवल पुरुष होते हैं।
गौरतलब है कि सशस्त्र बलों ने लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए महिलाओं को कमान की भूमिका सौंपने, भविष्य की नेतृत्वकारी भूमिकाओं के लिए तैयार करने और आर्टिलरी रेजीमेंट में शामिल करने जैसे कई उपाय किए हैं।
जानकारी के मुताबिक, परेड में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने का फैसला 7 फरवरी को हुई एक बैठक के दौरान लिया गया था। रक्षा सचिव गिरिधर अरमाने की अध्यक्षता में हुई बैठक में सेना, नौसेना, वायु सेना, गृह मंत्रालय, आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय और शिक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ प्रतिनिधियों ने इसमें भाग लिया था।
बैठक के लगभग एक महीने बाद, रक्षा मंत्रालय ने 1 मार्च को भाग लेने वाले बलों, मंत्रालयों और विभागों को औपचारिक रूप से एक पत्र जारी किया।
पत्र में अगले साल होने वाली परेड में महिलाओं की भूमिका पर जोर दिया गया।
पत्र में कहा गया है कि विस्तृत विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया है कि कर्तव्य पथ पर परेड में शामिल होने वाली टुकड़ियों (मार्चिग और बैंड), झांकी और अन्य प्रदर्शनों में केवल महिला प्रतिभागी होंगी।
सभी भाग लेने वाले मंत्रालयों, विभागों और संगठनों को भी इसके लिए तैयारियां शुरू करने और इस दिशा में प्रगति के बारे में समय-समय पर रक्षा मंत्रालय को बताने के लिए कहा गया है।
कुछ वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि सरकार वही करेगी जो व्यावहारिक है, और फिलहाल सभी माचिर्ंग और बैंड दस्तों में केवल महिला प्रतिभागियों का होना मुश्किल है।
गौरतलब है कि गणतंत्र दिवस परेड में पैदल सेना के माचिर्ंग दस्ते में जवानों की संख्या सबसे अधिक होती है। अधिकारियों का तर्क है कि अभी तक पैदल सेना में महिलाओं को शामिल नहीं किया गया है। उनका कहना है कि माचिर्ंग टुकड़ियों का नेतृत्व करने वाले अधिकारियों में अधिकारी रैंक से नीचे के कर्मी (पीबीओआर) होते हैं और सेना में पीबीओआर की महिला कर्मी केवल सैन्य पुलिस कोर में होती हैं।
ऐसा नहीं है कि महिलाओं का बल में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है या वे हाशिए पर हैं। उन्हें तीनों सेवाओं में पुरुषों के बराबर भूमिकाएँ सौंपी जा रही हैं - वे लड़ाकू विमान उड़ाती हैं, युद्धपोतों पर काम करती हैं, उन्हें पीबीओआर कैडर में शामिल किया जाता है, स्थायी कमीशन के लिए पात्र हैं, उन्हें कमांड भूमिकाएँ सौंपी जाती हैं, और साथ ही महिला अधिकारी राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त कर रही हैं। इसके बावजूद इन्फैंट्री, टैंक और कॉम्बैट पोजिशन में अभी भी महिलाओं की उतनी भागीदारी नहीं है।
भारतीय सेना के अनुसार, कर्नल गीता राणा हाल ही में चीन की सीमा से लगे संवेदनशील लद्दाख क्षेत्र में एक स्वतंत्र इकाई की कमान संभालने वाली पहली महिला सैन्य अधिकारी बनी हैं। इसके अलावा सेना ने पहली बार किसी महिला अधिकारी कैप्टन शिवा चौहान को इसी साल दुनिया के सबसे ऊंचे और ठंडे युद्धक्षेत्र सियाचिन में तैनात किया है। सेना ने सूडान में अबेई के विवादित क्षेत्र में 27 महिला शांति सैनिकों की अपनी सबसे बड़ी टुकड़ी भी तैनात की है।
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Source : IANS