नोटबंदी के एक साल हुए पूरे, बदलते नियमों के बीच पिसता रहा आम आदमी, मुश्किल से बीते वो दिन
8 नवंबर 2016 की रात 8 बजे प्रधानमंत्री ने एक झटके में 500 और 1000 रुपये के नोट को अमान्य कर दिया। पीएम मोदी के इस फैसले के बाद ही आम लोगों की मुश्किलों का दौर शुरू हो गया।
highlights
- नोटबंदी का आम लोगों की ज़िंदगी पर पड़ा असर
- करीब 100 से ज़्यादा लोगों की लाइन में लग कर मौत
- बिना तैयारी सरकार ने की नोटबंदी की प्लानिंग
नई दिल्ली:
8 नवंबर 2016 की रात 8 बजे प्रधानमंत्री ने एक झटके में 500 और 1000 रुपये के नोट को अमान्य कर दिया। पीएम मोदी के इस फैसले के बाद ही आम लोगों की मुश्किलों का दौर शुरू हो गया।
पीएम मोदी ने दूरदर्शन पर एक स्पेशल टेलीकास्ट कर देश को बताया कि रात 12 बजे से 500-100 के नोटों 'लीगल टेंडर' नहीं रहेंगे।
इस भाषण में आमजनों को कुछ राहत देते हुए पीएम ने रियायतों की भी कई घोषणाएं की। मसलन पेट्रोल, सीएनजी पंपों पर पुराने नोटों को 1 महीने के लिए मान्य रखा, सरकारी अस्पतालों और मेडिकल सेंटर्स पर बंद किए गए नोटों को 72 घंटे तक के लिए मान्य रखा गया।
इसके अलावा रेलवे स्टेशन पर भी बंद किए गए नोटों के ज़रिए कुछ समय तक के लिए टिकट बुक करवाने की मोहलत दी गई थी। लेकिन यह सारे कदम नाकाफी रहे। प्रधानमंत्री की नोटबंदी की घोषणा के बाद शुरू हुई आम आदमी की जद्दोजहद।
जब टूट गई थी आम आदमी की कमर
सवा सौ करोड़ वाले देश में यह मोहलतें बेहद बचकाना साबित हुईं और आम लोगों के सिर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट गया।
यह घोषणा ऐसे समय की गई थीं जब देश में शादियों का सीज़न था और लोगों ने शादी कि ज़रुरतों के लिए नकद रकम भी घर पर रखी हुई थी जोकि दूसरे ही दिन से कानूनी मान्यता खो चुकी थी।
ऐसे में लोगों को शादी के मौसम में पैसे होते हुए भी बेहद तंगी का सामना करना पड़ा।
सबसे ज़्यादा मुश्किल उन लोगों की थीं जो अस्पताल में भर्ती थे और अपनी बीमारी के साथ-साथ कैश की किल्लत से भी लड़ रहे थे। सरकार ने अस्पताल में पुराने नोट स्वीकार करने की मान्यता तो दी थी लेकिन सिर्फ सरकारी अस्पतालों में।
निजी अस्पतालों पर यह नियम लागू नहीं था। ऐसे में दोनों तरफ से आम आदमी ने मुसीबत की मार झेली।
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जो उच्च मध्यम वर्ग के थे और नकद उनके पास था वो उसे खर्च नहीं कर सकते थे क्योंकि अब वो कानूनी मान्यता खो चुके थे और इसीलिए निजी अस्पतालों और निजी डॉक्टर्स के क्लीनिक में इलाज के लिए उन्हें काफी मशक्कत झेलनी पड़ी।
दूसरी तरफ सरकारी अस्पतालों में भीड़ का आलम यह था कि पुराने नोटों के चलने के बावजूद सरकारी अस्पताल में बढ़ती भीड़ के कारण इलाज कराने में परेशानी हो रही थी।
बैंकों में लंबी भीड़ बनी मुसीबत की वजह
यहीं नहीं दो दिन की छुट्टी के बाद जब बैंक खुले तो भीड़ का आलम यह था लोग सुबह 6 बजे से ही बैंक के आगे लाइन लगा कर खड़े रहते थे। हालांकि इस बीच कानून व्यवस्था से जुड़ी कोई बड़ी घटना नहीं घटी। लेकिन नोटबंदी के वजह से करीब 100 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई। वहीं सरकार समय-समय पर नियमों में बदलाव करती रही।
नोटबंदी के बाद लगातार सरकार के बदलते नियमों ने आम आदमी की कमर तो तोड़ी ही साथ ही बैंक अधिकारियों पर भी ख़ासा दबाव रहा। इस दौरान सरकार दो महीने में नियमों में करीब 65 बार नियम बदल चुकी थी।
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ऐसा भी समय आया कि विपक्ष और लोगों के गुस्से का सामना पीएम मोदी को करना पड़ा और उन्होंने इसके बाद अपने फैसले का हर जगह जमकर बचाव किया।
नोटबंदी के एक साल पूरे होने पर गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव का समय है। ऐसे में देखना होगा कि क्या आम जनता नोटबंदी के दौरान झेली परेशानियों को भूल केंद्रीय सत्ता पक्ष की ओर झुकेगी या फिर मतदान के ज़रिए अपना फैसला अलग सुनाएगी।
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