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15 दिसंबर को जामिया में रखी गई थी Delhi Riots की नींव, जानें कब क्या हुआ

इस दौरान धक्का मुक्की हुई, बेरीकेड गिरा दिए गए, पुलिस ने उग्र भीड़ को पीछे हटाने की कोशिश की तो अचानक और हैरतंगेज ढंग से पुलिस पर पथराव शुरू हो गया, पुलिस हिंसा करने वालों को धर-पकड़ के लिए आगे बढ़ी तो बड़ी संख्या में पत्थरबाज कैंपस में दाखिल हो गए.

Updated on: 15 Dec 2020, 07:57 PM

नई दिल्ली:

जामिया वि्श्वविद्यालय से शुरू हुई हिंसा और दिल्ली दंगों को आज एक साल पूरा हो चुका है. एक साल पहले 15 दिसंबर का ही दिन था, जब विश्विद्यालय के बाहर खड़े छात्र सीएए के विरोध में प्रदर्शन और नारेबाजी कर रहे थे, कुछ स्थानीय नेता और बड़ी संख्या में स्थानीय लोग भी उनकी भीड़ में शामिल थे, पुलिस ने उन्हें लॉ एंड ऑर्डर का हवाला देकर बेरीकेड लगाकर वहीं रोकने की कोशिश की और बहुत से उग्र लोग पुलिस से भिड़ गए, इस दौरान धक्का मुक्की हुई, बेरीकेड गिरा दिए गए, पुलिस ने उग्र भीड़ को पीछे हटाने की कोशिश की तो अचानक और हैरतंगेज ढंग से पुलिस पर पथराव शुरू हो गया, पुलिस हिंसा करने वालों को धर-पकड़ के लिए आगे बढ़ी तो बड़ी संख्या में पत्थरबाज कैंपस में दाखिल हो गए.

हैरानी यह थी कि कैंपस के अंदर और सड़क के दूसरी तरफ से घंटों पथराव चला. यूनिवर्सिटी के अंदर से जिस तरह से पत्थरों का बौछार होने लगी थी, उससे जाहिर हो रहा था कि प्रदर्शन की आड़ में यहां एक बड़ी साजिश रची गई थी. जामिया कैंपस के बाहर देर रात तक पथराव चलता रहा. इस पथराव में कई पुलिस कर्मी व अन्य लोग घायल हुए, वाहन निशाना बने, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा, लेकिन पथराव बंद नहीं हुआ. आखिरकार रात में कैंपस के अंदर से पथराव करने वालों पर काबू पाने के लिए पुलिस बल अंदर दाखिल होना पड़ा. पुलिस ने अंदर घुसकर कार्रवाई की तब पथराव और दंगा फसाद काबू हुआ. इस पूरे घटनाक्रम 100 से ज्यादा लोग घायल हुए, जिनमें लगभग 95 पुलिस कर्मी और छात्र शामिल थे.

नकाब पहने हुए लोग पत्थर लेकर लाइब्रेरी में पहुंचे थे
आप देख सकते हैं कि लाइब्रेरी के सीसीसीटीवी फुटेज से पूरा घटनाक्रम साफ होता है कि कैसे मुंह पर नकाब लपेटे कुछ लोग हाथों में पत्थर लेकर लाइब्रेरी में दाखिल हुए, पुलिस को रोकने के लिए दरवाजे बंद करने की कोशिश की, पुलिस कार्रवाई के बाद पत्थरबाज काबू आए. इस घटना के बाद सीएए के विरोध को दूसरा रंग मिल गया, छात्र और पूर्व छात्रों के नाम पर कई संगठन एक्टिव हो गए, अगले दिन से ही शाहीन बाग और जामिया इस्लामिया में धरना प्रदर्शन शरू हो गया, जो 100 दिन से ज्यादा चला. इस बीच दिल्ली में इक्कीस जगहों पर प्रदर्शन की प्लानिंग हो गई, जिनमें भजनपुरा चांद बाग, सीलमपुर, जाफराबाद, खुरेजी के प्रदर्शन दिल्ली के दंगों की आग को हवा देने में अहम रहे.

तीसरी सप्लीमेंटरी चार्जशीट भी दायर करेगी पुलिस
इस मामले में पंद्रह दिसंबर 2019 को दिल्ली पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली थी, जिसकी जांच बाद में क्राइम ब्रांच की इंटरस्टेट सेल को सौंप दी गई. क्राइम ब्रांच के आधिकारिक सूत्रों की मानें तो इन्वेस्टिगेशन के चलते कुल 22 लोगों की गिरफ्तारियां हो चुकी हैं, जिनमें जेएनयू छात्र शरजील इमाम, जामिया छात्र आसिफ इकबाल, मीरान हैदर, स्थानीय नेता आशु खान प्रमुख चेहरे हैं. जामिया दंगा मामले में अभी तक मुख्य आरोप पत्र (चार्जशीट) के बाद दो पूरक आरोप पत्र (सप्लीमेंटरी चार्जशीट) भी दाखिल हो चुकी है. सूत्रों का कहना है कि पुलिस जल्द एक तीसरी सप्लीमेंटरी चार्जशीट भी दाखिल करेगी. अदालत मामले पर संज्ञान लेने के आरोपों पर सुनवाई कर रही है.

अभी भी 70 आरोपियों की तलाश 
इन्वेस्टिगेशन के चलते पुलिस जामिया कैंपस और आसपास के रास्ते पर लगे तमाम सीसीटीवी फुटेज को खंगाला तो दंगे फसाद में 100 से ज्यादा लोग आसपास की लोकेशन और जामिया कैंपस में लगे कैमरों और मोबाइल रेकॉर्डिंग में कैप्चर हुए थे, जिनमें से 70 लोगों के चेहरे नजर आए, जिनकी पुलिस को तलाश है. पुलिस सूत्रों का कहना है कि दंगों की साजिश रचने वाले और हिंसा में शामिल 22 लोगों को पहचान करके गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन बाकी ज्यादातर आरोपियों के लिंक नहीं मिल पाए हैं, हालांकि इन्वेस्टिगेशन अभी जारी है और पहचान होते ही कुछ की गिरफ्तारियां हो सकती हैं.

दिल्ली दंगों में जामिया हिंसा बनी सूत्रधार
जामिया हिंसा में पुलिस को भी कटघरे में खड़ा किया गया. पुलिस के कैंपस और लाइब्रेरी में बिना इजाजत दाखिल होने पर सवाल खड़े हुए, शिकायतें हुईं, उसे सीएए के विरोध के साथ कैंपस में पुलिस द्वारा छात्रों को बेरहमी से मुद्दा बनाकर जामिया, शाहीन बाग समेत कई जगहों पर अनिश्चितकालीन प्रदर्शन शुरू हो गए. दंगों की साजिश की जांच की कई चार्जशीट में पुलिस ने भी माना है कि जामिया हिंसा से दिल्ली दंगों की साजिश की शुरुआत हो चुकी थी, जिनमें बताया गया कि कैसे शरजील इमाम, उमर खालिद, आसिफ, मीरान, सफूरा, नताशा आदि छात्रों समेत पीएफआई, पिंजड़ा तोड़ जैसे संगठनों की भूमिका रही. पुलिस के अलग-अलग आरोप पत्रों में इसका जिक्र है कि कैसे जामिया कैंपस के अंदर से पुलिस पर पथराव किया गया, फिर पुलिस को कार्रवाई करनी पड़ी तो उस कार्रवाई को स्टूडेंट्स पर अत्याचार के तौर पर पेश करके सीएए के विरोध से जोड़ा गया और शाहीन का प्रदर्शन शुरू कर दिया गया.