27 फरवरी 2002 की सुबह, जब बदल गई थी पूरे गोधरा की तस्वीर
साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के कोच नंबर एस-6 में दंगाईयों ने आग लगा दी. इसमें 59 लोगों की जलकर मौत हो गई. इनमें मरने वाले ज्यादातर कारसेवक थे जो अयोध्या से वापस लौट रहे हैं.
गोधरा:
गुजरात का दंगा भारतीय राजनीति के इतिहास में एक दाग है. इस दंगे ने देश की एकता को झकझोर कर सामने रख दिया था. इस दंगे में सैकड़ों की संख्या में लोगों की मौत हुई. गोदरा के जख्मों को लोग आज भी नहीं भूले हैं. रह रह कर उस दंगे की याद लोगों को सिहरने पर मजूबर कर देती है. इन दंगों की शुरुआत साबरमती एक्सप्रेस से हुई थी. 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा में 59 लोगों की आग में जलकर मौत हो गई. ये सभी 'कारसेवक' थे, जो अयोध्या से लौट रहे थे.
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सुबह सो कर भी न उठे और बोगी में लगा दी आग
27 फरवरी की सुबह जैसे ही साबरमती एक्सप्रेस गोधरा रेलवे स्टेशन के पास पहुंची, उसके एक कोच (एस-6) से आग की लपटें उठने लगीं. कोच से धुंए का उबार निकल रहा था. इस आग में कोच में मौजूद यात्री उसकी चपेट में आ गए. इनमें से ज्यादातर वो कारसेवक थे, जो राम मंदिर आंदोलन के तहत अयोध्या में एक कार्यक्रम से लौट रहे थे. इस घटना में 59 कारसेवकों की मौत हो गई. इस हादसे ने पूरे गुजराज को दंगे की आग में झोंक दिया. एकाएक पूरे राज्य में दंगे शुरू हो गए.
घटना के बाद अलर्ट हुए मोदी
जिस वक्त यह हादसा हुआ उस वक्त गुजराज में नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री थे. पूरी घटना को एक साजिश के तौर पर देखा गया. घटना के बाद उसी दिन शाम को तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बैठक बुलाई. इस बैठक को क्रिया की प्रतिक्रिया के तौर पर देखा गया. इस बैठक को लेकर विपक्षी दलों ने काफी सवाल उठाए. ट्रेन में आग की बात को साजिश माना गया. इस मामले की जांच के लिए बने नानावती आयोग ने भी माना कि भीड़ ने ट्रेन की बोगी में पेट्रोल बम डालकर आग लगाई थी.
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अगले दिन ही भड़की हिंसा
27 फरवरी को गोधरा कांड के अगले ही दिन कई स्थानों पर हिंसा भड़क गई. 28 फरवरी को गोधरा के कारसेवकों के ट्रक खुले ट्रक में अहमदाबाद लाए गए. इस शवों को इनके परिजनों के बजाए विश्व हिंदू परिषद को सौंपा गया. इस सभी चीजें चर्चा का विषय रहीं. इसके बाद से ही गुजरात में दंगे शुरू हो गए.
31 लोगों का पाया गया दोषी
इस पूरे मामले की जांच एसआईटी ने की. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से एसआईटी ने भी पूछताछ की. एसआईटी की विशेष अदालत ने एक मार्च 2011 को इस मामले में 31 लोगों को दोषी करार दिया था जबकि 63 को बरी कर दिया था. इनमें 11 दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई जबकि 20 को उम्रकैद की सजा हुई. बाद में उच्च न्यायालय में कई अपील दायर कर दोषसिद्धी को चुनौती दी गई जबकि राज्य सरकार ने 63 लोगों को बरी किए जाने को चुनौती दी है.
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